मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

मिले जुले हाइकु

*फूल पर हाइकु
1
सुहानी हवा
 बटोरती ह़ी रही
 हरसिंगार
 2
  ऋतु  चूनर
उड़ा ले गया  मन
अमलताश
3
हरसिंगार 
श्रृंगार करे धरा का
 मोती से फूल
4
धरा  निहाल
बटोर कर लाल
पलाश - फूल
 5
,शरमाया  सा
 प्रेमी सूरजमुखी
 सूर्ये को देखे
 6
,मोती की चुन्नी
 हवा के कंगूरे पे
 हरसिंगार
7
पलाश उगे
 लाल आंचल ओढ़
 तरु सजा सा
8
 .रस पी नाची
 नशेडी  तितली
 अमलताश संग
9
झूम जा मन
 अमलताश संग
 पी ले ललाई
 10
हंस सा  मन 
मोती लाल पलाश
मानसरोवर
11  
साँझ  प्यारी सी
 अमलताशी रंग
 मुग्ध पुष्प भी
12
 श्वेत चूड़िया चूड़ियाँ   
  हाथ में  पहन के 
  शैफाली सजी
13
ज्वाला दहकी
 हवा से डरता सा  
 गुलमोहर
 14
तितलियाँ भी
 हरसिंगार संग
 नर्तकी हुईं
15
कृष्ण बांसुरी
 हरसिंगारी राधा
 प्रेम हंसिनी
16
 पलाश  फूल
 हवा चुनती डोली
 लाल हो गयी
17
सूरजमुखी
पोधे के कंगूरों से
 सूर्य को देखे
18
 लेज़ी डेज़ी थी
 झांकती खिड़की से
 प्रेमी भंवरे को

 सूरजमुखी
 पोधे के झरोखे से
  सूर्य निहारे
20
 हवा में घुल
 गुलाब के फूल भी
 'खुशबू  बने
21
 पलाश मन
 हवा के आँचल सा
 उडता गया 
22
  पलाश  फूल
 लाल मोती से गिरे
 धरा पे जड़े
२३
**२५ *
*मेहँदी **लगा*
*पलाश खिले- फूल*
* रंग ले आये *
२६
अमलताश
 लाल पलाश साथ
 लाल पीला सा
२७
चांदनी आई
शैफाली को ओढ़ाई
 श्वेत  चूनर 

२८.
सफ़ेद चोला
ओढ़  हरसिंगार
 खिला - महका
डॉ सरस्वती माथुर. 
२९.
दिया ऋतु ने
कच्ची धूप  सा सोंधा
 हरसिंगार
प्रस्तुत  हैं मेरे २ हाइकु
       1
   खुली मुंडेर
    ऋतु से बतियाता
    अमलताश
       2
   धूप  लहरें
    माणिक बरसाता
    गुलमोहर
  डॉ सरस्वती माथुर
32
 *गुलमोहर
गरमी  की भट्टी में
अंगारा हुआ   *
33
*रात की स्याही*
* दूधिया जुगनू से*
*प्रस्तुत हैं २ हाइकु :*
*5* *उनींदा दिन*** *सफ़ेद गुलाब से *** *रंग ले भागा *** *
 6                                        * * हवा तितली  
* * मोगरे का रस पी* * गंध ले उडी*
 
  
**
* *

 




   
 

 

 

 

 ट्यूलिप में                                      
  बसंत का भंवरा
  कैद हो गया 

 

*बालसुलभ सी**  *
* गुलाब की कली*
* खिली खिली सी *
                                

 

 सफ़ेद फूल
 मेपल पेड पर
 पाहुन बने
:
* योगनिद्रा में*
* समाधिस्थ कमल *
* खिला खिला सा   *
**
* ख़ुशी के फूल*
* मन के गमले  में/** पौधे*
* खिले खिले से *
**
*रात की स्याही *
*दूधिया जुगनू से *
*चमेली   फूल *

* !डॉ सरस्वती माथुर *
*प्रकृति1विषयक हाइकू*
*1*
 सूरज जमा
 दिन हुआ बर्फ सा
 धूप ठिठुरी
 2
 समय पढो
 प्रकृति  पहचानो
 आज को जिओ
 3
 भूरी पत्तियां
 पतझर लायी है
 पेड ठगा सा
 4
 झरना बहा
 पहाड़ी पगडंडी
 फैला नदी सा
 5
 
