लघु कवितायें
"फागुन की बेला है!"
1
होली है आई
शीतल मधुमय सी
प्रेम रंग संजोये
तन रंग लो
फागुन की बेला है
मन भी रंग लो
2
गुलाल रंग
फाग चंग के संग
बौराया सा था मन
पंख खोल के
फागुनी चिड़िया से
गूंजा घर आँगन l
3
कान्हा का रास रचे
राधा की प्रीत जले
डारत रंग
नैनों की बोली में
श्याम खेले होली में
4
खेल रहे हैं होली
नन्द जी के लाल
उड़े गुलाल
चंग पे मची धमाल
मारत पिचकारी
राधा को गोपाल
डॉ सरस्वती माथुर
मन महका
रंगों की छटा छाई
होली आई तो
धरा भी फगुनाई
फागुन चुन्नी
पुरवा संग उडी
सभी को भाई
मृदंग चंग बजे
फाग गुंजाई
रंगों के भंवरों की
गुंजार भाई
ढोल मंजीरे बजे
फागुन ऋतु आई
डॉ सरस्वती माथुर
2
"मन महका!"
रंग बयार
धरा पर बरसी
मन खुमारी
अंगड़ाई ले सरसी
छोड़ नींद को
उडी तितली बन
डाल डाल पे
विविधवर्णी फूल
खिले उन्मत
बिखरे फाग रंग
जगी सुगंध
पी के रंग गुलाल
रंगीन तन
रिश्तों की मिठास में
घुले थे रंग
प्यार की ठिठोली से
महके होली रंग
डॉ सरस्वती माथुर
"होली के रंग !"
1
रंग चूँदडी
फागुन का मौसम
उडता फिरे
लेकर के राग रंग
अनुरागी सा मन
2
रंग उड़े तो
बोली फाग चिड़िया
आई है होली
भरके मधु मिठास
लो करो न ठिठोली
3
सतरंग में
मौसम लाया फाग
छनती भंग
होली की तरंगों में
फागुन के संग मेंl
4
रंग बयार
फागुनी ये त्यौहार
भीगा तन भी
प्रीत पीत पराग
अँगना में गुलाल
5
फगुआ मन
पाहुन बन डोला
मिटा कटुता
मौसम से यूँ बोला
स्वागत फागुन का l
6
जमुना तीरे
सुन बाँसुरी राधा
हुई अधीर
भीगती गयी वो तो
प्रेम के रस रंग l
7
रंग गुलाल
बिखरा धरा पर
झूमी गोपियाँ
डाल के श्याम रंग
फागुन हुआ मन
8
बैरंग मन
अबीर गुलाल में
भीग गया तो
फागुनी पुरवा में
हुआ अधीर मन
9
मृदंग बाजे
ओढ़ चूंदडी लाल
राधा का मन
गया होली में रंग
श्याम सखा के संग
10
धरा ने ओढ़ी
सतरंगी चूनर
होली के रंग
चहुँ ओर मृदंग
मन में भी उमंग l
11
धरा रंगोली
तरंगमयी होली
रंग बहार
पीत पराग लाया है
बासंती त्यौहार
12
रंग बयार
फागुनी ये त्यौहार
भीगा तन भी
प्रीत पीत पराग
अँगना में गुलाल
13
रसरंग से
धरती है बसंती
छुईमुई सी
फागुनी बयार में
समेट लाई प्यार
14
द्धार द्धार पे
फागुनी बयार है
संग रंगों के
अबीर गुलाल है
रंगीला त्यौहार है l
15
टेसू के फूल
चंग मृदंग संग
फागुनी रंग
चंग भंग ठंडाई
होली की टोली आई l
16
रस रंग ले
फागुन मुस्कराया
अमराई में
नेह फुहार लाया
रसरंगा त्यौहार l
डॉ सरस्वती माथुर
होली है आई
शीतल मधुमय सी
प्रेम रंग संजोये
तन रंग लो
फागुन की बेला है
मन भी रंग लो
2
गुलाल रंग
फाग चंग के संग
बौराया सा था मन
पंख खोल के
फागुनी चिड़िया से
गूंजा घर आँगन l
3
कान्हा का रास रचे
राधा की प्रीत जले
डारत रंग
नैनों की बोली में
श्याम खेले होली में
4
खेल रहे हैं होली
नन्द जी के लाल
उड़े गुलाल
चंग पे मची धमाल
मारत पिचकारी
राधा को गोपाल
डॉ सरस्वती माथुर
चोका
"होली आई तो
!" मन महका
रंगों की छटा छाई
होली आई तो
धरा भी फगुनाई
फागुन चुन्नी
पुरवा संग उडी
सभी को भाई
मृदंग चंग बजे
फाग गुंजाई
रंगों के भंवरों की
गुंजार भाई
ढोल मंजीरे बजे
फागुन ऋतु आई
डॉ सरस्वती माथुर
2
"मन महका!"
रंग बयार
धरा पर बरसी
मन खुमारी
अंगड़ाई ले सरसी
छोड़ नींद को
उडी तितली बन
डाल डाल पे
विविधवर्णी फूल
खिले उन्मत
बिखरे फाग रंग
जगी सुगंध
पी के रंग गुलाल
रंगीन तन
रिश्तों की मिठास में
घुले थे रंग
प्यार की ठिठोली से
महके होली रंग
डॉ सरस्वती माथुर
लघु
कवितायें
रंग चूँदडी
फागुन का मौसम
उडता फिरे
लेकर के राग रंग
अनुरागी सा मन
2
रंग उड़े तो
बोली फाग चिड़िया
आई है होली
भरके मधु मिठास
लो करो न ठिठोली
3
सतरंग में
मौसम लाया फाग
छनती भंग
होली की तरंगों में
फागुन के संग मेंl
4
रंग बयार
फागुनी ये त्यौहार
भीगा तन भी
प्रीत पीत पराग
अँगना में गुलाल
5
फगुआ मन
पाहुन बन डोला
मिटा कटुता
मौसम से यूँ बोला
स्वागत फागुन का l
6
जमुना तीरे
सुन बाँसुरी राधा
हुई अधीर
भीगती गयी वो तो
प्रेम के रस रंग l
7
रंग गुलाल
बिखरा धरा पर
झूमी गोपियाँ
डाल के श्याम रंग
फागुन हुआ मन
8
बैरंग मन
अबीर गुलाल में
भीग गया तो
फागुनी पुरवा में
हुआ अधीर मन
9
मृदंग बाजे
ओढ़ चूंदडी लाल
राधा का मन
गया होली में रंग
श्याम सखा के संग
10
धरा ने ओढ़ी
सतरंगी चूनर
होली के रंग
चहुँ ओर मृदंग
मन में भी उमंग l
11
धरा रंगोली
तरंगमयी होली
रंग बहार
पीत पराग लाया है
बासंती त्यौहार
12
रंग बयार
फागुनी ये त्यौहार
भीगा तन भी
प्रीत पीत पराग
अँगना में गुलाल
13
रसरंग से
धरती है बसंती
छुईमुई सी
फागुनी बयार में
समेट लाई प्यार
14
द्धार द्धार पे
फागुनी बयार है
संग रंगों के
अबीर गुलाल है
रंगीला त्यौहार है l
15
टेसू के फूल
चंग मृदंग संग
फागुनी रंग
चंग भंग ठंडाई
होली की टोली आई l
16
रस रंग ले
फागुन मुस्कराया
अमराई में
नेह फुहार लाया
रसरंगा त्यौहार l
डॉ सरस्वती माथुर
डॉ सरस्वती माथुर
"है रंगीली होली
!"
