डाँ सरस्वती माथुर
" नववर्ष का चाँद "
डॉ सरस्वती माथुर
कल से नया साल शुरू हो जायेगा । आज साल का आख़िरी दिन है अच्छा बीतना चाहिये सोच कर राधा देवी ने रोज की तरह अपना कंप्यूटर ऑन किया ,पासवर्ड देकर अपनी डायरी का पन्ना खोला लेकिन जाने क्यूँ उनका कुछ भी लिखने का मन नहीं हुआ l उनकी बहू विभा कंप्यूटर इंजिनियर थी,उसने उनकी वेबसाइट बना दी थी और जब भी वह अमेरिका से आती थी, उन्हें काफी कुछ सिखा जाती थीं l कंप्यूटर विंडो पर "गूगल" की खिड़की खोल कर राधा देवी ने सरसरी निगाहें डाली ,देखा कोई भी ऑनलाइन नहीं है , न उनके बच्चे न पति l वे उठीं और मेज़ पर बिखरे कागजों में कुछ ढूँढ़ने लगीं l उनके जन्मदिन पर बच्चों का अमेरिका से ग्रीटिंग कार्ड आया था l उन्होंने एक सरसरी निगाह उस कार्ड पर डाली- फिर "अमृतयान निकेतन काटेज "की अपनी बालकॉनी में कुर्सी पर बैठ कर वे वहां से दिख रही झील को देखने लगी l
अमृतयान निकेतन चारों तरफ से पेड़ों से घिरा था, यहाँ से हरी- हरी पहाड़ियाँ- गुनगुनी सी धूप में बिलकुल साफ़ दिखाई देती थी l इस अमृतयान की सफ़ेद ईमारत जो पहाड़ी और पानी की झील के बीच बनी हुई थी ,राधा देवी को बहुत अच्छी लगती थी l इसी आनासागर झील के ऊपर निकेतन का लान था ,जहाँ अक्सर चहल पहल रहती थी l नीचे की तरफ घास का स्लोप जाता था ,जिस पर थोड़ी- थोड़ी दूरी पर बैठने की बैंचें थीं l उसके नीचे से एक पगडण्डी सीधे झील की तरफ उतर गयी थी l जब भी बच्चे आते थे ,वे उनके साथ झील की बारहदरी तक टहलने जाती थी l
कल की सी बात लगती है... वे जीवन की आपाधापी में भागती दौड़ती रहती,ऑफिस की निर्धारित समय सारणी से समय निकाल कर ,कार चला कर अमृतयान निकेतन की सभा में जाती,घर आकर खाना बनाती,बच्चों के स्कूल की टीचर पैरेंट्स मीटिंग में अक्सर उनको ही उपस्थितिथि दर्ज करनी होती थी l धीरे- धीरे समय पंख लगा कर उड़ गया l अब तो बच्चे भी घरोंदा छोड़ कर अलग- अलग दिशाओं में उड़ गए है l बेटी बेला की शादी एक संपन्न परिवार में यथासमय हो गयी है और बेटा पलाश अमेरिका में माईक्रोसोफ्ट में इंजिनियर है l बहू भी उसी के साथ काम करतीहै l एक प्यारा सा पोता है-- साहिल और एक दोहिती है जिया l बच्चों से कंप्यूटर पर रात दिन चैटिंग चलती रहती है ,जिसकी वज़ह से राधा देवी को कभी अकेलापन नहीं लगता है !पति का टिम्बर बिजनेस अच्छा चल रहा है l वे उसमे इतने व्यस्त रहते है --- समय ही नहीं मिलता उन्हें, बिजनेस के सिलसिले में ज्यादातर बाहर आना जाना रहता पड़ता l रा धा देवी को आज भी अतीत के पुराने दृश्य दिखते रहते हैं-..... .अभी दो साल पहले ही उन्होंने अमृतयान निकेतन में आना जाना शुरू किया था l पिछली दिनों ही सेवा निवृतिके बाद से उन्होंने जल्दी जल्दी आना शुरू किया था l यह संस्था एक अस्पताल का हिस्सा थी! जहाँ साठ साल बाद से बुजुर्ग महिला पुरुष अपना दिन गुजारने आते थे l बहुत सी वरिष्ठ सदस्य यहाँ के कॉटेज में ही रहते थे और कई शाम को घर लौट जाते थे !