 प्रवासी पक्षी
 ठंडी  झील में आये
 मौसम बदला
 6
 हाथ हिलाता
 चौखट पर सूर्य
 जागी चिड़िया
 7
 पीले से पात
 ऋतु के द्वार पे
 रुका बसंत
 8
 आखिरी रंग
 उतरा आकाश में
 परछाई सा
 9
 गौधूली आई
 मौन सा भर गयी
 थका सा दिन
 10
 गिरी पत्तियां
 याद दिला गयीं हैं
 अंतिम विदा
 11
 पतझर है
 पत्ते सरसराते
 पेड को ताके
 12
 सर्द हवाएं
 कोहरे की चादर
 आओ ना धूप
 13
सूर्य सुबह
 धूप ओढ़ के आया
 सभी को भाया
 14
 आह्ट देता
 आया है पतझड़
 खाली घरोंदा
 15
 सुबह ओस
 बंदनवार बनी
  फूल पे टंकी
 16
 झरती बर्फ
रुई रुई मौसम        
 खो गयी  धूप
 17
 सफ़ेद फूल
 मेपल पेड पर
 पाहुन बने
 18
 डूबता सूर्य
 कल भोर के संग
 आने वाला है
 १९                          
  आखिर पत्ता                        
 हवा में लहराया
 मौन विदाई क़ी
 20
सतत प्यास
बहती नदी चली
 धीमी उदास
 21
झुण्ड में पक्षी
 सुरंग सा आकाश
 धीमी उड़ान
 22
 हजारों सूर्य
 टिमटिमाते दीये
 एक आकाश
 23
 कोयल डोली
 डाल डाल फुदकी
 बसंत आया
 24
 तितली डोली
 मकरंद पी बोली
 वाह बसंत
 25
 हजारों तारे
 एक साथ  जगे से
 नीली रात में
 26
 कड़ी धूप मे
बेकल से परिंदे
 सूर्य में आग
 27
 पतझड़ में
 झरी पत्तियां उडी
  चरमराई  
 28
गंध पीती हूँ
खिली रजनीगंधा
 महका कर
29
 पंछी डोलते
 पंखो को खोले हुए ek
 पेड ढूँढते 
 30
 नभ बगिया                                              
 अम्बर से निहारे
 पुष्प सितारे
 31
 प्रवासी पक्षी
 ठंडी  झील में आये
 मौसम बदला
 32
 जेठ की गर्मी
 तडपडाते  लोग
 छांह तलाशे
 33
 ठंडी हवाएं
 ठिठुरते से लोग
 जले अलाव
 34
 प्रवासी पक्षी
 झील में जलकुम्भी
 सर्द मौसम
 35
  डूबता सूर्य
  आने वाला है
  लेकर   भोर
36............30.3.12
  रुई सी भोर
 धूप के सायों संग
 खिली खिली सी
  37
धूप पतंग
 सांझ के कंधे पर
 अटक गयी
38
रात की स्याही
 भोर के कागज़ पे
 धूप कलम
39
 मन पतंग
 प्रेम की डोर बांध
 कटता गया
40
चाँद को देख
अकुलाया चकोर
 प्रेम गहन
41
मीठी सी नींद
जगे से सपने ले
 आँखों में तैरी
42
झरी बर्फ तो
 ठिठुरी सी धरा भी
 कंप कंपायी
43
 बर्फ के कण
 झिलमिल मोती से
 हवा में उड़े
44
चंपा की गंध
 रातरानी के संग
 मीठी सी नींद
45
 टेसू रंग में
 घुली घुली सी शाम
 नभ से मिली
46
 पंक्तिबद्ध सी
फूल की पंखुड़ियां
  धूप पतंग
47
थमा तूफ़ान
 पेड पोधों ने रखा
 दो पल मौन
48
बारिश पीती
 धरती हरी हुई
 चह्के पाखी
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
31.3.१२
49
गर्म से दिन
हवाओं में उड़ते
 सूखे तालाब
50
 गर्म हवाएं
 भीतर तक गईं
 मन जला सा
51
प्यास लाया है
गर्मी का मौसम
तपा  आकाश
 52
पानी जेल है
है उसमे ह़ी  कैद
 कैदी मछली
53
वक्त उठा है
 फुफकारता हुआ
 सुनामी हुआ
 54
श्वेत सुबह
पेड़ों से छन कर
हरी सी हुई
55
पानी में डूबी
सुबह की किरणे
 सतरंगी हुईं
  56
 पत्तों की लय
 हवाओं संग गूंजीं
  संगीत हुईं
 57
 तपता सूर्य
 धूप की लहरों में
  अंगारा दिन
 
