गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

हिन्दी हाइकु ..1..मैं कहाँ हारी ?..2।.भोर की चिड़िया3।पाखी .



मैं कहाँ हारी?

 
 
 
 
 
 
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1-डॉ सरस्वती माथुर

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दाँव प्रेम का

तुम जीत गए हो

मैं कहाँ हारी?

2

इकतारे – से

बजते रहते हो,

सुर तो साधो ।

3

बाँसुरी हूँ मैं

अधर लगा कर

धुन  निकालो ।

4

बाँस- खोखल

हवा के सुर पीके

बाँसुरी हुआ ।

5

सागर खारा

मीठी नदियों का है

कलश- झारा ।

6

बुझ चुकी है

समय की वर्तिका

मन जला लो ।

7

पगली हवा

बाँस- झुरमुट में

रास्ता ही भूली ।

8

मन  बूँदों – सा

टपकता ही रहा

भिगोके पल।

9

हवा की चूड़ी

नदी की कल-कल

सुर बुनतीं  ।

10

शब्द -रहित

संवाद के पुल थे,

अबोला रहा।

11

साथ क्यों चले

संवाद के मुहाने

बंद करके?

................................................
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  • Posted by: डॉ. हरदीप संधु | मार्च 4, 2015

    भोर- चिड़िया

     
     
     
     
     
     
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    1-डॉ सरस्वती माथुर

    1

    भोर- चिड़िया

    फुदकती फिरती

    धरा -आँगन ।

    2

    उड़ता जाए

    दूर -सुदूर तक

    विहंग -मन।

    3

    कली विभोर

    भँवरों ने बुनी  है

    मोह की  डोर  ।

     4

     मन है  चम्पा

    खिल  कर  सुनाता   

    मंगल गान ।

    4

    फाख्ता -सा उड़ा

    गुनगुनाता मन 

    प्रेम में डूबा ।

    5

    मन की धारा

    सप्तसुरी गीतों में

    नदी  हो गई ।

    6

    मौन नयन

    छप- छप छलके

    प्रेम में पगे ।

    7

    हवा रागिनी

    बावरी -सी डोलती

    बिना पंखों के।

    8

    चढ़ा शाख पे

    संध्या का जब साया

    बिखरा मन ।

    9

    धूप छाँव से

    साथ रहना तुम

    मन -आँगन ।


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  • Posted by: डॉ. हरदीप संधु | दिसम्बर 20, 2012

    पाखी




     
     
     
     
     
     
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    डॉ सरस्वती माथुर
    1
    पंछी हैं हम561545_263439640441977_1654191665_n
    एक डाल पे बैठे
    मिले हैं सुर ।
    2
    ख्वाब उगा है
    आँखों के नभ पर
    नींद चकोर ।
    3
    दूर हवाएँ,
    तिरते पाखी-स्वर
    मन थिरका ।
    4
    मन का पाखी
    पी अतल उदासी
    जाने क्या बोले ?
    5
    सूर्य डूबा तो
    बिदा गीत सुनाया
    संध्या -पाखी ने  ।
    6
    उदास पाखी
    मुँडेर पर आज
    मिला न दाना ।
    7
    पंख खोल के
    डोलते हुए पाखी
    हवा टटोलें ।
    8
    हवा की सीटी
    सुनके जागे -भागे
    पाखी बिचारे  ।
    9
    उड़ा कपोत
    पंख फडफड़ाता
    डाकिया हँसा  ।
    10
    नभ को ताके
    पिंजरे की चिड़िया
    उड़ न पाए ।
    11
    सागर- पाखी
    है लम्बी उड़ान
    पंख  हैं फैले ।


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  • Posted by: डॉ. हरदीप संधु | अप्रैल 12, 2012
    भरके कलाइयाँ

     
     
     
     
     
     
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    डॉ सरस्वती माथुर
    1
    श्वेत चूड़ियाँ
    भरके कलाइयाँ
    सजी शेफाली
    2
    सूरजमुखी
    पौधे के झरोखे से
    सूर्य निहारे
    3
    हवा में घुल
    गुलाब के फूल भी
    खुशबू बने
    4
     मोगरे दाने
     चुनता हवा पाखी
     चोंच मारके 
    5
    उनींदा दिन
    सफ़ेद गुलाब से
    रंग ले भागा
     6                                        
     हवा तितली
     मोगरे का रस पी
     गंध ले उडी  
    7                                                                       
      खोल सी गयी
     सूरजमुखी धूप
     सूर्य की आँखें   
    8
      कच्चे घड़े से
     पारिजात टूटे  थे
      पाखी से उड़े
     9
    चाँदनी आई 
    शेफाली को ओढ़ाई
    श्वेत चूनर 

    10
    सफ़ेद चोला 
    ओढ़ हरसिंगार 
    खिला महकाl
    ........................















     

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