सोमवार, 2 नवंबर 2015

सेदोका....२।११।१५

सेदोका
1.
मन लहरें
उठती गिरती हैं
सुधियों के सागर
बूंदें बन के
सीपियों के खोल में
मोती सी ढलती हैं l
2
परिक्रमा की
सूर्य ने धरती पे
समूचे क्षितिज पे
धूप चमकी
नए नए रंगों से
धरती भी दमकी l
3
रतजगा था
चाँद का गगन में
उनींदी हो चाँदनी
भोर हुई तो
धूप सेज सज़ा के
सागर में जा सोयी l
4
गीत गाती है
बहना चाहती है
नदिया कलकल
दूर जाती है
समुन्द्र में समा के
 गहरी थाह पाती l
5
सूर्य का घोडा
 हिनहिनाते हुए
धूप के पीछे दौड़ा
 धरा  को छूके
 धूप कूदी सिंधु में
  छिपी क्षितिज  पार l
6
 गुडीमुडी सी
हवाओं नें जगाया
तो कुलबुला कर
 तरु पे बैठे
पंछियों के झुंड भी
घोंसलों से निकले l

डॉ सरस्वती माथुर


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