58
चूनर ओढा
 सागर को लहरें
 तट पे  आयीं
59
विदा पत्तियां
 ठूंठ पेड अकेला
  पतझड़ मे
50
 उपर नभ
 दरिया में चाँद था
 तन्हा तन्हा
51
नींद  में चले
किसके पदचाप
स्वपन   जगा
 52
नन्हे शिशु सी
 पैर पटकती है 
किसकी याद?
53
हरसिंगार
मधुबन ले आया
झुके पतों पे
54
 मृत परिन्दा                                  
 चारों ओर चिल्लाते
 साथी परींदे
55
सफ़ेद घटा
तृषाकुल बनाती
प्यास जगाती
56
पतझड़ में
 हवा की लाठी बजी
 सूखे पत्तों पर
57
रात के रास्ते
 रोशन कर रहें हैं
 करोड़ों  दिए
58
 साँझ आई तो
 सूरज ने उतारा
 धूप का चश्मा
59
लू भरे  झोंके
हथोड़े मारते से
 तेजाब  हुए
60
 गुलेल  चला
 घायल किया लू ने
 जन जन को


 श्वेत   चूड़ियाँ
हाथ में पहन के
सजी शैफाली

 

सूरजमुखी
 पोधे के झरोखे से
 सूर्य निहारे

 

हवा में घुल
गुलाब के फूल भी
'खुशबू बने

 

*बालसुलभ सी**  *
* गुलाब की कली*
* खिली खिली सी *
  सफ़ेद फूल
 मेपल पेड पर
 पाहुन बने

 सफ़ेद फूल
 मेपल पेड पर
 पाहुन बने
:
* योगनिद्रा में*
* समाधिस्थ कमल *
* खिला खिला सा   *
**
* ख़ुशी के फूल*
* मन के गमले  में/** पौधे*
* खिले खिले से *
**
*रात की स्याही *
*दूधिया जुगनू से *
*चमेली   फूल *

* !डॉ सरस्वती माथुर *
*प्रकृति1विषयक हाइकू*
*1*
 सूरज जमा
 दिन हुआ बर्फ सा
 धूप ठिठुरी
 2
 समय पढो
 प्रकृति  पहचानो
 आज को जिओ
 3
 भूरी पत्तियां
 पतझर लायी है
 पेड ठगा सा
 4
 झरना बहा
 पहाड़ी पगडंडी
 फैला नदी सा
 5
 
