1
जीवन नींव
पिता ने खोद कर
गढा बच्चों को l
2
पिता सूर्य से
माँ चाँद सी शीतल
बच्चे सितारे !
3
पिता का साथ
जीवन की राहों में
दिव्य सौगात l
4
घर देहरी
दीप्त दिव्य ज्योति से
परम पिता l
5
बहते धारे
कलकल करते
पिता हमारे l
6
आशीर्वाद का
प्रेमपाश फैलाये
पिता पूज्य हैं l
7
हाथ थाम के
जीवन पथ पर
राह दिखाये l
8
झंझावतों में
उलझनों की गुत्थी
पिता खोलते l
9
पिता तुम्हारी
आँखों में हैं दिखते
आस्था के तारे l
10
पिता हैं पूज्य
उनकी छाया पाके
धन्य हैं बच्चे l
11
सिंधू नदी से
पिता और बच्चे
घुले मिले हैं l
12
पिता का रूप
सूर्य से निकलती
आस्था की धूप l
13
शीश झुकाऊँ
पिता की सीख पाके
बढ़ती जाऊँ l
14
पिता की छवि
होती है अनमोल
देख लो तोल l
15
पिता विश्वास
बच्चों को हैं लगते
खुला आकाश l
16
पिता किनारे
सागर लहरों से
बच्चे हैं धारे !
17
ईश- स्वरूप
सरमाया हैं पिता
जीवनदाता l
18
स्वप्न हमारे
पिता है संवारते
ईश्वर रूप l
19
कांधे बैठा के
दुनिया का मेला तो
पिता दिखाते l
20
पिता की याद
जीवन के आले में
दिये सी जली l
डॉ सरस्वती माथुर
16.6.15
कवितायें
1
" पिता की याद !"
नींद के झौंके सी थी
तरोताजा कर गयी
घुमड़ने लगे
मन में अतीत के
उनके साथ बिताए
धूप छाँह से दिन
उगता चढ़ता सूरज
आती जाती ऋतुएँ
माँ के हाथ की रसोई
भूली बिसरी सी
मीठी मीठी बातें
सोचती हूँ
कहाँ खो गए
वो पल छिन्न ,वो
फागुनी दिन -सोच
आँखें भर आयीं
यादों की धारा
नैनो से झर आयींl
डॉ सरस्वती माथुर
2
"पिता हमारे !"
पिता थे सूरज
माँ थी चंद्रमा सी
हम उनके नभ में
तारों से बिखरे थे
उनकी छत्र छाया में
संस्कार हमारे निखरे थे
हमारे सपने
तराशते वो दौनों
हमारे लिए आज भी
नदी की बहती जल धारा हैं
तूफान कितने भी आयें
आज भी जीवन के
दो किनारे हैं
हिस्सा हैं वो
हमारे व्यक्तित्व का
उन्हे किसी उपमा से
नहीं तोल सकते
वो तो ईशस्वरूप हैं
एक ऐसा किरदार
जिनकी भूमिका
कभी नहीं बदलती
बस ताजीवन उनकी
कमी खलती है
क्योंकि वो ही तो थे
हमारे जीवन की
मजबूत नींव
तभी तो कभी
नहीं टूटते उनकी
यादों के हमसे
बंधे स्नेह के तार l
डॉ सरस्वती माथुर
at 8:41 पूर्वाह्न
at 4:19 अपराह्न
लहरों-सा सपना
बहता रहा l
दूर है नाव
लहराता-सा पाल
हवा उदास ।
नदी -सा मन
बहता लहरों-सा
सागर हुआ ।
डूबती साँझ
जीवन -सी उतरी
विदा के रंग
क्या खूब । डा सरस्वती जी आप का एक एक हाइकु हीरे मोती से पिरोया हुआ है । बहुत सुन्दर । बधाई बधाई।
धूप- रेवड़
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at 12:48 पूर्वाह्न
भीगी लहरों संग
खार सोखती ।
बहद गहरे भाव ….
बधाई सरस्वती जी ….!!डा• सरस्वती माथुर
1
सूर्य अलाव
नभ चौपाल जला
धूप सुलगी ।
2
गर्मी के बाण
टपकता पसीना
मन वीरान ।
3
आग हवाएँ
मोम से जीवन को
पिघला जाये ।
4
तपता सूर्य
धूप की लहरों में
अंगारा दिन ।
5
निठुर बड़े
गर्मी के दिन आए
धूप करारी ।
6
धूप तरेरे
लाल आँखें धरा को
रोज डराए ।
7
भाड़ झोंकता
सूरज भड़भूजा
धूप सेंकता ।
8
लपटें उठी
भरी दुपहरिया
जलते शोले ।
9
आग के गोले
सूरज ने उगले
धूप- अंगारे ।
10
लू के भँवर
तांडव करते से
गली में घूमें ।
11
गर्म हवाएँ
तरकश तीर सी
चुभती जाएँ ।
12
गर्मी के दिन
भरी दुपहरी में
जलती तीली ।
1
श्वेत केश थे
सागर लहरों के
खोले हवा ने l
2
रौशन तारे
काले सागर में हैं
लैम्प– से जले l
3
दौड़ लगाते
निढाल हुई धूप
सिंधु नहाई l
4
झरना गिरा
बन के नदी फिर
सागर हुआ l
5
रुनझुन– सी
साँसों की लहरें थीं
दिल सागर l
6
तपस्वी सूर्य
सिन्धु- पहाड़ पर
समाधि साधे l
7
सिन्धु – आँचल
लपेट सूरज को
कहाँ ले गया ?
8
उठी लहरें
सिन्धु में प्यार –भरी
डूबे किनारे l
9
मन की नाव
जीवन– सागर में
गोते है खाती l
10
नींद सागर
सपने अँखुआए
तैरते रहे l
11
तुम हो सिन्धु
बहती है यादों की
सहस्रधारा l
12
सिंदूर लाया
सिंधु की माँग को
सूर्य भरता l
-0-