शुक्रवार, 20 मार्च 2015

हाइबन ...

हाइबन
जब भी मैं कॉलेज जाने के लिए कार निकालती हूँ तो  जाने कहाँ से पाखी सी उड़ती वो लड़की मेरे गेट  के पास आ खड़ी होती है  l कार निकालते ही मेन गेट बंद कर वो दमकती आँखों से मुझे देखतीरहती है  मानो कह रही हो कि दीदी आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं !कुछ दिन वो बीच में दिखी नहीं थी तो मैं ही  बैचैन हो गयी थी इसलिए उसे देखते ही बोली --इतने दिन  कहाँ रही री छौरी,दिखी नहीं ?
वो मेरी कार के पास आकर राजस्थानि भाषा  में बोली ---
"नानी के गयी ही वा है न जो  नाल सूं पड गयी छी वाकी हड्डी टूटगी छी न  ई वास्ते माँ के लारे देखबा ने गयी छी( नानी के गयी थी वो सीढी से गिर गयी थी न, उनकी हड्डी टूट गयी थी इसलिए माँ के साथ देखने को गयी थी )
'अच्छा अच्छा ठीक है ...'मुझे जल्दी थी जाने की, पर वो बिलकुल मेरी कार से सटी खड़ी थी ,हाथों में कुछ छिपा रखा था तो मैं समझ गयी थी कि कुछ दिखाना चाहती है ! दरअसल कुछ दिन पहले उसे मैंने कहा था कि लड़कियों को पढ्ना  लिखना चाहिए तो वो बोली थी कि दीदी माँ भी कह रही थीं  कि तुझे खूब पढ़ाऊगी ,अभी दुपहर वाली सरकारी स्कूल में पढ़ती  हूँ lइस लड़की की आँखों में अलग सी चमक दिखती थी मुझे ,उसकी माँ मेरे किरायेदार के यहाँ रोज काम करने सुबह के समय आती थी तो उसे भी संग में  ले आती थी ! कुछ दिन पहले ही मैंने उसे पढ़ने को कुछ बाल पत्रिकाएँ दी थी तो बड़ी लगन से वह पढ़ती थी ,यह मुझे उसकी माँ ने बताया थाl
 "हाथ में क्या लायी है री ,क्या छिपा रखा है ?मेरी बात खत्म हो उससे पहले ही उसने हाथ बढ़ा एक तुड़ा मुडा कागज पकड़ा दियाl,मैंने कागज खोल कर देखा उसमें  लिखा था --"किताबें मुझको लगती हैं  प्यारी प्यारी ...पढ़ लूँगी मैं मिलते ही सारी की सारी...कुछ किताबें और पढ़ने के लिए दे दो न दीदी जी  !"
 मैं हतप्रभ  सी उसे देखती रही ,वो मात्र सात वर्ष की थी और यह पंक्तियाँ कवितामयी  टेढ़ी मेढ़ी शैली में उसका भविष्य बता  रही थी  ? उसे जल्दी कुछ किताबें  देने की सहमति देकर मैं कॉलेज की ओर चल दी l
कार के शीशे से पीछे झाँका तो देखा वह मेरा मेन गेट बंद कर मुझे जाते निहार रही थी और मैं सोच रही थी कि सच है बाल मन में ईश्वर बसते हैं l


बंजर दिल
स्नेह सुधा से सींचा
 तो हरा हुआ l


मीठा सपना
आँखों में अंकुराया
उगा विश्वास l


पंख फैलाना 
मन पिंजरा खोल
 नभ छू आना l
डॉ सरस्वती माथुर


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