 प्रवासी पक्षी
 ठंडी  झील में आये
 मौसम बदला
 6
 हाथ हिलाता
 चौखट पर सूर्य
 जागी चिड़िया
 7
 पीले से पात
 ऋतु के द्वार पे
 रुका बसंत
 8
 आखिरी रंग
 उतरा आकाश में
 परछाई सा
 9
 गौधूली आई
 मौन सा भर गयी
 थका सा दिन
 10
 गिरी पत्तियां
 याद दिला गयीं हैं
 अंतिम विदा
 11
 पतझर है
 पत्ते सरसराते
 पेड को ताके
 12
 सर्द हवाएं
 कोहरे की चादर
 आओ ना धूप
 13
सूर्य सुबह
 धूप ओढ़ के आया
 सभी को भाया
 14
 आह्ट देता
 आया है पतझड़
 खाली घरोंदा
 15
 सुबह ओस
 बंदनवार बनी
  फूल पे टंकी
 16
 झरती बर्फ
रुई रुई मौसम       
 खो गयी  धूप
 17
 सफ़ेद फूल
 मेपल पेड पर
 पाहुन बने
 18
 डूबता सूर्य
 कल भोर के संग
 आने वाला है
 १९                          
  आखिर पत्ता                         
  हवा में लहराया
 मौन विदाई क़ी
 20
सतत प्यास
बहती नदी चली
 धीमी उदास
 21
झुण्ड में पक्षी
 सुरंग सा आकाश
 धीमी उड़ान
 22
 हजारों सूर्य
 टिमटिमाते दीये
 एक आकाश
 23
 कोयल डोली
 डाल डाल फुदकी
 बसंत आया
 24
 तितली डोली
 मकरंद पी बोली
 वाह बसंत
 25
 हजारों तारे
 एक साथ  जगे से
 नीली रात में
 26
 कड़ी धूप मे
बेकल से परिंदे
 सूर्य में आग
 27
 पतझड़ में
 झरी पत्तियां उडी
  चरमराई  
 28
गंध पीती हूँ
खिली रजनीगंधा
 महका कर
29
 पंछी डोलते
 पंखो को खोले हुए 
 पेड ढूँढते 
 30
 नभ बगिया                                                  
 अम्बर से निहारे
 पुष्प सितारे
 31
 प्रवासी पक्षी
 ठंडी  झील में आये
 मौसम बदला
 32
 जेठ की गर्मी
 तडपडाते  लोग
 छांह तलाशे
 33
 ठंडी हवाएं
 ठिठुरते से लोग
 जले अलाव
 34
 प्रवासी पक्षी
 झील में जलकुम्भी
 सर्द मौसम
 35
  डूबता सूर्य
  आने वाला है
  लेकर   भोर
36............30.3.12
रुई सी भोर
 धूप के सायों संग
 खिली खिली सी
  37
धूप पतंग
 सांझ के कंधे पर
 अटक गयी
38
रात की स्याही
 भोर के कागज़ पे
 धूप कलम
39
 मन पतंग
 प्रेम की डोर बांध
 कटता गया
40
चाँद को देख
अकुलाया चकोर
 प्रेम गहन
41
मीठी सी नींद
जगे से सपने ले
 आँखों में तैरी
42
झरी बर्फ तो
 ठिठुरी सी धरा भी
 कंप कंपायी
43
 बर्फ के कण
 झिलमिल मोती से
 हवा में उड़े
44
चंपा की गंध
 रातरानी के संग
 मीठी सी नींद
45
 टेसू रंग में
 घुली घुली सी शाम
 नभ से मिली
46
 पंक्तिबद्ध सी
फूल की पंखुड़ियां
  धूप पतंग
47
थमा तूफ़ान
 पेड पोधों ने रखा
 दो पल मौन
48
बारिश पीती
 धरती हरी हुई
 चह्के पाखी
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
31.3.१२
49
गर्म से दिन
हवाओं में उड़ते
 सूखे तालाब
50
 गर्म हवाएं
 भीतर तक गईं
 मन जला सा
51
प्यास लाया है
गर्मी का मौसम
तपा  आकाश
 52
पानी जेल है
है उसमे ह़ी  कैद
 कैदी मछली
53
वक्त उठा है
 फुफकारता हुआ
 सुनामी हुआ
 54
श्वेत सुबह
पेड़ों से छन कर
हरी सी हुई
55
पानी में डूबी
सुबह की किरणे
 सतरंगी हुईं
  56
 पत्तों की लय
 हवाओं संग गूंजीं
  संगीत हुईं
 57
 तपता सूर्य
 धूप की लहरों में
  अंगारा दिन
 
58
चूनर ओढा
 सागर को लहरें
 तट पे  आयीं
59
विदा पत्तियां
 ठूंठ पेड अकेला
  पतझड़ मे
50
 उपर नभ
 दरिया में चाँद था
 तन्हा तन्हा

नींद  में चले
किसके पदचाप
स्वपन   जगा

नन्हे शिशु सी
 पैर पटकती है 
किसकी याद?

 

हरसिंगार
मधुबन ले आया
झुके पतों पे

 

 मृत परिन्दा                                  
 चारों ओर चिल्लाते
 साथी परींदे

 


सफ़ेद घटा
तृषाकुल बनाती
प्यास जगाती

 

पतझड़ में
 हवा की लाठी बजी
 सूखे पत्तों पर

 

रात के रास्ते
 रोशन कर रहें हैं
 करोड़ों  दिए

 

     

......................................

     
 




मित्र सभी हैं

 

जीवन बगिया में

 

 खिले फूल से

 

2

 

 समय रथ

 

 जीवन पथ पर

 

 अग्नि पथ सा

 

3

 

चुभा चुभा सा

 

तीर कटु शब्दों का

 

मन घायल

 

4

 

देह नदी तो

 

 मन  लहरों जैसी

 

बहते जाओ

 

5

 

तिनके जैसे

 

 मन के सपने  हैं

 

 उड़ें  नींद में 

 

...................
   1
  हवा महकी
 पुष्प अगरबत्ती
    जब जलाई
 2
 हवा तितली
बगिया के नभ में
 पंख फैलाये
डॉ सरस्वती माथुर   28.4.12