माहिया
1
अलबेली है होली
रंग गुलाल में
डूबे हैं हमजोली l
2
मेरा भी मन डोला
धमाल का मौसम
रंग बसंती घोला l
3
उगे टेसू के फूल
आजाना सजना
न जाना हमको भूल l
4
कल आएगा सैयाँ
मन कोयल बोली
आई होली भैया l
5
फ़ूली फ़ूली सरसों
अब तो आजाओ
देखा न हुए बरसोंl
6
लचके डाली डाली
राह तकती हूँ
होगई हूँ बाली l
7'
रजनीगंधा महकी
होली आई तो
यादें बन कर चहकी l
8
गगन अटका चाँद
आजा रे सजना
मन दीवार को फांद l
9
अब कैसे हम भूलें
रसरंग फाग में
संग संग हम झूले l
10
है रंगीली होली
अब तो आकर के
ले जा मेरी डोली l
11
तुम तो हो मेरे रब
जोगन दीवानी
कहते रहते हैं सब l
12
रजनी यह कहती है
चाँदनी चाँद की
सजनी बन रहती है l
डॉ सरस्वती माथुर
13
नैनो के दरवाजे
खोल रहीं देखो
सपनों की आवाजें l
हाइकु
डॉ सरस्वती माथुर
1
मौसम टेसू
मन हुआ फागुन
होली के संग l
2
महकी हवा
रसपगी होली से
बिखरे रंग l
3
होली के रंग
उमंग नवरंग
भंग के संग l
4॰
भीगते मन
फगुनाया मौसम
होली के रंग l
5,
भीगी सी होली
फागुनी बयार में
रसपगी सी l
6
रंग गुलाल
अक्षत चन्दन में
भीगे से तन l
7
भीगा सा तन
अबीर गुलाल से
हरषे मन l
8
फागुनी रंग
च्ंग मृदंग भंग
आ गयी होली l
9
भंग के संग
फागुन का मौसम
होली के च्ंग l
10
पीत पराग
आँगन में गुलाल
होली तो होली l
डॉ सरस्वती माथुर
"होली जब आती है !"
होली औपचारिकता नहीं
हमारी परंपरा है
जब हम खेलते हैं
होली के रंग
मिठास घुलती है
आत्मीयता खिलती है
गुलाल मलते हैं तो
मन के आँगन में
चंग मृदंग बजते ही
नेह रस बरसाती
एक चिड़िया उड़ती है
होली जब आती है
मेलजोल का
माहौल बनाती है
ढ़ोल डफ के साथ
फागुनी बयार बहकर
दिलों को मिलाती है l
डॉ सरस्वती माथुर
2
"आई है सखी होली !"
हंसी ठिठोली
रंगों की ओढ़ चूनर
आई है सखी होली
महकी पुरवाई
चहकी अमराई
फागुन संग लहराए
अबीर गुलाल छाए
झांझर चंग मृदंग
संग में
नाचे हमजोली
आई सखी होली
गाँव शहर का सौंदर्य
चहुं ओर
छाया माधुर्य
मिल जुल के सब खेले
लगे प्रीत के रस मेले
कोयल की कुहुक में
मीठी मीठी बोली
आई है सखी होली
रंग रंगीला आँगन
मन जैसे वृन्दावन
देहरी द्वार सुवासित
फागुन हो गया
चित्रित
हुरियारों की पहुंची
हँसती गाती टोली
आई है सखी होली
डॉ सरस्वती माथुर
3
"पहली होली !"
माथे चन्दन रोली
नयी दुल्हन अबोली
साजन उठाए घूँघट
करे जब ठिठोली
धीरे से नैन उठाये
फिर मंद मंद
मुस्कराये
नयी प्रीत का सपना
सामने है हमजोली
फागुन का महिना
साजन संग है जीना
मदमस्त है मौसम
पहली होगों होली
दुल्हन सोच सोच
घबराए
मन ही मन बतियाये
अब तो जो भी हो
मैं तो पी की अब होली
डॉ सरस्वती
माथुर बसंत
डॉ सरस्वती माथुर "होली का रंगरेज !"
1
पर्व वसंती आ गया, रँग ही रँग चहुँ
ओर
केसरिया सपने हुए, तन-मन उठी हिलोर
!
२
मचल रहे हर डाल पर, भौंरों के
मधु-गान
झूम-झूम लहरा रहे, सरसों के खलिहान
!
3
केसर फूले, बाग़ में, बिखर गए हैं
रंग
फागुन को प्रियकर लगें, बजते चंग मृदंग
!
4
बगिया में फुलवा खिले, रंगों की
भरमार
धरती पर छाने लगा, फिर फागुनी ख़ुमार
!
5
रसभीने होने लगे, सरसों के ये
फूल
पाहुन अब तो आ मिलो, मौसम है अनुकूल
!
डॉ सरस्वती माथुर
"होली आर्ई होली आई!"दहके रँग पलाश केमहके रँग गुलाब केसरसों ने ली अँगडाईहोली आई होली आईफागुन का देख जोशधरती डूबी मस्ती मेंमादकता मौसम में छाईहोली आई होली आईडाल डाल टेसू खिलेचैत की गुहार परचेहरों पर उल्लास मिलेहोली आई होली आईहवा- हवा केसर उडेलेकर फगुआ का सन्देशकूकी कोयलिया वन- वनहोली आई होली आईढाई आखर प्रेम के रहेंद्वेष बचे न शेषमुखरित हो उल्लास गूँजेहोली आई होली आईl
डॉ सरस्वती माथुर "होली का रंगरेज !"
कच्चे पड गए रिश्ते
खो गए हैं रंग
महंगी जीवन किश्ते
थक गया है शायद
होली का रंगरेज
न साझा चूल्हा
न ढोल डफली
न आँगन में झूला
बस बाट जोहती है
सूनी सी सेज
न पायल की रुनझुन
न संवाद में व्याकरण
न फाग की रस धुन
न त्यौहार में आचरण
न उत्साह में तेज
डॉ सरस्वती माथुर
खो गए हैं रंग
महंगी जीवन किश्ते
थक गया है शायद
होली का रंगरेज
न साझा चूल्हा
न ढोल डफली
न आँगन में झूला
बस बाट जोहती है
सूनी सी सेज
न पायल की रुनझुन
न संवाद में व्याकरण
न फाग की रस धुन
न त्यौहार में आचरण
न उत्साह में तेज
डॉ सरस्वती माथुर
"बिखरा
गुलाल!"
बिखरे रंग
चंग मृदंग से गूंजा
रंगीला आकाश
होली की
खुली अर्गला
खुले कई संबोधन
बिखरा गुलाल
शब्दों में फूटा
इन्द्रधनुषी विश्वास
बौराया मौसम
घुटी जो भंग
पंख खोल उड़े
आशाओं के रंग
फागुन की चिड़िया ने
भर दिया उल्लास
द्वेष छोड़ कर
आगये पराये भी
होली में पास
डॉ सरस्वती माथुर
चंग मृदंग से गूंजा
रंगीला आकाश
होली की
खुली अर्गला
खुले कई संबोधन
बिखरा गुलाल
शब्दों में फूटा
इन्द्रधनुषी विश्वास
बौराया मौसम
घुटी जो भंग
पंख खोल उड़े
आशाओं के रंग
फागुन की चिड़िया ने
भर दिया उल्लास
द्वेष छोड़ कर
आगये पराये भी
होली में पास
डॉ सरस्वती माथुर
"केसरिया मन- करो न फागुन !"
कहाँ छिपी हैं
पछुवा हवाएं
रंग- गौरैया- फुलवारी
याद आ रहीं हैं बस
फूलों की लदी क्यारी
ढफ -ढोल की फगुनाहट
कहाँ खो गयी हुरियारी
सूनी -सूनी लगती क्यूँ है-अब
होली की हुरंगी किलकारी
जाने कब झर गयीं
आमों की मंज़रिया
नहीं गूंजते फाग गीत
खोयीं गांवों की गुजरिया
लगते फीके टेसू के रंग- न
दिखती सतरंगी फुलकारी
फिर करों न फागुन तुम
मन को केसरिया- डाल
गुलाल और रंगों की झारी !
