रविवार, 3 मई 2015

एफ़*****हिन्दी हाइकु में माँ ...डॉ सरस्वती माथुर *****

"वो एक लम्हा कि मेरे बच्चे ने
माँ कहा मुझको
मैं एक शाख से
कितना घना दरख्त हुईl "
परवीन शाकिर की यह पंक्तियाँ स्पष्ट बतलाती है कि  माँ बहुत मीठा गहरा खूबसूरत शब्द हैl  इस शब्द में अवयक्त अनुभूति छिपी होती है l'माँ'- एक छोटे से शब्द में समाये पूरे संसार के, हर इंसान के अस्तित्व के, परवरिश, प्यार और विश्वास के प्रमाण का नाम है!   नितांत अपना सा माँ, मात्र शब्द नहीं हैं इस शब्द में इतनी भावनाएँ हैं, इतनी शक्ति है कि सारा संसार इनके सामने झुक जाता है।जितना कोमल अहसास इस शब्द में है, इस रिश्ते में उतनी ही निर्मलता और पावनता है।कहने को बेहद छोटा सा मखमली शब्द है पर अपने भीतर ममता का अथाह सागर समेटे है! माँ शब्द जितना मीठा है, उतनी ही मीठी होती है माँ की ममता भी।अक्सर कहा जाता है कि जब ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना तो उसके लिए हर जगह खुद मौजूद होना संभव नहीं था, तो संसार की हिफाजत के लिए उसने माँ को बनाया ! हम सब जानते हैं कि माँ अनमोल होती है lउसके प्यार की कोई सीमा नहीं होतीl वह बच्चे को बिना किसी शर्त के प्यार करती है और समस्त कमियों के साथ उसे सहर्ष स्वीकारती है-lकिसी औलाद के लिए 'माँ' शब्द का मतलब सिर्फ पुकारने या फिर संबोधित करने से ही नहीं होता बल्कि उसके लिए मां शब्द में ही सारी दुनिया बसती है, दूसरी ओर संतान की खुशी और उसका सुख ही माँ के लि‍ए उसका संसार होता है।  माँ के ऐसे ही रूप को अपने भावों में हाइकुकारो ने बड़ी खूबसूरती से समेटा है......
....एक बानगी देखें हाइकु के काव्यांशो में इन्हे कैसेसे हाइकुकारों ने समेटा है --
जननी -प्राण/आँखों में बसी रहे /सोन-पुतली lडॉ सुधा गुप्ता एक रब है/ बैठा दूर आँगन/दूजा रब माँ !डॉ हरदीप कौर संधु
हर जगह /जा  नहीं  पाया रब /तो माँ बनाई !डॉ हरदीप कौर संधु
नभ-विस्तार/है ममता अपार/माँ है सागर ।रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
माँ की याद/ ज्यों मन्दिर की जोत/ जलती रहेlरामेश्वर कंबोज हिमांशु
बाती -सी जली/हर दिन-रात को/हमारी माँ थीलडॉ सतीशराज पुष्करणा
जग में होता/रब से बढ़कर/माँ का आँचल।सुभाष नीरव
आज भी बसा/अम्मा के  ही घर में /मीठा सा प्यार।डॉ0 भावना कुँअर
माँ की ममता /सकल ब्रह्माण्ड में/नहीं समता lसुदर्शन रत्नाकर
माँ का आँचल/घनी धूप में लगे /ठंडी -सी छाँव lडॉ सरस्वती माथुर
प्रभु -मूरत/घर बिराजे खोजें/क्यों मंदिर मेंlकृष्णा वर्मा
माँ की ममता/ब्रह्मांड है समाया/ओर  न छोर ।डॉ जेन्नी शबनम
मेरा मंदिर,/गिरजा, मस्जिद तू/तुझे ही पूजूँ।कमला निर्खुपी
रस पगी सी/ममता से भरी माँ/ज्यूँ ठंडी छाँव lडॉ सरस्वती माथुर
तौल सके जो/नहीं कोई तराजू/माँ की ममता!डॉ जेन्नी शबनम
प्रभु की मूरत/माँ के रूप में पाई/धन्य हुई मैंl डॉ अमिता कौंडल
सारे ताप ले/हर सुख छाँव दे/जीवन दात्री ।ज्योतिर्मयी पन्त
माँ, तेरी सीख,/मेरी मुट्ठी में बंद,/खोने  न देती ।ऋताशेखर गुप्ता
इन्द्रधनुष के जितने रंग माँ के उतने शेडस होते हैंl उनके प्रेम का कोई सानी नहीं l कोई परिभाषा नहीं होती, जो माँ को शब्दों में बांध सकेl माँ तो बस माँ होती हैl
देखें कुछ हाइकु ---
जननी -प्राण/आँखों में बसी रहे /सोन-पुतलीl डॉ सुधा गुप्ता
माँ का आँचल/ममता का सागर/दुआ लहरें।डॉ भावना  कुँअर
माँ एक साथी/प्यारा नाता है- जैसे/दिया व बाती lडॉ सरस्वती माथुर 
माटी विशेषl/ माँ का आशीष  बना है कवच lकृष्णा वर्मा
एक  शब्द  माँ  / है  माँ की परिभाषा, सम्पूर्ण भाषा l रेखा रोहतगी
तेरा आशीष/माँ !/फलें -फूलें सदा/ तू एक दुआ l रेखा रोहतगी 
 दुआएँ  देती /सब दुख सहती/वह माँ होतीlसुदर्शन नागर
सुकून  देती/ठण्ड की गुनगुनीवो/ धूप है माँl रचना श्रीवास्तव
मन -आँगन/कलियाँ हैं खिलतीं/देती स्नेह माँ lरचना श्रीवास्तव
सर्वस्व वारे/स्व खो हमें सँवारे/माँ, और कौन?सुशीला शिवराण
फूल सी नर्म /चाँदनी- सी शीतल /करुणा है माँ lशांति पुरोहित
आज भी माँ शब्द सुनते ही ऐसा आभास होने लगता है जैसे मानो अनेक रस घोल दिए होंl माँ से प्रेरित होकर कई हाइकु  रचे गये हैं l माँ में बालक के प्रति ममता प्यार ,दुःख सुख आदि की पराकाष्ठा देखी जा सकती है और इन गुणों से कभी भी वंचित नहीं रहती माँ, इसलिए माँ के लिए संतान हमेशा बच्चा ही रहती है !
हाइकुकारों ने  अपने हाइकुओं में इस अनुभूति को बड़े ही सुंदर शब्दों में पिरोया है  -
मेरा  आँचल/जकड़ के मुट्ठी में/सोई लाडली lडॉ  सुधा गुप्ता  
माँ के आँगन/गुड़िया पटोले से /बिटिया खेले !डॉ हरदीप सन्धु
रात भर थी/ बैठी माँ सिरहाने/सोई ही नहीं।डॉ भावना कुँअर
खिलखिलाये/मासूम -सा चेहरा/माँ को पाकरl सुभाष नीरव
छुप जाऊँ माँ /मैं आँचल में तेरे/दुख घनेरे।कमला निखुर्पा
फूल जैसी माँ/घर आँगन खिले/बच्चे तितली lडॉ सरस्वती माथुर
माँ ही आकाश/माँ ही होती धरती/बच्चों की साँस lडॉ सरस्वती माथुर
पूस की रातें/माँ की गोद के लिए/ दौड़ लगाते।-मुमताज टी-एच खान 
होती नहीं माँ/हम-तुम न होते/सृष्टि  न होती ।डॉ रमा द्विवेदी 
माँ की गोद है/दुखों की बारिश में/इक छाता -सी ।डॉ अनीता कपूर
माँ का आँचल/तपती भूमि पर/छत्र छाया -साl
तुहिना रंजन.
माँ का प्यार तो/ होता सदाबहार /करे दुलार lसुप्रीत कौर संधु

