मंगलवार, 24 नवंबर 2015

कुछ कवितायें

1
जीवन के अजायबघर में
जन्तु सा था मन
बहुत भागदौड़ से
जर्जर हुआ तन
श्रम का जुगुनू
 रात दिन चमके
 पाया बहुत कुछ
जोड़ तोड़ के मनके
घूमते रहे स्वप्न नग्न
बुढ़ाया मौसम था
 उड़ा कपास सा
हाथों की मेज पर
फिंटता गया ताश सा
 बन गए थे भुवन l
2
स्वप्न घोंसले में
मन कबूतर था उदास
चिंता थी खाने की
जीवन नैया थी
 बहते ही जाने की
बहते ही गए धार में
रुपैया कमाने की
वक्त वो था खास
जिंदगी के तवे पर
सेंकते रहे रोटी
आपाधापी की फैली
चारों तरफ कसौटी
हंसी उड़ती गई
जंगल जलेबी से
दिन तोड़ तोड़ बिताए
 बदलाव के दिन
 जब थे आये
 मुखौटे दो बनाए
 रिश्ता न बचा पास l
3

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