 

यादें

 

1

 

मन मंदिर

 

 यादें अगरबत्ती

 

 जलती हुई

 

2

 

यादों  के पाखी

 

देर तक विचरे

 

मन  आकाश

 

3

 

शीशाये दिल

 

 यादों के पत्थर से

 

 टकरा -टूटे

 

 4

 

यादें कंकड़

 

 मन सागर गिरे

 

 हिलते अक्स

 

5

 

 मन सागर

 

 फिर चलने लगी

 

 यादों की नाव

 

6

 

यादों  की नाव

 

 मंझधार पहुंची

 

  भंवर हुई

 

 7

 

यादें उड़ीं 

 

अतीत नभ तक

 

तैरी  घटा  सी

 


 

यादों के पत्ते

 

 मन  में डोलते से

 

 पाखी से उड़े 

 

9

 

हवा यादों की

 

पतझरी पत्तों सी

 

सरसरायी

 

१०

 

 सहेजे यादें

 

 मन की एल्बम को

 

 खोल रही हूँ

 

डॉ सरस्वती माथुर


       11
  .धूप सी यादें
  सूरज से उतरी
   मन धरा पे
      12
   मन तितली
   यादों के फूलों पर
   मंडराती सी
        13
       मन लहरें
      दरिया के पानी सी
      बहती यादें
           14
     यादें बहकी
     छलकते जाम सी
      मन छलका
            15
     मन आकाश
     चमकती हैं  यादें
      चाँद तारों सी
              16
     यादें अंकित
     मन कैनवास पे
     तस्वीरों जैसी
            17
    खामोश यादें
    आँखों में आंसू बन
     शाम बरसीं
             18
     .यादों के लम्हे
      साथ साथ चलते
       दोस्त हो गए
            19
     .स्वेटर बुना
      यादों भरी ऊन से
      मन सलाई
          20
       शहनाई सी
     मन  की दुनिया में
     गूंजती यादें
          21
      यादें गरजें
     सावन की घटा सी
      मन बरसे
          22
    .भटकी यादें
    आवारा बादल सी
     बिन बरसे
         23
   यादों का चाँद
    खोये खोये मन सा
    गगन चढ़ा
         25
       यादें सजी सी
        पलकों पर रुकीं
        आंसू बूँद सी
             26
      आंसू  के  जैसी
      यादें पलकों सजी
        ठहरी रहीं
            27
         हौले से आयीं
         पतझड़ सी यादें
           मन उदास
                 28
        मन पाखी सा
        यादों के पिंजरे में
           छटपटाता
               29
          मन डोर पे
         पतंग सी यादें
           गगन उड़ीं
               30
            भीगा मौसम
            यादें अंकुरित हो
             उगती गयीं व्योम  जी  ने  अनुभूति  में  बड़ा  सुंदर  लेख  हाइकु  पर  लिखा  था  उसे  
जब  मैंने पढ़ा था तो तो कुछ  अंश बहुत अच्छे  लगे थे जो हाइकु कि तस्वीर को

 

"हाइकु अनुभूति के चरम क्षण की कविता है। सौंदर्यानुभूति अथवा भावानुभूति के
चरम क्षण की अवस्था में विचार, चिंतन और निष्कर्ष आदि प्रक्रियाओं का भेद मिट
जाता है। यह अनुभूत क्षण प्रत्येक कला के लिए अनिवार्य है। अनुभूति का यह चरम
क्षण प्रत्येक हाइकु कवि का लक्ष्य होता है। इस क्षण की जो अनुगूँज हमारी
चेतना में उभरती है, उसे जिसने शब्दों में उतार दिया, वह एक सफल हाइकु की रचना
में समर्थ हुआ। बाशो ने कहा है, "जिसने जीवन में तीन से पाँच हाइकु रच डाले,
वह हाइकु कवि है। जिसने दस हाइकु की रचना कर डाली, वह महाकवि है।"
! प्रस्तुत है वो अंश :  
 नदी की धारा
 सागर  में मिली तो
 मिलन हुआ