अस्पताल द्वारा निशुल्क इलाज़ भी उनका हो जाता था और हम उम्रों से मिलना जुलना भी lइस संस्था के संस्थापक की बेटी उनके बचपन की सहेली थी l उसके आग्रह पर वे इस संस्था से जुड़ गयीं और यहाँ के प्रशासनिक कार्यों को सँभालने लगीं --- उनके पति शुरू में तो आश्चर्य में पड़ गए थे l फिर उनकी लगन देख कर कुछ नहीं बोले ! वे वैसे ही इस शहर में चार छह महिन्रे ही रह पाते थे l पिछले दिनों वह भी राधा देवी के पास रहने गए थे l उन्हें भी लगा की राधा देवी का दिल भी लग जायेगा और वे लेखन सृज़न भी कर सकेंगी !अमृत यान संस्था की निर्धारित समय- सारिणी राधादेवी को काफी व्यस्त रखती थी l कभी चिकित्सा शिविर आयोजित करवातीं l कभी संस्था के लिए फाईनेंस जुटाने के लिए इधर उधर जातीं l संस्था के सभी सदस्यगण साथ मिल कर नाश्ता ,लंच ,डिनर करते थे, बड़ा सादगी ,सोहार्दय पूर्ण हंसी- ख़ुशी का माहौल रहता था l श्रीमती पुरीके चुटकुले तो इस नाश्ता- सभा का सबसे बड़ा आकर्षण होता है l अभी कल ही उन्होंने सुनाया था की आजकल हम जिस युग में जी रहे हैं, वह बहुत एडवांस है l सभी सदस्यों ने यह सुनकर कुछ उत्सुुकता ,कुछ चिंता से उनकी ओर प्रश्नवाचक निगाहें डाल दीं l वे मुस्करानें लगीं...चुटकुला सुनाने लगीं ..."एक बच्चे का जन्म हुआ ,नर्स उसको नहला- धुला कर माँ के पास ले जाने को तैयार हो रही थी तो बच्चा बोला -"नर्स जी ,आपके पास मोबाईल है? "
नर्स ने कहा -"हाँ क्यों ?"
बच्चा बोला ..." मोबाईल से बात करके ईश्वर को सन्देश दे दूं कि मैं ठीक से पहुँच गया हूँ l"
सभा में एक ठहाका गूंजा और हाल की खिड़की से निखर आई दिसंबर माह की धूप- किरणों के साथ सबको तरोताजा कर गयी l श्रीमती पुरी के जवाब में हँसते हुए श्रीमती कुंतल ने आगे जोड़ा ..."सही है मैडम आने वाले समय मैं बच्चे पैदा होते ही बोलने लगेंगे" l सभी सदस्य एक बार फिर हंसने लगे ! राधा देवी अतीत से एक बार फिर वर्तमान में लौट आयीं... l
दिसंबर के आखिरी हफ़्ते से ही धूप थोड़ी सी सुहावनी रेशम सी गरमाहट देने वाली लगने लगती है l राधा देवी ने बालकोनी में पसरी धूप को हथेलियों से छुआ l धूप की एक रेखा अमृत यान संस्था के लान में लगे फव्वारे पर चिड़िया की तरह हिल रही थी l बाहर मौसम सुहावना था... पर उन्हें अब सत्संग हाल में जाना था कुछ काम भी निपटाने थे l वे उठीं और तैयार होकर कमरे में ताला लगा कर तेज कदमों से सत्संग हाल की तरफ चल पड़ीं !
शाम कब हो गयी राधा देवी को रोज की तरह पता ही नहीं चला !इस शहर में दिन की रौशनी ख़त्म नहीं होती थी कि आकाश में तारे टिमटिमाने लगते थे l दूर की पहाड़ियों से चाँद शर्माता हुआ निकल आता था !