डॉ सरस्वती माथुर
कहाँ छिपी हैं
पछुवा हवाएं
रंग- गौरैया- फुलवारी
याद आ रहीं हैं बस
फूलों की लदी क्यारी
ढफ -ढोल की फगुनाहट
कहाँ खो गयी हुरियारी
सूनी -सूनी लगती क्यूँ है-अब
होली की हुरंगी किलकारी
जाने कब झर गयीं
आमों की मंज़रिया
नहीं गूंजते फाग गीत
खोयीं गांवों की गुजरिया
लगते फीके टेसू के रंग- न
दिखती सतरंगी फुलकारी
फिर करों न फागुन तुम
मन को केसरिया- डाल
गुलाल और रंगों की झारी !
डॉ सरस्वती माथुर
"आज की होली!"
फाग बदला राग बदला
चंग भंग का हुरंग बदला
गुलाल की खुशबू बदली
डफ का मधुर ताल बदला
टेसू की महक बदली
प्रीत का आसंग बदला
राधा कृष्ण का रास बदला
पिचकारी का आकार बदला
चन्दन तो सफ़ेद लाल रहा पर
सुगंध का रस्मो रिवाज बदला
पकवान-गुझिया का स्वाद बदला l
डॉ सरस्वती माथुर
होली मिलन की रस्म भी बदली
इन्टरनेट का जाल भी बदला
मोबाईल से रस्मे बधाई देने का
नया रूप बदला नया हाल बदला
फैशन बदला पर्वों का मिजाज़ बदला
फाग के रसीले गीतों के फ्यूज़न में
डी जे का शोर करता सुर ताल बदला
डॉ सरस्वती माथुर होली आई तो !"
चंग भंग का हुरंग बदला
गुलाल की खुशबू बदली
डफ का मधुर ताल बदला
टेसू की महक बदली
प्रीत का आसंग बदला
राधा कृष्ण का रास बदला
पिचकारी का आकार बदला
चन्दन तो सफ़ेद लाल रहा पर
सुगंध का रस्मो रिवाज बदला
पकवान-गुझिया का स्वाद बदला l
डॉ सरस्वती माथुर
होली मिलन की रस्म भी बदली
इन्टरनेट का जाल भी बदला
मोबाईल से रस्मे बधाई देने का
नया रूप बदला नया हाल बदला
फैशन बदला पर्वों का मिजाज़ बदला
फाग के रसीले गीतों के फ्यूज़न में
डी जे का शोर करता सुर ताल बदला
डॉ सरस्वती माथुर होली आई तो !"
मन महका
रंगों की छटा छाई
होली आई तो
धरा भी फगुनाई
फागुन चुन्नी
पुरवा संग उडी
सभी को भाई
मृदंग चंग बजे
फाग गुंजाई
रंगों के भंवरों की
गुंजार भाई
ढोल मंजीरे बजे
फागुन ऋतु आई
डॉ सरस्वती माथुर
2
"मन महका!"
रंग बयार
धरा पर बरसी
मन खुमारी
अंगड़ाई ले सरसी
छोड़ नींद को
उडी तितली बन
डाल डाल पे
विविधवर्णी फूल
खिले उन्मत
बिखरे फाग रंग
जगी सुगंध
पी के रंग गुलाल
रंगीन तन
रिश्तों की मिठास में
घुले थे रंग
प्यार की ठिठोली से
महके होली रंग
डॉ सरस्वती माथुर
रंगों की छटा छाई
होली आई तो
धरा भी फगुनाई
फागुन चुन्नी
पुरवा संग उडी
सभी को भाई
मृदंग चंग बजे
फाग गुंजाई
रंगों के भंवरों की
गुंजार भाई
ढोल मंजीरे बजे
फागुन ऋतु आई
डॉ सरस्वती माथुर
2
"मन महका!"
रंग बयार
धरा पर बरसी
मन खुमारी
अंगड़ाई ले सरसी
छोड़ नींद को
उडी तितली बन
डाल डाल पे
विविधवर्णी फूल
खिले उन्मत
बिखरे फाग रंग
जगी सुगंध
पी के रंग गुलाल
रंगीन तन
रिश्तों की मिठास में
घुले थे रंग
प्यार की ठिठोली से
महके होली रंग
डॉ सरस्वती माथुर
दोहे :
होली के रंग....
(१)
गोरी खेले आँगना, चंग-संग बाजें ढोल
रंग-रंगीली सजनिया, सजना है अनमोल !
(२)
रंग गुलाल उड़ते हुए, कहीं चंग की थाप
सतरंगी ऋतु फागुनी, छेड़े मधुरालाप !
गोरी खेले आँगना, चंग-संग बाजें ढोल
रंग-रंगीली सजनिया, सजना है अनमोल !
(२)
रंग गुलाल उड़ते हुए, कहीं चंग की थाप
सतरंगी ऋतु फागुनी, छेड़े मधुरालाप !
(३)
फागुन-फागुन मन हुआ, जमकर रंग लगाएं
अबकी होली देह सँग, रंग मन भी छू जाएं
(४)
रिश्तों में कुछ दूरियां, होली कम कर जाय
मिलते हैं नजदीक से, प्रेम पनपता जाय !
(५)
जग-आँगन में गूंजती, फागुन की पगचाप
कहीं फाग के गीत हैं, कहीं चंग पर थाप !
अबकी होली देह सँग, रंग मन भी छू जाएं
(४)
रिश्तों में कुछ दूरियां, होली कम कर जाय
मिलते हैं नजदीक से, प्रेम पनपता जाय !
(५)
जग-आँगन में गूंजती, फागुन की पगचाप
कहीं फाग के गीत हैं, कहीं चंग पर थाप !
(६)
फागुन गाये कान में, होली वाले
राग
साजन की पिचकारियाँ, बुझे न मन की आग !
साजन की पिचकारियाँ, बुझे न मन की आग !
(७)
राधा-कान्हा साथ में, मन में आस अनंत
नाच रहीं हैं गोपियाँ, झूमें फाग दिगंत !
(८)
साजन की बरजोरियां, प्रीत-प्रेम के रंग
भीग रही हैं गोरियां, नैना बान-अनंग !
राधा-कान्हा साथ में, मन में आस अनंत
नाच रहीं हैं गोपियाँ, झूमें फाग दिगंत !
(८)
साजन की बरजोरियां, प्रीत-प्रेम के रंग
भीग रही हैं गोरियां, नैना बान-अनंग !
(९)
भीगी अंगिया रंग में, मन में अंतर्द्वंद
सखियों संग राधा जिये, अद्भुत-सा आनंद !
भीगी अंगिया रंग में, मन में अंतर्द्वंद
सखियों संग राधा जिये, अद्भुत-सा आनंद !
डॉ सरस्वती
माथुर
"होली आई तो
!"
मन महका
रंगों की छटा छाई
होली आई तो
धरा भी फगुनाई
फागुन चुन्नी
पुरवा संग उडी
सभी को भाई
मृदंग चंग बजे
फाग गुंजाई
रंगों के भंवरों की
गुंजार भाई
ढोल मंजीरे बजे
फागुन ऋतु आई
डॉ सरस्वती माथुर
2
"मन महका!"
रंग बयार
धरा पर बरसी
मन खुमारी
अंगड़ाई ले सरसी
छोड़ नींद को
उडी तितली बन
डाल डाल पे
विविधवर्णी फूल
खिले उन्मत
बिखरे फाग रंग
जगी सुगंध
पी के रंग गुलाल
रंगीन तन
रिश्तों की मिठास में
घुले थे रंग
प्यार की ठिठोली से
महके होली रंग
डॉ सरस्वती माथुर
"फागुनी मौसम में!"
