Shwet Swati Deep
शुक्रवार, 3 जुलाई 2015
त्रिवेणी में आज डॉ सरस्वती माथुर के सेदोका
त्रिवेणी में आज
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डॉ सरस्वती माथुर के सेदोका
त्रिवेणी
ताँका-चोका- सेदोका -माहिया-हाइबन
Tuesday, June 30, 2015
तांत्रिक- सी हवाएँ
डॉ सरस्वती माथुर
1
गर्मी के दिन
धूप की रसधार
सूरज की तीली से
जलती हवा
धरती पर भागे
खींचे- ताप के धागे
।
2
कभी कभार
अतीत आ जाता है
जब बहुत पास
मन पाखी- सा
उड़ जाता है दूर
बेगाना लगता
है
।
3
भीड़ भरी हैं
जिंदगी की राहें भी
असंख्य चेहरे हैं
जो दिशाहीन
गंतव्य के बिना ही
दौड़ते जा रहें हैं
।
4
जुगनू -मन
दीप- सा जलकर
झिलमिल करता ,
पूनम बन
अमावस पीकर
रोशनी को भरता
।
5
छल ही छल
तांत्रिक
-
सी हवाएँ
भूलभुलैया राहें,
कैद है मन
सुधियों के आँगन
जीवन भी छलिया
।
6
पहाड़ों पर
जब उनींदी धूप
सुरमई हो जाती,
पहाड़ी घाटी
मौन रह कर भी
खूब बातें
करती
।
-0-
5 comments:
ज्योति-कलश
said...
बहुत सुन्दर भावपूर्ण सेदोका !
कभी कभार ....,भीड़ भरी हैं ...छल ही छल ..मन को छू गए |
डॉ. सरस्वती माथुर जी को बहुत बधाई !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
June 30, 2015 at 10:17 PM
Krishna
said...
भावपूर्ण सेदोका...कभी कभार, छल ही छल बहुत बढ़िया लगे .....हार्दिक बधाई!
June 30, 2015 at 11:18 PM
Kamla Ghataaura
said...
वाह बहुत सुंदर सेदोका सरस्वती जी। गर्मी के दिन वाला की पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं। … धरती पर भागे /खींचे ताप के धागे। … जुगनू मन भी भा गया … अमावस पी कर रौशनी को भरता। बधाई।
July 1, 2015 at 2:20 AM
Dr.Bhawna
said...
कभी कभार
अतीत आ जाता है
जब बहुत पास
मन पाखी- सा
उड़ जाता है दूर
बेगाना लगता है ।
Bahut bhavpurn meri hardik badhai...
July 1, 2015 at 11:30 AM
Asha Pandey
said...
अच्छी रचना…बधाई आपको.
July 1, 2015 at 3:19 PM
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5 comments:
कभी कभार ....,भीड़ भरी हैं ...छल ही छल ..मन को छू गए |
डॉ. सरस्वती माथुर जी को बहुत बधाई !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
वाह बहुत सुंदर सेदोका सरस्वती जी। गर्मी के दिन वाला की पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं। … धरती पर भागे /खींचे ताप के धागे। … जुगनू मन भी भा गया … अमावस पी कर रौशनी को भरता। बधाई।
अतीत आ जाता है
जब बहुत पास
मन पाखी- सा
उड़ जाता है दूर
बेगाना लगता है ।
Bahut bhavpurn meri hardik badhai...