1
"मैं जीना चाहती हूँ !"
एक गिलहरी की तरह
कभी कभी मैं
कभी कभी मैं
कुतरती हूँ
अपना वक्त
जो घसियारे सा
काटता रहता है मुझको
और बंद रखता है
देह पिंजरे में रूह को
मैं खोलना चाहती हूँ
इस देह का पिंजरा
ताकि उड सकूँ
रात में सपने का
बुक्कल पहन
सुदूर आसमान में
और फिर भोर होते ही
लौट आऊँ
देह के पिंजरे में
क्यूंकि मैं जीना चाहती हूँ
फूलों के रंगों के साथ
बसंत के मौसम के साथ
चाँद तारों की रात के संग
भिनसारे में चहकती
चिड़िया के संग
मैं देखना चाहती हूँ
उगते सूरज के संग
उगती सिंदूरी लाली
अपना वक्त
जो घसियारे सा
काटता रहता है मुझको
और बंद रखता है
देह पिंजरे में रूह को
मैं खोलना चाहती हूँ
इस देह का पिंजरा
ताकि उड सकूँ
रात में सपने का
बुक्कल पहन
सुदूर आसमान में
और फिर भोर होते ही
लौट आऊँ
देह के पिंजरे में
क्यूंकि मैं जीना चाहती हूँ
फूलों के रंगों के साथ
बसंत के मौसम के साथ
चाँद तारों की रात के संग
भिनसारे में चहकती
चिड़िया के संग
मैं देखना चाहती हूँ
उगते सूरज के संग
उगती सिंदूरी लाली
जो ओढ़े रहती है
सिंदूरी पल जब वो
सागर का चुंबन कर
धूप के मोती लुटाती है
सिंदूरी पल जब वो
सागर का चुंबन कर
धूप के मोती लुटाती है
मैं जीना चाहती हूँ
तितलियों के संग
जो फूलों पर उड
उनसे मकरंद चुराती है
मैं डूबी रहना चाहती हूँ
रिश्तों की चाँदनी में
और थोड़ा- थोड़ा
छूट जाना चाहती हूँ
सभी अपनों के दिल में
धड़कन की तरह !
डॉ सरस्वती माथुर
तितलियों के संग
जो फूलों पर उड
उनसे मकरंद चुराती है
मैं डूबी रहना चाहती हूँ
रिश्तों की चाँदनी में
और थोड़ा- थोड़ा
छूट जाना चाहती हूँ
सभी अपनों के दिल में
धड़कन की तरह !
डॉ सरस्वती माथुर
2
"बीज़ हूँ मैं !"
बीज़ हूँ मैं
वहीं उगी
जहां गिरी थी
जहां गिरी थी
कच्चा पौधा जब उगा
तो बहुत मुलायम था
हरा था
हर पौधे और
फूल का
होता है अपना रंग
उसके बढ्ने की विधि
मेरा भी एक रंग था
विकास की प्रक्रिया थी
सो बढ़ती रही
पौध से पेड़ बनी
पौध से पेड़ बनी
शाखाओं सी फैली
पातों ने
हवाओं से सोखीं
रसभीगी नमी
रसभीगी नमी
मेरे तने को दी
एक मजबूत जमीं
यहीं फैलूँगी अब
फल दूँगी और
बीज़ बन कर
बीज़ बन कर
बार बार उगूँगी
बस मेरी इस माटी को
उर्वर रहने देना
बस उर्वर रहने देना
डॉ सरस्वती माथुर
डॉ सरस्वती माथुर
3
"नीम खामोशी में !"
मैं फिर चढ़ूँगी
उगते सूरज सी
सपनों के पहाड़ों पर
मौसम की
अनमन हवाओं में
और धूप बन
झरती रहूँगी
हर मौसम में
बस चौमासे में
निरंतर न
आ पाऊँगी क्यूंकी
तब बादलों का
साथ निभाऊँगी
हाँ संध्या में
चाँदनी बन चाँद संग
हवाओं की सरगम में
नए गीत
गुनगुनाऊँगी और
फूलों से रंग चुरा के
तितली बन
बसंत के मौसम में
रसपगी रागिनी छेड
नूपुर सी बज़
पतों -शाखों में समाकर
हरियाली बन जाऊँगी
पर तब तक मुझे
अन्तर्मन की
नींद नदी में
ख्वाब बन कर बहने दो
अपने ही मन की
नीम खामोशी में
कैद रहने दो !
