गुरुवार, 16 मार्च 2017

भगवान महावीर स्वामी का संदेश ---जिओ और जीने दो।
डाॅ सरस्वती माथुर
विश्व कों अंहिसा का पाठ पढानेवाले भगवान महावीर ने सत्य कि खोज में राजमार्ग कों त्यागकर कांटो भरा पथ  अपनाया. एवं स्वय के द्वारा जिएंगें का संदेश देकर सत्य कों नई परिभाषा दी ।
महावीर स्वामी जैन धर्म के चौंबीसवें तीर्थंकर है। करीब ढाई हजार साल पुरानी बात है। ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुण्डलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के यहाँ तीसरी संतान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस को इनका जन्म हुआ। इनका बचपन का नाम ‘वर्धमान’ था। ये ही बाद में स्वामी महावीर बने। महावीर को ‘वीर’, ‘अतिवीर’ और ‘सन्मति’ भी कहा जाता है।जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था। उन्होंने एक लँगोटी तक का परिग्रह नहीं रखा। हिंसा, पशुबलि, जाति-पाँति के भेदभाव जिस युग में बढ़ गए, उसी युग में ही भगवान महावीर ने जन्म लिया। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। पूरी दुनिया को उपदेश दिए। उन्होंने दुनिया को पंचशील के सिद्धांत बताए। इसके अनुसार- सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, अहिंसा और क्षमा। उन्होंने अपने कुछ खास उपदेशों के माध्यम से दुनिया को सही राह दिखाने की ‍कोशिश की। अपने अनेक प्रवचनों से दुनिया का सही मार्गदर्शन किया।
जब मानव समाज विषमता और हिंसा के चक्रव्यू में फंसा हुआ था, ऐसे कठिन समय में भगवान महावीर ने "जियो और जीने दो" का संदेश जन साधरण तक पहुचा कर विश्व बन्धुत्व और विश्व शांति का मार्ग प्रशस्त किया.स्वयं जियो औरों को भी जीने दो प्रत्येक प्राणी जीना चाहता है, मरना नही- अतः प्राणी मात्र की हिंसा मत करो हिंसा में अधर्म, आत्म पतन होता है और अहिंसा में आत्म उत्थान होता है। असत्य बोलने का त्याग करना सौ सत्य धर्म के बराबर है. सभी दुख हिंसा से उत्पन्न होते है। ब्रम्हचर्य मोक्ष का सोपान होता है। इच्छा रहित होना अपरिग्रह है. भगवान महावीर के एैसे उपदेश आत्मा को परमात्मा से जोड़ने और विश्व शांति स्थापित करने में आज अधिक प्रासंगिक है।
अहिंसा परमोधर्माः आर्थात अहिंसा ही परम धर्म है। अहिंसा को केन्द्र मानकर भगवान महावीर ने सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रम्हचर्य जैसे महाव्रतों का उपदेश दिया था। अहिंसा से सत्य जुड़ा है. अहिंसा से ही अपरिग्रह संभव है। अहिंसा से विश्व शांति जुड़ी है। मानव ही नही प्रत्येक जीव का कल्याण अहिंसा पर आधारित है।भगवान महावीर भारतीय संस्कृति के ऐसे तीर्थंकर है, जिन्होंने जगत को जियो और जीने दो का सूत्र दिया। हर प्राणियों को स्वतंत्रता से जीने का अधिकार दिया है। स्वतंत्रता ही मानव की अमूल्य धरोहर है, ‘जियो और जीने दो’ का सह अस्तित्ववादी सूत्र विश्व समाज को सूत्र बद्ध करता है। लेकिन इक्कीसवीं शती के भूमण्डलीकरण, ग्लोबलाइजेशन, विश्वग्राम की एप्रोच में ‘वासुधैव कुटुम्बकम्’ या ‘जियो और जीने दो’ की अर्थ ध्वनि न होकर एक ऐसी पाश्चात्य गंध घुली मिली है, जिसका मूलाधार अर्थ है। जिसका मानव कल्याण या मानवीयता से उतना सरोकार नहीं है। भौतिकता की अंध दौड़ ने उदात्त तत्व को जीवन से निकाल फेंका है। महावीर द्वारा अपने प्रत्येक अनुयायी (साधु व गृहस्थ दोनों वर्गोंके लिए) के लिए अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्राह्मचर्य व अपरिग्रह इन पांच व्रतों का पालन अनिवार्य बताया गया है, परन्तु इन सभी में अहिंसा की भावना प्रमुख है. उनकी मान्यता है कि मानव व दानव में केवल अहिंसा का ही अंतर है. जब से मानव ने अहिंसा को भुलाया तभी से वह दानव होता जा रहा है और उसकी दानवी वृत्ति का अभिशाप आज समस्त विश्व भोगने को विवश है. संसार के प्रत्येक जीव को अपना जीवन अति प्रिय है. जो उसको नष्ट करने को उसको क्षति पहुंचाने को उद्यत रहता वह हिंसक है, दानव है. इसके विपरीत जो उसकी रक्षा करता है वह अहिंसक है और वही मानव है.