टेसू फूलों पे
जब रसवंती फागुन
चिड़िया सा चह्कता है
तब मन के फीके रंग
हवाओं के संग मिल
सतरंगी हो जाते हैं
जाने क्यों तब फागुन की
हर भोर में- चिड़ियाँ के
कंठों से निकला
एक एक स्वर
मैं लपक लेती हूँ और
पाती हूँ कि
सच में मेरी जिंदगी
फूल सी खिल उठी है
मैं सोचने भी लगती हूँ कि
धरती भी तो
फागुनी रंगों सी
अलग अलग रंग दिखाती है
हमें जीना सिखाती है
तभी शायद मैं हर शाम
थके लाल सूर्य के गोलों को
तपते देखती हूँ और
हैरान होती हूँ कि
उसके श्रम से टपकी सिन्दूरी बूंदे
सागर में घुलते ही जाने कैसे
जीवन की लय बन जाती है
मन में समां गुनगुनाती है
तब गाहे बगाहे सोचती हूँ कि
किस तरह समय का
मौसमी सूरज
पृथ्वी की हथेलियों पर
मेहँदी की तरह रंग छोडता है
जीवन के आकाशी
पहियों पर दौड़ता है
तब मैं भी उत्साह से भर
धरा से रंग बटोर के
कविता की फुलकारी
बुनने लगती हूँ,
भावनाओं की कलम को
रंगों की स्याही में डूबो
फागुनी मौसम में
आशा के इन्द्रधनुषी
गीत गुनने लगती हूँ !
डॉ सरस्वती माथुर
रंगों की छटा छाई
होली आई तो
धरा भी फगुनाई
फागुन चुन्नी
पुरवा संग उडी
सभी को भाई
मृदंग चंग बजे
फाग गुंजाई
रंगों के भंवरों की
गुंजार भाई
ढोल मंजीरे बजे
फागुन ऋतु आई
डॉ सरस्वती माथुर
2
"मन महका!"
रंग बयार
धरा पर बरसी
मन खुमारी
अंगड़ाई ले सरसी
छोड़ नींद को
उडी तितली बन
डाल डाल पे
विविधवर्णी फूल
खिले उन्मत
बिखरे फाग रंग
जगी सुगंध
पी के रंग गुलाल
रंगीन तन
रिश्तों की मिठास में
घुले थे रंग
प्यार की ठिठोली से
महके होली रंग
डॉ सरस्वती माथुर
"फागुनी मौसम में!"
टेसू फूलों पे
जब रसवंती फागुन
चिड़िया सा चह्कता है
तब मन के फीके रंग
हवाओं के संग मिल
सतरंगी हो जाते हैं
जाने क्यों तब फागुन की
हर भोर में- चिड़ियाँ के
कंठों से निकला
एक एक स्वर
मैं लपक लेती हूँ और
पाती हूँ कि
सच में मेरी जिंदगी
फूल सी खिल उठी है
मैं सोचने भी लगती हूँ कि
धरती भी तो
फागुनी रंगों सी
अलग अलग रंग दिखाती है
हमें जीना सिखाती है
तभी शायद मैं हर शाम
थके लाल सूर्य के गोलों को
तपते देखती हूँ और
हैरान होती हूँ कि
उसके श्रम से टपकी सिन्दूरी बूंदे
सागर में घुलते ही जाने कैसे
जीवन की लय बन जाती है
मन में समां गुनगुनाती है
तब गाहे बगाहे सोचती हूँ कि
किस तरह समय का
मौसमी सूरज
पृथ्वी की हथेलियों पर
मेहँदी की तरह रंग छोडता है
जीवन के आकाशी
पहियों पर दौड़ता है
तब मैं भी उत्साह से भर
धरा से रंग बटोर के
कविता की फुलकारी
बुनने लगती हूँ,
भावनाओं की कलम को
रंगों की स्याही में डूबो
फागुनी मौसम में
आशा के इन्द्रधनुषी
गीत गुनने लगती हूँ !
डॉ सरस्वती माथुर
"होली का त्यौहार
!"
हरी- हरी वसुंधरा है
हरी- हरी वसुंधरा है
रंगों भरा आकाश
होली का दिन आया
होली का दिन आया
लाया सबको पास
भूल जाएँ मन के भेद
भूल जाएँ मन के भेद
दूर करें अभिमान
मन संग बाँध लें
मन संग बाँध लें
रामायण और कुरान
होली के जलधार से
होली के जलधार से
प्रेम का हो विस्तार
अहम् भूला कर सारे
अहम् भूला कर सारे
मन में भर लो प्यार
रसपगे रंगों से भरा है
रसपगे रंगों से भरा है
होली का त्यौहार
तन भिगोये- मन बांधे
तन भिगोये- मन बांधे
इसके जल की धार
कृष्ण राधा संग खेल रहे
कृष्ण राधा संग खेल रहे
रंग और गुलाल
देख प्रेम रूप कृष्ण
देख प्रेम रूप कृष्ण
राधा हुई निहाल l
डॉ सरस्वती माथुर
ए -2 ,सिविल लाइंस जयपुर -6
01341-2229621
2
"बौराई होली !"
फूल फूल डाल डाल पे
पुरवाई होली
पीत अंगरिया मन रक्तिम
बौराई होली
सरस राग रंग डफ मंजीरे
फिर गाई होली
मारी पिचकारी कपोल गात पे
फगुवाई होली
भांग ठिठोली बेसुध बोली
पगलाई होली
गुजिया- ठंडाई ,केसर -चन्दन से
महकाई होली
प्रेम- प्रीत, गीत गोविन्द संग
मनाई होली
राधा रानी ने श्याम रंगरेज से
रंगवाई होली !
2
"बौराई होली !"
फूल फूल डाल डाल पे
पुरवाई होली
पीत अंगरिया मन रक्तिम
बौराई होली
सरस राग रंग डफ मंजीरे
फिर गाई होली
मारी पिचकारी कपोल गात पे
फगुवाई होली
भांग ठिठोली बेसुध बोली
पगलाई होली
गुजिया- ठंडाई ,केसर -चन्दन से
महकाई होली
प्रेम- प्रीत, गीत गोविन्द संग
मनाई होली
राधा रानी ने श्याम रंगरेज से
रंगवाई होली !
3
हाइकु......
"मन हुआ फागुन
!"
1
बालिया झाल
होलिया ताप संग
तडतडाई l
2
होली - कोयल
टेसू रंग में
घूमे
फिरकनी सी l
3
रंग बरसे
गुलाल की जाजम
फागुनी मन
l
4
टेसू खिले तो
ऋतु फागुन की भी
रंगीन हुई
l
5
रंगों के पाखी
फागुन में
उड़ते
मस्त मदन l
6
उत्सवी रुत
रंग मयूर नाचे
भंग के संग l
7
मन रंगीला
फागुनी हवा संग
उडता फिरा l
8
मन के रंग
दहके पलाश से
हुए फागुनी l
9
मौसम टेसू
मन हुआ
फागुन
होली के संग l
डॉ सरस्वती माथुर
4
"फागुन की फुहार उडी !"
ललछौने मौसम में उडी
फाग की पतंग
सतरंगी डोर के संग
हवाओं की जाफरानी पाँतें
लौट गयी बांसों में
ढोल मंजीरे बजते रहे
फाग गूंजी सांसों में
मन में गुलाल उड़े
बिखरे मुंडेरों पर रंग
आँगन में शंख बजे
कंचनवर्णी गंध
होली को पंख लगे
महके फिर सम्बन्ध
औसारों दालानो में
हुडदंगों की टोली
बजते रहे चंग l
मच रहा है शौर
चंग मृदंग संग
घुट रही है भंग
डॉ सरस्वती माथुर
5
" उड़े गुलाल रंग !"
खेल रही
फागुनी हवा
मौसम की देहरी पर
फाग के रचे भाव
उड़े गुलाल रंग
राधा के मन की
हथेली पर
कृष्ण को है घेरे
गोपियों की भीड
चल रहें हैं
नैनो के फेरे
बरसे रंगों के तीर
प्रेम की पहेली पर
फागुनी चिड़िया चह्की
भोर के आते ही
राधा जी भी बहकीं
ढफ ढोल बजते ही
यौवन रंग चढ़ा फिर
सखी और सहेली पर !