डॉ सरस्वती माथुर
मैं फिर चढ़ूँगी
उगते सूरज सी
सपनों के पहाड़ों पर
मौसम की
अनमन हवाओं में
और धूप बन
झरती रहूँगी
हर मौसम में
बस चौमासे में
निरंतर न
आ पाऊँगी क्यूंकी
तब बादलों का
साथ निभाऊँगी
हाँ संध्या में
चाँदनी बन चाँद संग
हवाओं की सरगम में
नए गीत
गुनगुनाऊँगी और
फूलों से रंग चुरा के
तितली बन
बसंत के मौसम में
रसपगी रागिनी छेड
नूपुर सी बज़
पतों -शाखों में समाकर
हरियाली बन जाऊँगी
पर तब तक मुझे
अन्तर्मन की
नींद नदी में
ख्वाब बन कर बहने दो
अपने ही मन की
नीम खामोशी में
कैद रहने दो !
डॉ सरस्वती माथुर
क्षणिकायेँ
1)
नि:शब्द मन
कितना कुछ कहता है
बिलकुल वैसे ही
जैसे मौन पहाड़ से
निकल कर झरना
हाहाकार मचाता
जाने क्यों
बिखरी धुंध की
बुक्कल ओढ़
नदी से मिल
कलकल रोता है l
2)
अलाव सा
कभी कभी हो जाता है
मन हुमारा
जलता- बुझता
सर्द मौसम में
ताप भरता
फिर ठंडा हो
राख़ हो जाता है
कभी कभी उड
जज्बाती हवाओं में
बिखर खो जाता है l
3 )
अब पहचान के
रंगीन दायरे
बहुत सिमट गये हैं
सम्बोधन के
मीठे चिरौरी से
शहदीले शब्द भी
मुखर नहीं रहे
जाने क्यों
प्रीत प्रेम के रंग
अब चढ़ते नहीं
शायद रंगने वाले
अब रंगरेज़ नहीं रहे l
4)
पहचानने लगी हूँ
अब उन लोगों को
जो शब्दों से
बिछाते हैं
परिचय का बिछौना और
मौसम बदलते ही
विश्वास का चेहरा
बदल लेते हैं !
5 )
पीले पन्नों पर
धुंधले पड गये
चिट्ठियों के अक्षर
पर उन यादों का
क्या करूँ जो
वक्त के साथ
गहरी होती जाती है l
डॉ सरस्वती माथुर
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परिचय :
नाम : डॉ सरस्वती माथुर
शिक्षाविद एवम सोशल एक्टिविस्ट ,कवियत्री-लेखिका - साहित्यकारव हाइकुकार
साहित्य :देश की साहित्यिक पत्रिकाओं में कवितायेँ ,कहानियां ,आलेख एवम नये नारी सरोकारों पर प्रकाशन
प्रकाशन ४ कृतियाँ प्रकाशित व साझा संकलन में कवितायें ,हाइकु संकलित
काव्य संग्रह :दो
1॰एक यात्रा के बाद
2.मेरी अभिव्यक्तियाँ
जयपुर विगत कई वर्षों से निरंतर लेखन। कविता, कहानी, पत्रकारिता, समीक्षा, फ़ीचर लेखन के साथ-साथ समाज साहित्य एवं संस्कृति पर देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन।
शिक्षा व सामाजिक सरोकारों में योगदान, साहित्यिक गोष्ठियों व सामाजिक कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी, विभिन्न साहित्यिक एवं शिक्षा संस्थाओं से संबद्ध, ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया, पब्लिक रिलेशंस सोसाइटी ऑफ़ इंडिया राजस्थान चैप्टर की सदस्य।
शिक्षा व सामाजिक सरोकारों में योगदान, साहित्यिक गोष्ठियों व सामाजिक कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी, विभिन्न साहित्यिक एवं शिक्षा संस्थाओं से संबद्ध, ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया, पब्लिक रिलेशंस सोसाइटी ऑफ़ इंडिया राजस्थान चैप्टर की सदस्य।
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डॉ सरस्वती माथुर.
कविता क्या है मेरे लिये ....
मेरे लिये जीवन ह़ी कविता है ,कविता ह़ी जीवन है l कविता की लाखों परिभाषाएं हैं क्युंकि उसके आयाम अनेकों हैं, नींद में साँस चल रही है वह भी लयात्मक कविता है , जहाँ गति है वहाँ कविता है ...कविता एक साधना है, भावना हैl कविता ... सृष्टि ,देश, समाज, परिवार, प्रकृति ,अहसास- अनुभूति और अभिव्यक्ति का कलात्मक आकलन है, साक्षात् इश्वर से बातचीत का
माध्यम है ! शायद इसलिए मेरी अभिव्यक्ति कि केंद्रीय विधा भी कविता ह़ी है .
