मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

यादें .....
मन गगन
यादों की चिड़िया का
लगा है मेला l

यायावर सी
मन के जंगल में
भटकी यादें l

झंडिया बन
हवा में मस्तूल सी
यादें झूमतीं l

चुभती हवा
धकेल मन द्वार
यादें ले आयी l

नीलगगन
केसरिया चाँदनी
चमकी यादें l

कॉल बैल सी
बजती रहती
यादें तुम्हारी l

याद किसी की
डरो दीवार पर
जमी काई सी l

ज्वारभाटा था
यादों में उछालता
मन सिंधु में l

मन के पन्ने
यादों के चित्र खींच
भरते गये l

कोयल बोली
मन में जागी यादें
तो आँखें खोली l

पिक न बोला





व्याकुल जंगल ने
बदला चोला l


अनुभूतियाँ ....

पीड़ा की धारा 
देता रहा हरदम
घात तुम्हारा l

ब्रह्म हो गया
जब नाद ढ़ोल का
मिठास घुली l

आओ तोड़ दें
दूरी के अंतराल
मन जोड़ के l



सर्प दृष्टि से
टटोला इंसान का

राहें बदली l

नृत्य करती
जादूगरनी हवाएँ
मायावी मन l

हवा उड़ाए
सतरंगी घाघरे
खिले फूलों के l

हवा कुतरे
शाखाओं के पातों को
गिलहरी सी l

बैरागी हवा
पहाड़ों पे जाकर
मौन साधता l


आये जो पंछी
मौसम भी बदला
झील किनारे l

पायल बज़ी
झरनो के पानी पे
हवाएँ नाचीं l

सर्द हवाएँ ....
सर्द हवाएँ
शाम की पुरवाई में
थिर हो जमी l

पतझड़ .....

आशा उमंग
पतझड़ आते ही
सन्नाटा बुने l

रेत से दिन
उड़ते फिरते हैं
पतझड़ में ।


सूर्य....
धूप की मीन

'सागर में  तैरती
सूर्य का जाल l

कल जो डूबा
गूंगा सा सूर्य
लो फिर आया l

अंधेरा आया
सूरज दबोच के
धरा पे छाया ।


अंधी सुरंग
सागर में जाकर
सूर्य छिपाती l


धूप .....
धूप की लटें
संवार के सूर्य ने
किया उजारा l

 l

अकेलापन ....
अकेला मन
नयी उड़ान पर
चक्करघिनी l


चाँद - चाँदनी ....
चाँद  डोरी से
गठजोड़ बांधती
मन चाँदनी l




झील पे रुका
चाँद  चाँदनी संग
तारे भी तैरे l

छिपता चाँद
रात के आँचल में
बादल ओढ़ l

चरखा नभ
चाँद  चाँदनी संग
रात कात्तता l


जुगनू ....
फैलती गयी
जुगनुओं की आभा
तंम पीकर l




सितारों जैसा
टिमटिमाते देखा
जुगनू मन l


प्रेम .....
भँवरा  काला
हर समय बुने
प्रेम का जाला l

प्रेम भँवर
उत्सवी मौसम में
ढाये कहर l


मन का घड़ा
 प्रेम रस से भरा
 छलक गया

फूल- कलियाँ .....
भँवरे  झूमें
कलियों के पाता
खुलते गये l

खिली कलियाँ
भँवरों ने मिल के
गीत सुनाये l
धूप
मौसम धूप
छाँह  पर छाई तो
फूल मुस्कुराते।

अँजुरी भर
सूर्य  पीकर  धूप
धरा पे आई।


भँवरे  झूमें
कलियों के
खुलते गये





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