*अगर बहुत से कवि यों हाइकुकरों  के हाइकुओं  के फूलों को हम एक माला में पिरो दें तो उन मालाओं की खुशबू से भी यह ही सन्देश मिलेगा !-माँ ता उम्र हर पल ,हर दिन अपने घर परिवार के लिए दिन रात एक कर अपना सर्वस्व निछावर कर पूर्ण समर्पित भाव से अपने घर ,परिवार व् बच्चों को समाज में एक पहचान देकर स्वयं को चारदीवारी में छिपा कर रखती है,.बच्चों की हर बाधा में दिवार सी खड़ी रहती है! माँ बनने के बाद माँ के त्याग और रूप का अनुभव बड़ी गहराई से होता है ज्योत्सना शर्मा की ये पंक्तियाँ कहती हैं ....
मैं भी माँ हुई /पीडा़ – परमसुख /कैसा ये सत्य ..?डॉ0 ज्योत्स्ना शर्मा
माँ की ममता/तब समझ पाई/ जब माँ बनी ।प्रियंका गुप्ता
*माँ तो अनंत रूप है, जिसकी ममता का कोई अंत नहीं होता l वो नहीं होती तब भी यादों के रूप में जीवन का हिस्सा होती हैlकुछ हाइकु यहाँ उदाहरण के रूप में प्रासंगिक होंगे
आँखों में है माँ /स्वयं  की परछाई/प्रतिबिम्ब -सी.!डॉ सरस्वती माथुर
अपने भारत देश में धरती और राष्ट्र को भी तो माँ की संख्या दी गयी है और पूर्णत सही भी है क्यूंकि धरती ही हमको वो सब कुछ देती है जिसके कारण हमारा जीवन संभव है और राष्ट्र हमारी पहली और आधारभूत पहचान हैl शायद हमारे पूर्वजों ने धरती और राष्ट्र को माँ की संज्ञा देके माँ के महत्व को समझाने की कोशिश की होगी !
जीती -जागती/मूरत होती है माँ/प्रेम- दया की ! डॉ हरदीप संधु 
 छाया औ’ धूप/ अनेक तेरे रूप     माँ तू अनूप l  डॉ भावना कुँअर
*बच्चे माँ के लिए अमूल्य निधि होते हैं जिनकी रक्षा के लिए वह उनके बचपन से लेकर जवानी तक कई रूपों में प्रस्तुत होती है l रात रात भर जागना ,लोरियां सुनाना ,अच्छे संस्कार देकर बड़ा करना और हमेशा अपनी ममता के आँचल की छाँव देने में प्रतीक रूप में माँ का ही नाम लिया जा सकता हैl बच्चा बैचन होता है तो माँ तड़प उठती है l बच्चे माँ के लिए अमूल्य निधि होते हैं जिनकी रक्षा के लिए वह उनके बचपन से लेकर जवानी तक कई रूपों में प्रस्तुत होती है l रात रात भर जागना ,लोरियां सुनाना ,अच्छे संस्कार देकर बड़ा करना और हमेशा अपनी ममता के आँचल की छाँव देने में प्रतीक रूप में माँ का ही नाम लिया जा सकता हैl बच्चा बैचन होता है तो माँ तड़प उठती है l
*बचपन में पढ़ी एक हृदयस्पर्शी कहानी आज भी याद है उस माँ की, जिसने जायदाद के लालच में माँ को विष दे दिया !अस्थि विसर्जन के समय जब बेटे को पत्थर की ठोकर लगी तो माँ की अस्थियाँ पुकार उठी--"बेटा संभल कर कहीं चोट न लग जाए l "
रोड़ी कूटे माँ/सोया लाल छाँव में/भीगे आँचल lडॉ सुधा गुप्ता
सबसे बड़ा है /इस दुनिया का /तीर्थ मेरी माँ !डॉ हरदीप कौर संधु ममता बाँटे/दिन -रात पीर  की /फसलें काटेlरामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ 


