"साजिश न करना !"
ओ नैन मेरे
ख्याबों को बुनने देना
साजिश न करना
उधड़ी जिंदगी के
उलझे हैं धागे
पर आशाओं को
गुनने देना
नींद सफर में
मकड़ी के जालों सा
होगा ताना बाना
तू बांध उनका जाल
कुछ लम्हे
रंग कर इनको
सूरज सा ढलने देना
साजिश न करना
क्रम है जीवन का
ढला अरुण
उजास लेकर
फिर निकलेगा
तो तू विश्वास की
इस अनुभूति को
पलने देना
साजिश न करना l
डॉ सरस्वती माथुर
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"जीवन यात्रा में !"
रहस्यों भरा है
मन आकाश
तुम भी नहीं अब
रहते हो पास
कैसे पूरी करूँ मैं
जीवन यात्रा
सात जन्म में
अब भी विश्वास
याद तुम्हारी
अंकुराती है जब
पीली पड जाती है
मृगतृष्णा सी
मिलने की आस
अब तो कहीं से आकर
मुखरित होकर यह
प्यास बुझा जाओ
ओ मेरे सुधाकर
धन्य हो जाऊँगी
तुम्हें पाकर !
डॉ सरस्वती माथुर
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