"लक्ष्मी का आवाहन !"
घर पावन मन भी पावन
दीप ज्योति लगती मनभावन
रोशनी की नदी
चहुं ओर बह रही
मन मंदिर बन गया
जन जन से कह रही
लक्ष्मी माँ का आवाहन
दीप ज्योति लगती मनभावन
पूजा थाल में
मेवे संग मिठाई है
अनार पटाखों की गूंज
चहुं ओर छाई है
द्वार पर बंदनवार सुहावन
दीप ज्योति लगती मनभावन
डॉ सरस्वती माथुर
चहुं ओर बह रही
मन मंदिर बन गया
जन जन से कह रही
लक्ष्मी माँ का आवाहन
दीप ज्योति लगती मनभावन
पूजा थाल में
मेवे संग मिठाई है
अनार पटाखों की गूंज
चहुं ओर छाई है
द्वार पर बंदनवार सुहावन
दीप ज्योति लगती मनभावन
डॉ सरस्वती माथुर
माहिया
ज्योति की बंदनवार
तुम कब आओगे
सजन जी मेरे द्वार l
देहरी दीपक जला
मन के आँगन से
अमावस का तम ढला
है दीप संग बाती
आई दिवाली
यादें तेरी आती l
है प्रेम दीप जलता
सपनों का सजना
नैनो में आ मिलता l
मुक्तक
लड़ियों के हैं हार
दीप पर्व तैयार
जन जन पे छाया
सज़ा घर परिवार
................................
हाइकु
दीपमालिके
अन्तर्मन में जल
तम हरती l
धरा पे बहे
मावस की रात को
दीप झरने l
बाती जलती
पंक्तिबद्ध दीपों को
पूनम करतीl
अंधेरा गले
दीप से दीप जब
संग में जले l
दीपों की चाह
अंधेरा चीर
बनाना राह l
दीप के हार
रोशनी की लड़ियाँ
आँगन द्वार l
बाती सा प्रेम
मन दिये में रख
जलाना होगा।
.........
"दीवाली शुभ आई!"
....तिमिर मिटाने
सजी लड़ियाँ दीपों की
दीवाली शुभ आई
चहुं दिशाएँ
जगमग चमकी
रातरानी लहराई
आँगन चौबारों में
रँगोली थापी
पटाखों से रातें काँपी
अमृत बरसाती
पावन धरा पर
लक्ष्मी माता मुस्कुराईं
बंदनवारों से
घर देहरी हल्की
जयोतिमय फुलझडियां
चिडचिड करती चहकीं
समता सदभाव । करूणा की
अनुपम ज्योत झिलमिलाई।
........
.सेदोका
1
दीप प्रेम का
विश्वास की बाती से
जला के रख दिया
मन के द्वारे
रोशन हो चमके
घर आँगन द्वारे l
2
मावसी रात
घर आँगन द्वार
ज्योतिर्मय कर
तिमिर हरा
आस्था की बाती जला
दीप में तेल भरा l
3
तांका
घर में जले
जब दीप माटी के
अन्तर्मन का
तिमिर भी भागा
सद्भाव की बाती से
........................................
गीत
"जल रे दीप जल !"
बाती को बांध कर
जल रे दीप जल
कभी ना छाने पाये
कालिमा का पाखंड
आँधी तूफानो में भी
लौ को रखना अखंड
करना नहीं छल
जल रे दीप जल
सद्भाव की बांध डोरी
बंदनवार सजाना
बन चाँद की चकोरी
मंगलदीप जलाना
मिलेगा मन को बल
जल रे दीप जल l
डॉ सरस्वती माथुर
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कविता
आज भी मिलता है
राम को वनवास
पर वो दिखता नहीं है
सच के राम हारते भी हैं
विश्वास के कुंभकरण
कहाँ समय से जागते हैं?
लक्ष्मन का ईमान भी
कभी बिकता नहीं है
पर वो दिखता नहीं है
आज भी सीता की होती है
आए दिन अग्नि परीक्षा
आज भी कैकई देती है
भरत को झूठी शिक्षा
हाँ वो झुकता नहीं है
पर वो दिखता नहीं है
कपट छल फैला हुआ है
घर घर में देख लो
सब का मन मैला हुआ है
लंका भेदी आज भी हैं
पर कपटी रावण
कभी मरता नहीं है
पर वो दिखता नहीं है l
डॉ सरस्वती माथुर
आओ दिवाली मनाएँ
मन का मैल धो डालें
नयाऐशता बांध कर
एक नया युग ले आयें
आओ दिवाली मनाएँ
झूठ सच चलता रहेगा
पाप पुण्य का तराजू
ऊपर नीचे हिलता रहेगा
पर हम अगर अकेले ही
चल कर संग कारवाँ
एक नया बांध कर
कर्म साध कदीलों
न
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