नाम : डॉ सरस्वती माथुर
नाम : डॉ सरस्वती माथुर
परिचय :
:शिक्षाविद , कवयित्री,लेखिका सोशल एक्टिविस्ट
शिक्षा : एम.एस .सी (प्राणिशास्त्र ) पीएच .डी
,पी. जी .डिप्लोमा इन जर्नालिस्म ( गोल्ड मेडलिस्ट )
प्रकाशन
,पी. जी .डिप्लोमा इन जर्नालिस्म ( गोल्ड मेडलिस्ट )
प्रकाशन
कृतियाँ :
काव्य संग्रह : एक यात्रा के बाद
मेरी अभिव्यक्तियाँ,
मोनोग्राम : राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानी : मोनोग्राम हरिदेव जोशी
विज्ञान : जैवप्रोधोयोगिकी ( Biotechnology ) पुरूस्कार /सम्मान :
प्राप्त पुरस्कार / सम्मान: दिल्ली प्रेस द्वारा कहानी " बुढ़ापा "पुरुस्कृत १९७० में एवं अन्य पुरस्कार
भारतीय साहित्य संस्थान म.प्र .द्वारा काव्य में बेस्ट कविता के लिये
Felicitation & अवार्ड given by Association ऑफ़ : डिस्ट्रिक्ट झालावाड द्वारा साहित्य में योगदान के लिये !
भारतीय साहित्य संस्थान म.प्र .द्वारा काव्य में बेस्ट कविता के लिये
Felicitation & अवार्ड given by Association ऑफ़ : डिस्ट्रिक्ट झालावाड द्वारा साहित्य में योगदान के लिये !
जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल के कवितानामा में भागीदारी
काव्य व हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान से सम्मानित
विगत कई वर्षों से निरंतर लेखन। कविता, कहानी, पत्रकारिता, समीक्षा, फ़ीचर लेखन के साथ-साथ समाज साहित्य एवं संस्कृति पर देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन।
शिक्षा व सामाजिक सरोकारों में योगदान, दूरदर्शन- आकाशवाणी ,साहित्यिक गोष्ठियों व सामाजिक कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी, विभिन्न साहित्यिक एवं शिक्षा संस्थाओं से संबद्ध, ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया, पब्लिक रिलेशंस सोसाइटी ऑफ़ इंडिया राजस्थान चैप्टर की सदस्य।पीआरसीआई वुमेन विंग ) की फॉर्मर चेयरपर्सन ,गिल्ड ऑफ वुमेन अचिवर्स की स्रजस्थन प्रतिनिधि !
शिक्षा व सामाजिक सरोकारों में योगदान, दूरदर्शन- आकाशवाणी ,साहित्यिक गोष्ठियों व सामाजिक कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी, विभिन्न साहित्यिक एवं शिक्षा संस्थाओं से संबद्ध, ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया, पब्लिक रिलेशंस सोसाइटी ऑफ़ इंडिया राजस्थान चैप्टर की सदस्य।पीआरसीआई वुमेन विंग ) की फॉर्मर चेयरपर्सन ,गिल्ड ऑफ वुमेन अचिवर्स की स्रजस्थन प्रतिनिधि !
संपर्क:
नाम : डॉ सरस्वती माथुर
ए---२ , हवा सड़क ,सिविल लाइन ,जयपुर-६
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.नाम : डॉ सरस्वती माथुर
( ऍम .एस.सी ,पी .एच. डी)
जन्मतिथि: 5 अगस्त
शिक्षाविद एवम सोशल एक्टिविस्ट
साहित्य :देश की साहित्यिक पत्रिकाओं में कवितायेँ ,कहानियां ,आलेख एवम नये नारी सरोकारों पर प्रकाशन
प्रकाशन ४ कृतियाँ प्रकाशित
संपर्क :ए -२ ,सिविल लाइन
जयपुर विगत कई वर्षों से निरंतर लेखन। कविता, कहानी, पत्रकारिता, समीक्षा, फ़ीचर लेखन के साथ-साथ समाज साहित्य एवं संस्कृति पर देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन।
शिक्षा व सामाजिक सरोकारों में योगदान, साहित्यिक गोष्ठियों व सामाजिक कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी, विभिन्न साहित्यिक एवं शिक्षा संस्थाओं से संबद्ध, ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया, पब्लिक रिलेशंस सोसाइटी ऑफ़ इंडिया राजस्थान चैप्टर की सदस्य।...
शिक्षा व सामाजिक सरोकारों में योगदान, साहित्यिक गोष्ठियों व सामाजिक कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी, विभिन्न साहित्यिक एवं शिक्षा संस्थाओं से संबद्ध, ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया, पब्लिक रिलेशंस सोसाइटी ऑफ़ इंडिया राजस्थान चैप्टर की सदस्य।...
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