6
"रस्म होली की!"
फिर फागुन
लगा बुलाने
रंग गुलाल
लगे हुलसाने
बंधे बंधे आँगन में
बच्चे भी लगे अनमने
रिश्ते भी नहीं रहे घने
साझा चूल्हा मंद पड़ा है
अकेलेपन से लगे पगलाने
थके पिता हैं माँ बीमार
कौन बनाए पुए पकवान
घर में सदस्य हैं कुल चार
पडोसी से है सब अनजान
एक दूसरे से लगे कतराने
रस्म होली की
लगे भूलाने
संबंधों से भी
हुए बेगाने
डॉ सरस्वती माथुर
खेल रही
फागुनी हवा
मौसम की देहरी पर
फाग के रचे भाव
उड़े गुलाल रंग
राधा की मन
हथेली पर
कृष्ण को है घेरे
गोपियों की भीड
चल रहें हैं
नैनो के फेरे
बरसे रंगों के तीर
प्रेम की पहेली पर
फागुनी चिड़िया चह्की
भोर के आते ही
राधा जी भी बहकीं
ढफ ढोल बजते ही
यौवन रंग चढ़ा फिर
सखी और सहेली पर !
डॉ सरस्वती माथुर
"रस्म होली की!"
फिर फागुन
लगा अलसाने
रंग गुलाल
लगे जलाने
बंधे बंधे आँगन में
बच्चे भी
लगे अनमने
रिश्ते भी
नहीं रहे घने
साझा चूल्हा
मंद पड़ा है
अकेलेपन से
लगे पगलाने
थके पिता हैं
माँ बीमार
कौन बनाए
पुए पकवान
घर में सदस्य
हैं कुल चार
पडोसी से है
सब अनजान
एक दूसरे से
लगे कतराने
रस्म होली की
लगे भूलाने
संबंधों से भी
हुए बेगाने
डॉ सरस्वती माथुर होली का त्यौहार आ गया
फागुनी बौछार लेकर
भौरों का अभिसार लेकर
मन में उल्लास जगा गया
रसभरा त्यौहार आ गया
केसर चन्दन टेसू रंगों में
मुस्कराता मधुमास छा गया
चंग और फाग-राग गाता
होली का त्यौहार आ गया
केसरिया पिचकारी लेकर
कुमकुम गुलाल अबीर की
उल्लसित फुहार बरसा कर
मौसम पर पलाश छा गया
होली का त्यौहार आ गया
रसिया गाता हवाओं संग
कलियों में तरुणाई जगा
जाफरानी अमराई महका
होली का त्यौहार आ गया !
.............................. ........
होली आई- होली आई
दहके फूल पलाश के
महके रंग गुलाल के
सरसों ने ली अंगड़ाई
होली आई होली आई
फागुन का देख जोश
धरती डूबी मस्ती में
मौसम में मादकता छाई
होली आई होली आई
डाल डाल टेसू खिले
चैत की गुहार पर
चेहरों पर उल्लास मिले
होली आई होली आई
हवा के पंख पर केसर उड़े
लेकर फगुआ का सन्देश
कूकी कोयलिया वन वन
होली आई होली आई
मुखरित हो अब छेड़ो राग
ढाई आखर प्रेम के रहें
द्वेष बचे न शेष
होली का उल्लास गूंजे
भीगी बौराई पुरवाई
होली आई होली आई l
..................
.....................
आई.... . होली..... आई
.....
.हायकु
...................
धूप पंखुरी
खिली फागुन बन
बजे मृदंग
......................
मौसम टेसू
मन हुआ फागुन
होली के संग
..........................
महकी हवा
रसपगी होली सी
बिखरे रंग
......................
होली के रंग
उमंग नवरंग
भंग के संग
.....................
फागुनी मौसम .
फागुनी मनुहार पर
गुन्जन करते भंवरे डोले
फूलों को रिझाते बोले
जाड़े की केंचुल उतार
करें धरा का रूप श्रृंगार
नये बौर महकाएं मिलकर
पाहुन के पैरों में महावर रच
प्रीत अंग अंग में भर दें
नये कांधों पर बसंत को लादें
अभिसारी गीतों से फागुनी
मौसम भीना भीना कर दें !
डॉ सरस्वती माथुर
सेदोका
"सुरंगी होली!"
1
प्रेम छंद के
पिरो करके गीत
घर आँगन गूंजा
मधुर राग
सज़ धज के आया
प्रिय, देखो न फाग l
2
सपनो भरी
रंगों की दुनिया है
गूंजे होली के राग
प्रेम के संग
आओ भी प्रियतम
खेलें हम भी फाग
3
महके टेसू
केसरिया पलाश
फागुनी प्रीत संग
गूंजें हैं हास
मधुरम रागिनी
है मधुरंग फाग
4
होली है आई
शीतल मधुमय सी
प्रेम रंग संजोये
तन रंग लो
फागुन की बेला है
मन को भी रंग लो
5
दुतारी चंग
झांझ मंजीरा बाजे
अबीर गुलाल से
महके रंग
झरोखे अटारी पे
गूँज रहें मृदंग
6
सुरंगी होली
मधुमास में डोली
बिखरे फाग रंग
ढफ बजाएं
फगुआ गुलाल में
होलिया के हुरंग
7
भोर ने खेली
इन्द्रधनुषी होली
सूर्य फैंके गुलाल
नभ ने रंगा
खोल के मुट्ठी डाला
करा धरा को लाल
8
पिचकारी में
फागुनी आहट ले
आई ऋतु सुहानी
मन के राग
नवरंग बजाते
गा रहे सब फाग
10
भीगा सा मन
फागुनी संबोधन
आशाओं के गुलाल
बिखरे रंग
इन्द्रधनुषी फाग
मधुरिम से राग
डॉ सरस्वती माथुर
"होली के रंग.
"रंग चूँदडी...
!"
तांका
1
रंग चूँदडी
फागुन
का मौसम
उडता फिरे
लेकर के राग रंग
अनुरागी सा मन
2
रंग उड़े
तो
फाग चिड़िया बोली
आई है होली
भरके मधु मिठास
लो करो न ठिठोली
3
सतरंग में
मौसम लाया फाग
छनती भंग
होली की तरंगों
में
फागुन के संग मेंl
4
रंग बयार
फागुनी ये त्यौहार
भीगा तन
भी
प्रीत पीत पराग
अँगना में गुलाल
5
फगुआ मन
पाहुन बन
डोला
मिटा कटुता
मौसम से यूँ बोला
स्वागत फागुन का l
6
जमुना
तीरे
सुन बाँसुरी राधा
हुई अधीर
भीगती गयी वो तो
प्रेम के रस रंग l
7
रंग गुलाल
बिखरा धरा पर
झूमी गोपियाँ
डाल के श्याम रंग
फागुन
हुआ मन
8
मुरली बाजे
ओढ़ चूंदडी लाल
राधा का मन
गया होली में रंग
श्याम सखा के संग
9
रंग बयार
फागुनी ये त्यौहार
भीगा तन
भी
प्रीत पीत पराग
अँगना में गुलाल
10
द्धार द्धार पे
फागुनी बयार
है
संग रंगों के
अबीर गुलाल है
रंगीला त्यौहार है l
11
टेसू के फूल
चंग मृदंग संग
फागुनी रंग
रस रंग ठंडाई
होली
की टोली आई l
डॉ सरस्वती
माथुर
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हाइकु......
"मन हुआ फागुन !"
