शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

2015 ......साहित्य का नया अध्याय पहली पोस्ट मेरे नए हाइकु ........मन परिंदा (3.1.15)

मेरे नए हाइकु ....

-डॉ सरस्वती माथुर

मन परिंदा
उड़ता फिरता सा
चुहल करता l

धीरे- धीरे से
माँ बाबा का घर भी
बदल गया l

मन किताब
गहरे अक्षर भी
मिटते गये l

मन का फूल
यादों की बगिया में
चुभता शूल l

धूप उदास
कुहासे  से झाँकती
पार न आती l

मैली हुई धूप
सूर्य के गौने पर 
बिगड़ा रूप  l

सोये पेडों को
झूला देती हवाएँ
लोरियाँ गातीं l

पेड़ों के द्धारे
गीत  सुनाता पाखी
आकुल पात l

अलाव जले
चौपालों पे तांत्रिक  
पीपल  तले l
१०
यादों की गंध
बिखरती  ही रही
मन आँगन l
११
मन जलाती
पुरनम हवाएँ
बुझ न पातीं l
१२
काँच सी यादें
टूट कर बिखरी
कौन समेटे !
१३
झरी  शैफाली
देर तलक रोई
पेड़ की डाली l
१४
गौद भराई
फूलों की करने को
आया बसंत l
१५
जोगी सा मन
हर  आँगन में आ 
प्रेम मांगता  l
डॉ सरस्वती माथुर
(सर्वाधिकार सुरक्षित)

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