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Posted by: रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' | मई 12, 2015
मन की आँखें
1-डॉ सरस्वती माथुर
1
सूरज छोड़े
छज्जे -आँगन- बाण
मन वीरान।
2
धूप के रंग
हरदम रहते
सूर्य के संग।
3
गर्म धूप भी
ढूँढती डोल रही
ठंडी -सी छाँह ।
4
धरा तड़की
धूप पत्थर फेंके
जब सूर्य ने।
5
गर्मी के बाण
टपकता पसीना
मिले ना छाँव।
6
दहका मन
धरा हुई तंदूर
सूर्य है क्रूर।
7
धूप नोंचती
सूरज का चेहरा
झरे पसीना।
8
दुपहरियाँ
गर्मियों की जो आई
मन भी जला।
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2- डॉ सरस्वती माथुर
1
माँ की लोरियाँ
गूँजे मन -आँगन
घोले मिठास ।
2
मौन -सी है माँ
दरवाजा देखती
साँस टूटती ।
3
जननी प्यारी
आँगन – वन तेरा
हम हैं छौने ।
4
माँ के नीड़ में
नवजात शिशु -से
हम पलते ।
5
माँ कमल– सी
मन झील में, उग
खिली रहती ।
6
माँ धूप बन
जीवन -सूरज से
तम हरती ।
7
हम नदी– से
अथाह सागर– सा
है माँ का मन ।
8
माँ सहेली -सी
सुलझाती सदैव
हर पहेली ।
9
माँ की झप्पियाँ
लोरी की थपकियाँ
ढूँढे न मिली।
10
माँ में बसा है
ममता का आवास
माँ है विश्वास ।
12 मई 15https://hindihaiku.wordpress.com/2015/05/10/%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%81-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b2%e0%a5%8b%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%81/
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