1
बालिया झाल
होलिया ताप संग
तडतडाई l
2
होली - कोयल
टेसू रंग में घूमे
फिरकनी सी l
3
रंग बरसे
गुलाल की जाजम
फागुनी मन l
4
टेसू खिले तो
ऋतु फागुन की भी
रंगीन हुई l
5
बजी झांझर
उड़ते गुलाल पर
फागुन रीझा l
6
धरा पे झूमें
फगुनाया मौसम
बौराए रंग l
7
रंगों के पाखी
फागुन में उड़ते
मस्त मदन l
8
उत्सवी रुत
रंग मयूर नाचे
भंग के संग l
9
मन रंगीला
फागुनी हवा संग
उडता फिरा l
10
मन के रंग
दहके पलाश से
हुए फागुनी l
11
मौसम टेसू
मन हुआ फागुन
होली के संग l
डॉ सरस्वती माथुर
"होली आई तो !"
मन महका
रंगों की छटा छाई
होली आई तो
धरा भी फगुनाई
फागुन चुन्नी
पुरवा संग उडी
सभी को भाई
मृदंग चंग बजे
फाग गुंजाई
रंगों के भंवरों की
गुंजार भाई
ढोल मंजीरे बजे
फागुन ऋतु आई
डॉ सरस्वती माथुर
2
"मन महका!"
रंग बयार
धरा पर बरसी
मन खुमारी
अंगड़ाई ले सरसी
छोड़ नींद को
उडी तितली बन
डाल डाल पे
विविधवर्णी फूल
खिले उन्मत
बिखरे फाग रंग
जगी सुगंध
पी के रंग गुलाल
रंगीन तन
रिश्तों की मिठास में
घुले थे रंग
प्यार की ठिठोली से
महके होली रंग
डॉ सरस्वती माथुर
नवगीत ---याद के पाहुन
"आज की होली!"
फाग बदला राग बदला
चंग भंग का हुरंग बदला
गुलाल की खुशबू बदली
डफ का मधुर ताल बदला
टेसू की महक बदली
प्रीत का आसंग बदला
राधा कृष्ण का रास बदला
पिचकारी का आकार बदला
चन्दन तो सफ़ेद लाल रहा पर
सुगंध का रस्मो रिवाज बदला
पकवान-गुझिया का स्वाद बदला
होली मिलन की रस्म भी बदली
इन्टरनेट का जाल भी बदला
मोबाईल से रस्मे बधाई देने का
नया रूप बदला नया हाल बदला
फैशन बदला पर्वों का मिजाज़ बदला
फाग के रसीले गीतों के फ्यूज़न में
डी जे का शोर करता सुर ताल बदला
डॉ सरस्वती माथुर
हाइकु......
"मन हुआ फागुन !"
1
बालिया झाल
होलिया ताप संग
तडतडाई l
2
होली - कोयल
टेसू रंग में घूमे
फिरकनी सी l
3
रंग बरसे
गुलाल की जाजम
फागुनी मन l
4
टेसू खिले तो
ऋतु फागुन की भी
रंगीन हुई l
तडतडाई l
2
होली - कोयल
टेसू रंग में घूमे
फिरकनी सी l
3
रंग बरसे
गुलाल की जाजम
फागुनी मन l
4
टेसू खिले तो
ऋतु फागुन की भी
रंगीन हुई l
5
रंगों के पाखी
फागुन में उड़ते
रंगों के पाखी
फागुन में उड़ते
मस्त मदन l
6
उत्सवी रुत
रंग मयूर नाचे
भंग के संग l
7
रंग मयूर नाचे
भंग के संग l
7
मन रंगीला
फागुनी हवा संग
उडता फिरा l
8
फागुनी हवा संग
उडता फिरा l
8
मन के रंग
दहके पलाश से
हुए फागुनी l
9
मौसम टेसू
मन हुआ फागुन
होली के संग l
डॉ सरस्वती माथुर
दहके पलाश से
हुए फागुनी l
9
मौसम टेसू
मन हुआ फागुन
होली के संग l
डॉ सरस्वती माथुर
4
"फागुन की फुहार उडी !"
ललछौने मौसम में उडी
फाग की पतंग
सतरंगी डोर के संग
हवाओं की जाफरानी पाँतें
लौट गयी बांसों में
ढोल मंजीरे बजते रहे
फाग गूंजी सांसों में
मन में गुलाल उड़े
बिखरे मुंडेरों पर रंग
आँगन में शंख बजे
कंचनवर्णी गंध
होली को पंख लगे
महके फिर सम्बन्ध
औसारों दालानो में
हुडदंगों की टोली
बजते रहे चंग l
मच रहा है शौर
चंग मृदंग संग
घुट रही है भंग
डॉ सरस्वती माथुर
5
ललछौने मौसम में उडी
फाग की पतंग
सतरंगी डोर के संग
हवाओं की जाफरानी पाँतें
लौट गयी बांसों में
ढोल मंजीरे बजते रहे
फाग गूंजी सांसों में
मन में गुलाल उड़े
बिखरे मुंडेरों पर रंग
आँगन में शंख बजे
कंचनवर्णी गंध
होली को पंख लगे
महके फिर सम्बन्ध
औसारों दालानो में
हुडदंगों की टोली
बजते रहे चंग l
मच रहा है शौर
चंग मृदंग संग
घुट रही है भंग
डॉ सरस्वती माथुर
5
" उड़े गुलाल रंग !"
खेल रही
फागुनी हवा
मौसम की देहरी पर
फाग के रचे भाव
उड़े गुलाल रंग
राधा के मन की
हथेली पर
कृष्ण को है घेरे
गोपियों की भीड
चल रहें हैं
नैनो के फेरे
बरसे रंगों के तीर
प्रेम की पहेली पर
फागुनी चिड़िया चह्की
भोर के आते ही
राधा जी भी बहकीं
ढफ ढोल बजते ही
यौवन रंग चढ़ा फिर
सखी और सहेली पर !
खेल रही
फागुनी हवा
मौसम की देहरी पर
फाग के रचे भाव
उड़े गुलाल रंग
राधा के मन की
हथेली पर
कृष्ण को है घेरे
गोपियों की भीड
चल रहें हैं
नैनो के फेरे
बरसे रंगों के तीर
प्रेम की पहेली पर
फागुनी चिड़िया चह्की
भोर के आते ही
राधा जी भी बहकीं
ढफ ढोल बजते ही
यौवन रंग चढ़ा फिर
सखी और सहेली पर !
6
"रस्म होली की!"
फिर फागुन
लगा बुलाने
रंग गुलाल
लगे हुलसाने
बंधे बंधे आँगन में
बच्चे भी लगे अनमने
रिश्ते भी नहीं रहे घने
साझा चूल्हा मंद पड़ा है
अकेलेपन से लगे पगलाने
थके पिता हैं माँ बीमार
कौन बनाए पुए पकवान
घर में सदस्य हैं कुल चार
पडोसी से है सब अनजान
एक दूसरे से लगे कतराने
रस्म होली की
लगे भूलाने
संबंधों से भी
हुए बेगाने
डॉ सरस्वती माथुर
खेल रही
फागुनी हवा
मौसम की देहरी पर
फाग के रचे भाव
उड़े गुलाल रंग
राधा की मन
हथेली पर
कृष्ण को है घेरे
गोपियों की भीड
चल रहें हैं
नैनो के फेरे
बरसे रंगों के तीर
प्रेम की पहेली पर
फागुनी चिड़िया चह्की
भोर के आते ही
राधा जी भी बहकीं
ढफ ढोल बजते ही
यौवन रंग चढ़ा फिर
सखी और सहेली पर !