यद्यपि कालान्तर में जैन धर्म के सिद्धान्तों का अक्षरश: पालन करना लोगों के लिए कठिन होने लगा फिर भी इसमें संदेह नहीं है कि महावीर स्वामी ने अपने समय में जिस अहिंसा के सिद्धांत का प्रतिपादन किया वह निर्बलता व कायरता उत्पन्न करने के बजाय राष्ट्र में शांति व अमन स्थापित करने के उद्देश्य से किया. उन्होंने तत्कालीन हिन्दू धर्म को दूषित बनाने वाली पशु  बलि जैसी कुप्रथा को रोककर सामाजिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया. उनका कहना था कि पशु हत्या ही नहीं, स्वार्थपरता, बेईमानी व धोखेबाजी भी हिंसा का ही रूप है. उन्होंने समाज को जियो और जीने दो का सूत्र दिया. उन्होंने लोगों से कहा कि तुम दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करो जो तुम दूसरों से अपने लिए चाहते हो।
भगवान महावीर एक ऐसा व्यक्तित्व है जिन्होंने आध्यात्मिक क्षेत्र में पूर्णता हासिल की। उनके लिए कुछ भी शेष न था और यह हम सभी का जीवन उद्देश्य भी होना चाहिए। भगवान महावीर का जन्म कल्याण के लिये हुआ था । वह कहते थे कि अहिंसा का मार्ग ही प्रत्येक मानव का धर्म होना चाहिए। अहिंसा को ग्रहण करने से मनुष्य कई प्रकार की व्याधियों से मुक्त हो जाता है। सभी धर्मों में अहिंसा को अलग-अलग प्रकार से परिभाषित किया गया है।
इसी तरह प्रभु महावीर ने नारी शक्ति को बराबरी का सम्मान दिलाया। नारी भी मोक्ष की अधिकारिणी है। साधना के जीवन में भी नारी काफी मात्रा में संयम जीवन अंगीकार कर रही है। इस तरह अनेक क्षेत्रों में चाहे वह शैक्षणिक, राजनीतिक, सामाजिक आदि सभी क्षेत्रों में नारी की कार्यप्रणाली प्रगति की ओर बढ़ रही है।भगवान महावीर ने नारी.उद्धार और उनके आत्म.कल्याण के लिए उपदेश दिया, मार्ग प्रशस्त किया। उनका मानना था कि आत्मा न पुरुष है और न स्त्री और प्रत्येक आत्मा को अपना उद्धार करने का समान अधिकार है। अतः उन्होंने अपनी मौसी चन्दनबाला को आर्यिका दीक्षा देकर उनको स्वतन्त्र संघ बनाने की प्रेरणा दी और उनके आत्म.कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। यह सौभाग्य की बात है कि जब भारत में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में भगवान महावीर का 2500वाँ निर्वाणोत्सव मनाया जा रहा था, उस समय हमारे देश की प्रधानमन्त्री एक महिला थीं श्रीमती इन्दिरा गांधी। 2500वें निर्वाणोत्सव को सफल बनाने में जैन समाज के लिए जो उनका योगदान रहा, उसको जैन समाज कभी भी नहीं भूल सकता। वापस लौटते हैं दो शब्दों पर -जीओ और जीने दो,  ये दो शब्द हैं किन्तु यदि देखें तो इन दो शब्दों में जिन्दगी का सार छिपा है .इन्सान, इन्सान के रूप में जन्म  तो लेता है किन्तु उसके कर्म इन्सानों जैसे नहीं होते  कई दफा तो वो अपने स्वार्थ खातिर इन्सानों का खून बहाने से भी नहीं चूकता .उसके कर्म जानवरों जैसे हो जाते हैं .कई बार तो इतना कूर और ज़ालिम हो जाता है कि जानवरों को भी मात दे जाता है .अपने स्वार्थवश वो अपनों का भी खून बहा देता है  यदि हम यह दो शब्द, जीओ और जीने दो , अपना लें तो यह धरती स्वर्ग हो जाएगी . इन दो शब्दों का तात्पर्य  है कि खुद भी जीयें औरों को भी शान्ति से उनको उनकी जिन्दगी जीने दें . क्यूँ हम लोग आज इतने स्वार्थी  हो गए है कि धर्म , जाती , प्यार के नाम पे इंसानियत का खून बहा रहे हैं प्यार करने वालों को अपनी इज्ज़त कि खातिर मार देते हैं जिसे' अोनर किलिंग का नाम दिया जाता है कभी धर्म कि खातिर लोगों को मारा जाता है  कौन सा धर्म है ,कौन  सा कोई धार्मिक ग्रन्थ है या कौन  से कोई देवी देवता ,गुरु , साधू , संत पीर पैगंम्बर हुए हों  जिन्होंने कहा हो  या कहीं लिखा हो कि धर्म के नाम पे लोगों कि हत्याएं करो. या कहीं लिखा हो कि प्यार करना गुनाह है  और प्यार करने वालों की बलि देदो आॅनर किलिंग '  के नाम पे हम क्यूँ आज इतने  कूर हो गए हैं जो ऐसे घिनोने कार्य करते हैं शान्ति से क्यूँ  नहीं रहते  . क्या मिलता है हमें ऐसे घिनोने कार्य करके  शान्ति से खुद भी रहें औरों को भी रहने दें , आज आवश्कता है इन दो शब्दों को अपनाने क़ी ' जीओ और जीने दो '।
भगवान महावीर के नाम पर प्रायः दो नारे लगाए जाते हैं-
जियो और जीने दो तथा अहिंसा परमो धर्मः की जय।

