मेरे नए हाइकु ....
-डॉ सरस्वती माथुर
१
मन परिंदा
उड़ता फिरता सा
चुहल करता l
२
धीरे- धीरे से
माँ बाबा का घर भी
बदल गया l
३
मन किताब
गहरे अक्षर भी
मिटते गये l
४
मन का फूल
यादों की बगिया में
चुभता शूल l
५
धूप उदास
कुहासे से झाँकती
पार न आती l
६
मैली हुई धूप
सूर्य के गौने पर
बिगड़ा रूप l
७
सोये पेडों को
झूला देती हवाएँ
लोरियाँ गातीं l
८
पेड़ों के द्धारे
गीत सुनाता पाखी
आकुल पात l
९
अलाव जले
चौपालों पे तांत्रिक
पीपल तले l
१०
यादों की गंध
बिखरती ही रही
मन आँगन l
११
मन जलाती
पुरनम हवाएँ
बुझ न पातीं l
१२
काँच सी यादें
टूट कर बिखरी
कौन समेटे !
१३
झरी शैफाली
देर तलक रोई
पेड़ की डाली l
१४
गौद भराई
फूलों की करने को
आया बसंत l
१५
जोगी सा मन
हर आँगन में आ
प्रेम मांगता l
डॉ सरस्वती माथुर
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
-डॉ सरस्वती माथुर
१
मन परिंदा
उड़ता फिरता सा
चुहल करता l
२
धीरे- धीरे से
माँ बाबा का घर भी
बदल गया l
३
मन किताब
गहरे अक्षर भी
मिटते गये l
४
मन का फूल
यादों की बगिया में
चुभता शूल l
५
धूप उदास
कुहासे से झाँकती
पार न आती l
६
मैली हुई धूप
सूर्य के गौने पर
बिगड़ा रूप l
७
सोये पेडों को
झूला देती हवाएँ
लोरियाँ गातीं l
८
पेड़ों के द्धारे
गीत सुनाता पाखी
आकुल पात l
९
अलाव जले
चौपालों पे तांत्रिक
पीपल तले l
१०
यादों की गंध
बिखरती ही रही
मन आँगन l
११
मन जलाती
पुरनम हवाएँ
बुझ न पातीं l
१२
काँच सी यादें
टूट कर बिखरी
कौन समेटे !
१३
झरी शैफाली
देर तलक रोई
पेड़ की डाली l
१४
गौद भराई
फूलों की करने को
आया बसंत l
१५
जोगी सा मन
हर आँगन में आ
प्रेम मांगता l
डॉ सरस्वती माथुर
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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