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Sunday, May 10, 2015
माँ रहती साँसों में
डॉ सरस्वती
माथुर
1
मन से बँधा
कोमल अहसास
माँ- ईश, माँ
विश्वास
न होकर भी
माँ रहती साँसों
में
साए-सी
आसपास।
2
माँ है चन्दन
है आत्मिक
बंधन
वात्सल्य- रस
भरे
दु:ख- सुख
में
सदा साथ
निभाती
आशा भर जाती माँ
।
3
माँ तुम तो हो
कविता- संग्रह
सी
मन पन्नो में
रची
महाछन्द हो
रोज उगती हो माँ
तुम सूरज बन।l
4
माँ का क्या
मोल
वो तो है
अनमोल
सागर -सी
विशाल
तरु छाँव -सी
बच्चों की प्रहरी माँ
सिंधु-सी गहरी माँ
-0-
Labels:
डॉoसरस्वती माथुर, सेदोका
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Saturday, April 11, 2015
मन की डोरी
डॉ
सरस्वती
माथुर
मन की
डोरी
जीवन सुधियों
से
बाँध
पिरोई
फिर देहरी
पर
नेह दिया
जलाया।
2
नीर न
रोको
अविरल नैंनों
से
बहने भी
दो
मन
-नदी
गहरी
समा लेंगी
यादों को।
3
थाम जो
लोगे
जीवन पथ
पर
हाथ
हमारा
मन-ताल
खिलेंगी
कलियाँ कमल की
।
4
तितली-
मन
फूलों को
चूमकर
रस है
पीता
रंग
बटोरकर
जीवन
पूरा
जीता।
5
चाँद -
चाँदनी
मधुर संबंधों
की
एक है
डोरी
नेह का बंधन
है-
जानती है
चकोरी ।
-0-
Labels:
डॉoसरस्वती माथुर, ताँका
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Monday, March 30, 2015
मीठा सपना
डॉ सरस्वती
माथुर
जब भी मैं कॉलेज जाने के लिए कार निकालती हूँ
, तो जाने कहाँ
से पाखी- सी उड़ती वो लड़की मेरे गेट के पास आ खड़ी होती है ।
कार निकालते ही
मेन गेट बंद कर वो दमकती आँखों से मुझे देखती रहती है मानो कह रही हो कि दीदी आप मुझे बहुत अच्छी
लगती हैं !कुछ दिन वो बीच में दिखी नहीं,तो मैं ही बैचैन हो
गई थी इसलिए उसे देखते ही बोली -इतने दिन कहाँ रही री छौरी,दिखी
नहीं ?
वो मेरी कार के पास
आकर राजस्थानी भाषा में बोली-
"नानी के गयी ही वा है
न जो नाल सूँ पड़
गयी छी वाकी हड्डी टूटगी छी न ई वास्ते
माँ के लारे देखबा ने गयी छी ( नानी के गई थी
।वो सीढी से गिर गयी थी न, उनकी
हड्डी टूट गई थी इसलिए माँ के साथ देखने को गई थी )
'अच्छा अच्छा ठीक है
'मुझे जल्दी थी जाने की, पर वो
बिलकुल मेरी कार से सटी खड़ी थी , हाथों में कुछ छिपा रखा
था तो मैं समझ गई थी कि कुछ दिखाना चाहती है ! दरअसल कुछ
दिन पहले उसे मैंने कहा था कि लड़कियों को पढ़ना- लिखना चाहिए, तो वो
बोली थी कि दीदी माँ भी कह रही थीं कि
तुझे खूब पढ़ाऊँगी ,अभी दुपहर
वाले सरकारी स्कूल में पढ़ती हूँ ।
इस लड़की की आँखों
में अलग सी चमक दिखती थी मुझे।उसकी माँ मेरे किरायेदार के यहाँ रोज काम करने सुबह के समय आती थी
,तो उसे भी संग में
ले आती थी ! कुछ दिन पहले ही मैंने उसे पढ़ने को कुछ बाल पत्रिकाएँ दी
थी। मुझे उसकी माँ ने बताया था
कि
वह उन्हें बड़ी लगन से पढ़ती थी।
"हाथ में क्या लाई है री ,क्या छिपा रखा है ?मेरी बात खत्म हो उससे पहले ही उसने हाथ बढ़ा एक तुड़ा मुडा कागज पकड़ा
दिया।,मैंने कागज खोलकर देखा उसमें
लिखा था -"किताबें मुझको लगती हैं
प्यारी प्यारी पढ़ लूँगी मैं मिलते ही सारी की सारीकुछ किताबें और पढ़ने के
लिए दे दो न दीदी जी
!"
मैं हतप्रभ
सी उसे देखती रही ,वो सात वर्ष की थी और ये
कवितामयी पंक्तियाँ टेढ़ी- मेढ़ी शैली में
उसका भविष्य बता रही थी ? उसे जल्दी कुछ
किताबें देने की बात कहकर मैं कॉलेज की ओर चल दी ।
कार के शीशे से पीछे
झाँका तो देखा वह मेरा मेन गेट बंद कर मुझे जाते निहार रही थी और मैं सोच रही थी कि
सच है यह कि बाल मन में ईश्वर बसते हैं ।
बंजर दिल
स्नेह सुधा से
सींचा
तो हरा हुआ ।
-0-
Labels:
डॉoसरस्वती माथुर, हाइबन
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Wednesday, February 4, 2015
दिन रीते -रीते
1
हैं दिन रीते -रीते
तेरे बिन साजन
रो -रो के हम
जीते l
2
चंचल तेरे नैना
तारे गिन कटती
अब तेरे बिन रैना l
-0-
Labels:
डॉoसरस्वती माथुर, माहिया
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