आज वर्ष का आख़िरी दिन था । वे जीना चढ़ कर ऊपर आयीं ..गलियारा पर किया और कमरे के आगे जल रही धुंधआती बत्ती के नीचे खडी हो गयी ...जो उनके कमरे के आगे जल रही थी l चाबी पर्स से निकाल कर जैसे ही उन्हने ताला खोलने को हाथ बढाया विस्मित होकर चीख सी पड़ीं ...दरवाजा खुला था ...तो क्या उनके पति लौट आये हैं ? उन्होंने धक्का देकर दरवाजे को धीरे से ढुरकाया तो एक क्षण के लिए अनोखे विस्मय भरे अनुभव में डूब गयीं ....वहां सामने स्वागत की मुद्रा में खड़े थे ...पलाश , उनकी बहू बेला ,पोता- साहिल ,दोहिति -जिया और उनके पति विश्वास ...सब एक स्वर में बोले ..."सरप्राइज .....".और फिर स्वर में गूंज उठी एक मीठी सी स्वरलहरी ..."हैप्पी बर्थडे टू यू डियर ..माँ ....मे गाड़ ब्लेस यू ...!"
राधा देवी को क्या मालूम था कि एक खास शाम उनका इंतज़ार कर रही थी ....परिवार के शोरगुल और स्नेह के इन सूत्रों में एक पल में उनका जीवन बदल दिया था l
"अब समझी तभी तुम लोग ऑनलाइन नहीं दिख रहे थे... मुझे चिंता भी हुई... फोन पर वायस मेल लगा था ."वे मुस्करायीं ।
"हमने पापा के साथ मिलकर तय कर लिया था कि इस बार आपकी षष्टीपूर्ति जन्मदिन और नववर्ष हम धूमधाम से मनाएंगे ...." बहू ने राधादेवी को बाँहों में समेट कर कहा था तो पलाश ने भी अपनी दोनों बाहें माँ के इर्द गिर्द लपेट दी l राधा देवी को लगा इससे अच्छी जिन्दगी और क्या हो सकती है कि आपके जन्मदिन को बच्चों ने महत्व दिया....अमेरिका से भारत तक आये हैं ..उनका जन्मदिन व नववर्ष का उत्सव साथ मनाने ।
आज अमृतयान निकेतन के इस कोटेज के कमरे में एक विशेष सुगंध थी ,कमरा फूलों से भरा था और मेज़ पर एक केक रखा था l जीवन का संयोग देखिये राधादेवी का जन्मदिन भी एक जनवरी को हुआ था इसलिये हर वर्ष एक उत्सव का भाव परिवार वालों की आँखों में उन्हें हमेशा नज़र आता था । 31 दिसंबर की रात से ही धूमधाम चालू हो जाती थी।राधा देवी को एक हलके विस्मय के साथ सब कुछ सपने सा लग रहा था .. वे जीवन के सुंदर उद्धरण पर पहुँच गयी थीं !परिवार अगर एकसूत्र रहे, स्नेहहिल हों, तो जीवन गतिमान हो जाता है , एक स्वप्निल सी मुस्कराहट उनके पति के चेहरे पर भी थी l पोता ...दोहिती एक स्वर में दादी से कह रहे थे ..
"दादी माँ केक काटो न...... ..."
राधा देवी जैसे किसी लम्बी नींद से जगीं ,परिवार ने उन्हें मेज़ के इर्द गिर्द चारों ओर से घेर रखा था l जलती मोमबत्ती का प्रकाश राधादेवी के चेहरे पर दीप्त हो गया था मनोरम नववर्ष क़ी अगवानी में सर्द सी मनभावन हवा कमरे के भीतर आ रही थी l राधादेवी को लगा क़ि बस यही वह पल हैं जब आदमी चाहता है क़ि कुछ क्षण के लिए यह वक्त ठहर जाये l खिड़की से झाँकता चाँद भी मुस्कराता हुआ दूधिया चांदनी बरसाता हुआ ऊपर उठ रहा था । जनवरी माह क़ी रौशनी में एक नीली सी धुंध झील पर भी घिर आई थी l राधा देवी ने केक खिलाते अपने बच्चों एवम पति को जब प्यार से देखा तो एक हलकी सी कृतज्ञता क़ी मुस्कराहट उनके चेहरे पर भी झलक आई थी !
डॉ सरस्वती माथुर
ए -२ सिविल लाइन
जयपुर-६
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