विश्वास कीजिए अहिंसा परमो धर्मः का सर्वप्रथम उल्लेख जैन धर्म के शास्त्रों में नहीं अपितु महाभारत के अनुशासन पर्व की गाथा ११५-२३ में मिलता है। जी हाँ, सत्य यही है-

अहिंसा परमो धर्मः, अहिंसा परमो तपः।
अहिंसा परमो सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते।
अहिंसा परमो धर्मः, अहिंसा परमो दमः
अहिंसा परम दानं, अहिंसा परम तपः
अहिंसा परम यज्ञः अहिंसा परमो फलम्‌।
अहिंसा परमं मित्रः अहिंसा परमं सुखम्‌॥
महाभारत/अनुशासन पर्व (११५-२३/११६-२८-२९)

अहिंसा परम धर्म है। अहिंसा ही परम तप है। अहिंसा ही परम सत्य है और अहिंसा ही धर्म का प्रवर्तन करने वाली है। यही संयम है, यही दान है, परम ज्ञान है और यही दान का फल है। जीवन के लिए अहिंसा से बढ़कर हितकारी, मित्र और सुख देने वाला दूसरा कोई नहीं है।
महावीर स्वामी के अनमोल कथन :

1. अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है।

2. शांति और आत्म-नियंत्रण अहिंसा है।

3. सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान अहिंसा है।

4. प्रत्येक जीव स्वतंत्र है, कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता।

5. हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो। घृणा से विनाश होता है।

6. खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है।

7. प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है। आनंद बाहर से नहीं आता।

8. किसी के अस्तित्व को मत मिटाओ। शांतिपूर्वक जिओ और दुसरो को भी जीने दो।

9. आत्मा अकेले आती है अकेले चली जाती है, न कोई उसका साथ देता है न कोई उसका मित्र बनता है।

10. स्वयं से लड़ो , बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना ? वह जो स्वयम पर विजय कर लेगा उसे आनंद की प्राप्ति होगी।

11. पर दुख को जो दुख न माने,पर पीड़ा में सदय न हो। सब कुछ दो पर प्रभुकिसी को,जग में ऐसा हृदय न दो।

12. सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से दुखी होते हैं , और वे खुद अपनी गलती सुधार कर प्रसन्न हो सकते हैं।

13. आपने कभी किसी का भला किया हो तो उसे भूल जाओ। और कभी किसी ने आपका बुरा किया हो तो उसे भूल जाओ।

14. आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं है। असली शत्रु आपके भीतर रहते हैं, वो शत्रु हैं क्रोध, घमंड, लालच, आसक्ति और नफरत।

15. यदि तुम अपने शरीर या दिमाग पर दूसरों के शब्दों या कृत्यों द्वारा चोट बर्दाश्त नहीं कर सकते हो तो तुम्हे दूसरों के साथ अपनों शब्दों या कृत्यों द्वारा ऐसा करने का क्या अधिकार है ?

16. भगवान् का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है।  हर कोई सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास कर के देवत्त्व प्राप्त कर सकता है।

17. किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असल रूप को ना पहचानना है , और यह केवल आत्म ज्ञान प्राप्त कर के ठीक की जा सकती है।
प्रस्तुति
डाॅ.सरस्वती माथुर
ए-2,सिविल लाइन
जयपुर-6

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