मैया पुकारे/आँगन में खेले हैं/नन्द दुलारे।डॉ भावना कुँअर
छुप जाऊँ माँ/मैं आँचल में तेरे/दुख घनेरे।कमला निखुर्पा
फूल सी नर्म /चाँदनी- सी शीतल /करुणा है माँ lनमिता राकेश
 तू एक दुआ l रेखा रोहतगी
मुश्किल आती/ रौशनी की मीनार /माँ बन जाती !सुप्रीत सन्धु*माँ के जाने के बाद सच में उनका अहसास भी घना हो जाता है क्यूंकि माँ का न होना कवि के लिए भरे पूरे संसार का न होना है l माँ की गहरी स्मृतियाँ हैं कि कवि के मस्तिष्क में अमर चींटियों का दस्ता हमेशा रेंगता रहता है और माँ कि स्मृतियों से कवि मन घिरा रहता है ! यह हाइकु देखें --- -
*हमारे जीवन की खुली किताब का एक पन्ना होती है माँ, जिसमे हम अपना भविष्य पढ़ते हैं और वो गढ़ती है !


माँ ईश्वर की /धरती के अंक की /दिव्य सर्जना । मंजु गुप्ता
हम यदि दीपक हैं तो वो बाती सी हमारा जीवन रोशन करने को जलती है lसच कहें तो थिरकते जीवन की एक ताल है माँ ,एक ख़याल है माँ ,एक ज्योति है माँ ..इस मातृ शक्ति को शत शत प्रणाम !
नेह -प्रेम की/मूरत माँ छलके/सुधा कलश।कृष्णावर्मा
माँ है महान /पूजा जीवन की /करें सम्मान ।मंजु गुप्ता
*आओ इस मातृ शक्ति को प्रणाम करें ,उन्हें श्रद्धा सुमन के पुष्प अर्पित करते हुए -
प्रेरणा देती/खुशियाँ ही बाँटती/स्वर्ग बनाती lसुदर्शन नागर
डॉ सरस्वती माथुर



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