डॉ सरस्वती माथुर
फिर फागुन
लगा बुलाने
रंग गुलाल
लगे हुलसाने
बंधे बंधे आँगन में
बच्चे भी लगे अनमने
रिश्ते भी नहीं रहे घने
साझा चूल्हा मंद पड़ा है
अकेलेपन से लगे पगलाने
थके पिता हैं माँ बीमार
कौन बनाए पुए पकवान
घर में सदस्य हैं कुल चार
पडोसी से है सब अनजान
एक दूसरे से लगे कतराने
रस्म होली की
लगे भूलाने
संबंधों से भी
हुए बेगाने
डॉ सरस्वती माथुर
खेल रही
फागुनी हवा
मौसम की देहरी पर
फाग के रचे भाव
उड़े गुलाल रंग
राधा की मन
हथेली पर
कृष्ण को है घेरे
गोपियों की भीड
चल रहें हैं
नैनो के फेरे
बरसे रंगों के तीर
प्रेम की पहेली पर
फागुनी चिड़िया चह्की
भोर के आते ही
राधा जी भी बहकीं
ढफ ढोल बजते ही
यौवन रंग चढ़ा फिर
सखी और सहेली पर !
डॉ सरस्वती माथुर
"रस्म होली की!"
फिर फागुन
लगा अलसाने
रंग गुलाल
लगे जलाने
बंधे बंधे आँगन में
बच्चे भी
लगे अनमने
रिश्ते भी
नहीं रहे घने
साझा चूल्हा
मंद पड़ा है
अकेलेपन से
लगे पगलाने
थके पिता हैं
माँ बीमार
कौन बनाए
पुए पकवान
घर में सदस्य
हैं कुल चार
पडोसी से है
सब अनजान
एक दूसरे से
लगे कतराने
रस्म होली की
लगे भूलाने
संबंधों से भी
हुए बेगाने
डॉ सरस्वती माथुर होली का त्यौहार आ गया
"होली के रंग.
फिर फागुन
लगा अलसाने
रंग गुलाल
लगे जलाने
बंधे बंधे आँगन में
बच्चे भी
लगे अनमने
रिश्ते भी
नहीं रहे घने
साझा चूल्हा
मंद पड़ा है
अकेलेपन से
लगे पगलाने
थके पिता हैं
माँ बीमार
कौन बनाए
पुए पकवान
घर में सदस्य
हैं कुल चार
पडोसी से है
सब अनजान
एक दूसरे से
लगे कतराने
रस्म होली की
लगे भूलाने
संबंधों से भी
हुए बेगाने
डॉ सरस्वती माथुर होली का त्यौहार आ गया
फागुनी बौछार लेकर
भौरों का अभिसार लेकर
मन में उल्लास जगा गया
रसभरा त्यौहार आ गया
केसर चन्दन टेसू रंगों में
मुस्कराता मधुमास छा गया
चंग और फाग-राग गाता
होली का त्यौहार आ गया
केसरिया पिचकारी लेकर
कुमकुम गुलाल अबीर की
उल्लसित फुहार बरसा कर
मौसम पर पलाश छा गया
होली का त्यौहार आ गया
रसिया गाता हवाओं संग
कलियों में तरुणाई जगा
जाफरानी अमराई महका
होली का त्यौहार आ गया !
.............................. ........
होली आई- होली आई
दहके फूल पलाश के
महके रंग गुलाल के
सरसों ने ली अंगड़ाई
होली आई होली आई
फागुन का देख जोश
धरती डूबी मस्ती में
मौसम में मादकता छाई
होली आई होली आई
डाल डाल टेसू खिले
चैत की गुहार पर
चेहरों पर उल्लास मिले
होली आई होली आई
हवा के पंख पर केसर उड़े
लेकर फगुआ का सन्देश
कूकी कोयलिया वन वन
होली आई होली आई
मुखरित हो अब छेड़ो राग
ढाई आखर प्रेम के रहें
द्वेष बचे न शेष
होली का उल्लास गूंजे
भीगी बौराई पुरवाई
होली आई होली आई l
..................
.....................
आई.... . होली..... आई
.....
.हायकु
...................
...................
धूप पंखुरी
खिली फागुन बन
बजे मृदंग
......................
मौसम टेसू
मन हुआ फागुन
होली के संग
..........................
महकी हवा
रसपगी होली सी
बिखरे रंग
......................
होली के रंग
उमंग नवरंग
भंग के संग
.....................
फागुनी मौसम .
फागुनी मनुहार पर
गुन्जन करते भंवरे डोले
फूलों को रिझाते बोले
जाड़े की केंचुल उतार
करें धरा का रूप श्रृंगार
नये बौर महकाएं मिलकर
पाहुन के पैरों में महावर रच
प्रीत अंग अंग में भर दें
नये कांधों पर बसंत को लादें
अभिसारी गीतों से फागुनी
मौसम भीना भीना कर दें !
डॉ सरस्वती माथुर
सेदोका
"सुरंगी होली!"
1
प्रेम छंद के
पिरो करके गीत
घर आँगन गूंजा
मधुर राग
सज़ धज के आया
प्रिय, देखो न फाग l
2
सपनो भरी
रंगों की दुनिया है
गूंजे होली के राग
प्रेम के संग
आओ भी प्रियतम
खेलें हम भी फाग
3
महके टेसू
केसरिया पलाश
फागुनी प्रीत संग
गूंजें हैं हास
मधुरम रागिनी
है मधुरंग फाग
4
होली है आई
शीतल मधुमय सी
प्रेम रंग संजोये
तन रंग लो
फागुन की बेला है
मन को भी रंग लो
5
दुतारी चंग
झांझ मंजीरा बाजे
अबीर गुलाल से
महके रंग
झरोखे अटारी पे
गूँज रहें मृदंग
6
सुरंगी होली
मधुमास में डोली
बिखरे फाग रंग
ढफ बजाएं
फगुआ गुलाल में
होलिया के हुरंग
7
भोर ने खेली
इन्द्रधनुषी होली
सूर्य फैंके गुलाल
नभ ने रंगा
खोल के मुट्ठी डाला
करा धरा को लाल
8
पिचकारी में
फागुनी आहट ले
आई ऋतु सुहानी
मन के राग
नवरंग बजाते
गा रहे सब फाग
10
भीगा सा मन
फागुनी संबोधन
आशाओं के गुलाल
बिखरे रंग
इन्द्रधनुषी फाग
मधुरिम से राग
डॉ सरस्वती माथुर
1
प्रेम छंद के
पिरो करके गीत
घर आँगन गूंजा
मधुर राग
सज़ धज के आया
प्रिय, देखो न फाग l
2
सपनो भरी
रंगों की दुनिया है
गूंजे होली के राग
प्रेम के संग
आओ भी प्रियतम
खेलें हम भी फाग
3
महके टेसू
केसरिया पलाश
फागुनी प्रीत संग
गूंजें हैं हास
मधुरम रागिनी
है मधुरंग फाग
4
होली है आई
शीतल मधुमय सी
प्रेम रंग संजोये
तन रंग लो
फागुन की बेला है
मन को भी रंग लो
5
दुतारी चंग
झांझ मंजीरा बाजे
अबीर गुलाल से
महके रंग
झरोखे अटारी पे
गूँज रहें मृदंग
6
सुरंगी होली
मधुमास में डोली
बिखरे फाग रंग
ढफ बजाएं
फगुआ गुलाल में
होलिया के हुरंग
7
भोर ने खेली
इन्द्रधनुषी होली
सूर्य फैंके गुलाल
नभ ने रंगा
खोल के मुट्ठी डाला
करा धरा को लाल
8
पिचकारी में
फागुनी आहट ले
आई ऋतु सुहानी
मन के राग
नवरंग बजाते
गा रहे सब फाग
10
भीगा सा मन
फागुनी संबोधन
आशाओं के गुलाल
बिखरे रंग
इन्द्रधनुषी फाग
मधुरिम से राग
डॉ सरस्वती माथुर
"होली के रंग.
"रंग चूँदडी...
!"
