बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

बसंत क्या है मेरे लिये ?

बसंत फिर आया
अलग अलग नामों की
बिंदोरी पहने
कोई कहता
ऋतुराज कोई कुसुमकार
और भी बहुत से नाम
पर बसंत
क्या है मेरे लिये।
जी हाँ सच में वो
मौसम है मेरे मन का
जो एक दोस्त सा
मेरे साथ चलता है
मेरे साथ ही फूलों पर
तितली सा उड़ता है
जाने कब आकर
मेरी कविताओं में
शब्दों सा आ जुड़ता है
कभी चिड़िया सा
मुझे दूर उड़ा ले जाता है
कभी मछली सा
मन के अथाह सागर में
तैराता है
कभी बसंत
एक संस्कृति सा
कभी एक  दर्शन
कभी एक सपने सा
कभी एक कल्पना सा
उछल कूद मचाता है
देखते ही देखते
हिरणी की तरह
कुलाँचे  भरता
पतझड़ के झुरमुट में
छिप जाता है
और मैं पीछे पीछे
उसे ढूँढती दूर कहीं
कविताओं के जंगल में
निकल जाती हूँ
दूर कहीं .....
डाँ सरस्वती माथुर



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