मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

भीगी चाँदनी सी ,सृजन कण

भीगी चांदनी सी सुगंधमयी कोंपलें
  हरसिंगार की
खोल गयी खिड़की
 मन में प्रवेश की
 भीगी चांदनी सी

 अनदेखी आवाजों के
नये नये खवाबों के
शब्दहीन द्वार पर
 शब्दबद्ध हुई
 भैरवी रागिनी सी

 ओस की बंदनवार
 धरा नभ के आर पार
 इच्छाओं की दीर्घा पर
 अनदेखे दृश्यों सी
 कमल कामिनी सी

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सृज़न कण
झर- झर
बिखेरेंगे चांदी  से
 फूल हरसिंगार के
दिन में खवाब बुनते
 सृजन कण चुनते
 नया मौसम उतारेंगे

 चेहरों  से
 पीड़ा के दर्द उठा
 स्वर्ण स्वपन के
 सूने निलय में
 गहरे विषाद  बुहारेंगे

उगते डूबते
 सूरज रंगों में
 खिलेंगे चटकेंगे 
 निस्तंद्र प्रहरी से
 विश्वास निखारेंगे
डॉ सरस्वती माथुर

 

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