तांका
1
रंग चूँदडी
फागुन का मौसम
उडता फिरे
लेकर के राग रंग
अनुरागी सा मन
2
रंग उड़े तो
फाग चिड़िया बोली
आई है होली
भरके मधु मिठास
लो करो न ठिठोली
3
सतरंग में
मौसम लाया फाग
छनती भंग
होली की तरंगों में
फागुन के संग मेंl
4
रंग बयार
फागुनी ये त्यौहार
भीगा तन भी
प्रीत पीत पराग
अँगना में गुलाल
5
फगुआ मन
पाहुन बन डोला
मिटा कटुता
मौसम से यूँ बोला
स्वागत फागुन का l
6
जमुना तीरे
सुन बाँसुरी राधा
हुई अधीर
भीगती गयी वो तो
प्रेम के रस रंग l
7
रंग गुलाल
बिखरा धरा पर
झूमी गोपियाँ
डाल के श्याम रंग
फागुन हुआ मन
8
मुरली बाजे
ओढ़ चूंदडी लाल
राधा का मन
गया होली में रंग
श्याम सखा के संग
9
रंग बयार
फागुनी ये त्यौहार
भीगा तन भी
प्रीत पीत पराग
अँगना में गुलाल
10
द्धार द्धार पे
फागुनी बयार है
संग रंगों के
अबीर गुलाल है
रंगीला त्यौहार है l
11
तांका
1
रंग चूँदडी
फागुन का मौसम
उडता फिरे
लेकर के राग रंग
अनुरागी सा मन
2
रंग उड़े तो
फाग चिड़िया बोली
आई है होली
भरके मधु मिठास
लो करो न ठिठोली
3
सतरंग में
मौसम लाया फाग
छनती भंग
होली की तरंगों में
फागुन के संग मेंl
4
रंग बयार
फागुनी ये त्यौहार
भीगा तन भी
प्रीत पीत पराग
अँगना में गुलाल
5
फगुआ मन
पाहुन बन डोला
मिटा कटुता
मौसम से यूँ बोला
स्वागत फागुन का l
6
जमुना तीरे
सुन बाँसुरी राधा
हुई अधीर
भीगती गयी वो तो
प्रेम के रस रंग l
7
रंग गुलाल
बिखरा धरा पर
झूमी गोपियाँ
डाल के श्याम रंग
फागुन हुआ मन
8
मुरली बाजे
ओढ़ चूंदडी लाल
राधा का मन
गया होली में रंग
श्याम सखा के संग
9
रंग बयार
फागुनी ये त्यौहार
भीगा तन भी
प्रीत पीत पराग
अँगना में गुलाल
10
द्धार द्धार पे
फागुनी बयार है
संग रंगों के
अबीर गुलाल है
रंगीला त्यौहार है l
11
टेसू के फूल
चंग मृदंग संग
फागुनी रंग
रस रंग ठंडाई
होली की टोली आई l
डॉ सरस्वती माथुर
चंग मृदंग संग
फागुनी रंग
रस रंग ठंडाई
होली की टोली आई l
डॉ सरस्वती माथुर
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हाइकु......
"मन हुआ फागुन !"
1
बालिया झाल
होलिया ताप संग
तडतडाई l
2
होली - कोयल
टेसू रंग में घूमे
फिरकनी सी l
3
रंग बरसे
गुलाल की जाजम
फागुनी मन l
4
टेसू खिले तो
ऋतु फागुन की भी
रंगीन हुई l
5
बजी झांझर
उड़ते गुलाल पर
फागुन रीझा l
6
धरा पे झूमें
फगुनाया मौसम
बौराए रंग l
7
रंगों के पाखी
फागुन में उड़ते
मस्त मदन l
8
उत्सवी रुत
रंग मयूर नाचे
भंग के संग l
9
मन रंगीला
फागुनी हवा संग
उडता फिरा l
10
मन के रंग
दहके पलाश से
हुए फागुनी l
11
मौसम टेसू
मन हुआ फागुन
होली के संग l
डॉ सरस्वती माथुर
होलिया ताप संग
तडतडाई l
2
होली - कोयल
टेसू रंग में घूमे
फिरकनी सी l
3
रंग बरसे
गुलाल की जाजम
फागुनी मन l
4
टेसू खिले तो
ऋतु फागुन की भी
रंगीन हुई l
5
बजी झांझर
उड़ते गुलाल पर
फागुन रीझा l
6
धरा पे झूमें
फगुनाया मौसम
बौराए रंग l
7
रंगों के पाखी
फागुन में उड़ते
मस्त मदन l
8
उत्सवी रुत
रंग मयूर नाचे
भंग के संग l
9
मन रंगीला
फागुनी हवा संग
उडता फिरा l
10
मन के रंग
दहके पलाश से
हुए फागुनी l
11
मौसम टेसू
मन हुआ फागुन
होली के संग l
डॉ सरस्वती माथुर
"होली आई तो !"
मन महका
रंगों की छटा छाई
होली आई तो
धरा भी फगुनाई
फागुन चुन्नी
पुरवा संग उडी
सभी को भाई
मृदंग चंग बजे
फाग गुंजाई
रंगों के भंवरों की
गुंजार भाई
ढोल मंजीरे बजे
फागुन ऋतु आई
डॉ सरस्वती माथुर
2
"मन महका!"
रंग बयार
धरा पर बरसी
मन खुमारी
अंगड़ाई ले सरसी
छोड़ नींद को
उडी तितली बन
डाल डाल पे
विविधवर्णी फूल
खिले उन्मत
बिखरे फाग रंग
जगी सुगंध
पी के रंग गुलाल
रंगीन तन
रिश्तों की मिठास में
घुले थे रंग
प्यार की ठिठोली से
महके होली रंग
डॉ सरस्वती माथुर
मन महका
रंगों की छटा छाई
होली आई तो
धरा भी फगुनाई
फागुन चुन्नी
पुरवा संग उडी
सभी को भाई
मृदंग चंग बजे
फाग गुंजाई
रंगों के भंवरों की
गुंजार भाई
ढोल मंजीरे बजे
फागुन ऋतु आई
डॉ सरस्वती माथुर
2
"मन महका!"
रंग बयार
धरा पर बरसी
मन खुमारी
अंगड़ाई ले सरसी
छोड़ नींद को
उडी तितली बन
डाल डाल पे
विविधवर्णी फूल
खिले उन्मत
बिखरे फाग रंग
जगी सुगंध
पी के रंग गुलाल
रंगीन तन
रिश्तों की मिठास में
घुले थे रंग
प्यार की ठिठोली से
महके होली रंग
डॉ सरस्वती माथुर
नवगीत ---याद के पाहुन
"आज की होली!"
फाग बदला राग बदला
चंग भंग का हुरंग बदला
गुलाल की खुशबू बदली
डफ का मधुर ताल बदला
टेसू की महक बदली
प्रीत का आसंग बदला
राधा कृष्ण का रास बदला
पिचकारी का आकार बदला
चन्दन तो सफ़ेद लाल रहा पर
सुगंध का रस्मो रिवाज बदला
पकवान-गुझिया का स्वाद बदला
होली मिलन की रस्म भी बदली
इन्टरनेट का जाल भी बदला
मोबाईल से रस्मे बधाई देने का
नया रूप बदला नया हाल बदला
फैशन बदला पर्वों का मिजाज़ बदला
फाग के रसीले गीतों के फ्यूज़न में
डी जे का शोर करता सुर ताल बदला
डॉ सरस्वती माथुर
फाग बदला राग बदला
चंग भंग का हुरंग बदला
गुलाल की खुशबू बदली
डफ का मधुर ताल बदला
टेसू की महक बदली
प्रीत का आसंग बदला
राधा कृष्ण का रास बदला
पिचकारी का आकार बदला
चन्दन तो सफ़ेद लाल रहा पर
सुगंध का रस्मो रिवाज बदला
पकवान-गुझिया का स्वाद बदला
होली मिलन की रस्म भी बदली
इन्टरनेट का जाल भी बदला
मोबाईल से रस्मे बधाई देने का
नया रूप बदला नया हाल बदला
फैशन बदला पर्वों का मिजाज़ बदला
फाग के रसीले गीतों के फ्यूज़न में
डी जे का शोर करता सुर ताल बदला
डॉ सरस्वती माथुर
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