मन की चिड़िया
 स्वपन उड़ान में
  नींद से गिरी
 
आँख की नमी
एक उच्छ्वास में
 मोती सी बनी

 जीवन घडी
 टिकटिक करती
 रुक ह़ी गयी 

 अंगूर गुच्छे
 जीवन की तरह
 खट्टे मीठे से

मधुर नींद
तितली की तरह
 उड़े सपने

सूखी पत्तियां
 सपनो की तरह
 झरती रही

जलते दीप
 हर क्षण जलते
  बांध रौशनी

बूढी माँ जैसा
 आज का चेहरा  भी
 झुरियों भरा

समुद्री पाखी
 बहुत लम्बी दूरी
  फैले हैं पंख

 टूटा  सा तारा
 गिरा आसमान से
 जला जंगल 

 कस्तूरी  मृग
 मौसम में बौराए
  दर ब दर

भोर की नींद
 हाथ हिलाते फूल
तारों की छाँव

गाँव भी  अब
 शहर हो गया है
  खोई चौपाल

 नींद सागर
 सपनो भरी नाव
  चलती गयी

हवा का गीत
दिन गिनता रहा
 रात सोई सी

 एक सुई सी
 उनकी तीखी हंसी
 आंख है नम

 पुस्तक मेला
 किताबों की मंडी सा
 किताबें तोलो

ऐशट्रे मन                             
 सिगरेट से हम
 राख़ मौसम

बीज रोपा है
 नये शब्दों का अब
 गीत उगेगा

कौआ उड़ा
 मुंडेर पर बोल
 गृहिणी डरी

उड़ा कपोत
पंख फडफडाता    
 डाकिया हंसा

जीवन  प्यार
 जैसे बज़ रहे हों
 वीणा के तार

चाँद छत  में
 लजाई  दुल्हन सा
  देर तक बैठा

फिर लौटेंगे
 परदेसी पक्षी भी
 देश अपने 

कमल उगा
 दलदल पीकर
लक्ष्मी पे चढ़ा

 वक्त की राह
 सीधी ह़ी  जा रही थी
 मोड़ आ गया

 फसलें खेत
सैनिकों की तरह
 खड़ी सचेत 

आगे समय
पीछे पीछे जिन्दगी
 हांफती हुई

चींटी से सीखा
 चढ़कर गिरना
 फिर चढ़ना 

 

.1
कठफोड़वा
हथोडी  सी चोच से
घर बनाता / सुर सजाता 
 2
आँखों से ह़ी
तराशी पखारी
मन की  पौड़ी
 3
दोने में दीपक
 नदी के पथ पर
 बहता गया  /राह बनाता
 4
आंसू अटका
 आँखों की कोर पर
 लुढ़का नहीं /छलका नहीं
 5
दिल का चाँद
 रोशन कर गया
  उदास रात
 6
बहारें आयीं
 बालाएं लेती रहीं
 खिले फूलों की
 7
 प्रेमी  आकाश
 रात  जागता  रहा  
 चाँद देखता
 8
हवा की चाप
चोंका गयी फूलों को
  बसंत आया
 9
ख्यालों चले
 किसके पदचाप
 मन हवा सा 
 10
 विश्वास से
 आओ भरें जीवन
  रंगों के संग
 11
 यादों की  नाव 
 फिर चलने लगी
  मन के सागर 
 12
 नवभोर  सा
 एक नन्हा सा  पाखी
 उड़ा गगन
 13
 शब्द बांध के
 उन्मुक्त भाव पिरो
 गीत बना ल़ो
 14
संवेदनाएं
अंगड़ाई ले उठीं 
 फिर सों गईं
 15
तिनके जोड़
 घरोंदा बनाया है
चिड़िया खुश
 16
 मन कंगन
 मौसम ने पहना
  खन खनन
 17
 कनक मृग
 सीता मन जो भाया
 बिछुड़े राम
 18
तिनके जैसे
चिड़िया से स्वपन
 नींद में उड़े
 19
आंगन छाई
 चुटकी भर धूप
  मुट्ठी में कैद
 20
 गीत रच के
लौटी जब हवा तो
पंछी चह्के
 21
मन बंजारा
 मंडराती चील सा
 ड़ोलता  रहा
 22
 रिश्तों की घाटी
 बीच से काटी अब 
  कैसे पार हो
 23
अलसाया सा
 मन का अजगर
 फिर सों गया
 24
समय मोम
 पिघलता हुआ सा
 जम सा गया
 25
 बंज़र धरा
 मिलजुल करके
  करें  उर्वर
 26
 उतरे पाखी
 हरी भरी शाख पे
 नीड़ का निर्माण 
 27
नया सा गीत
 बना लेंगे हम तो
 छेड़ो तो राग
 28
सोमरस पी
 चाँद चांदनी संग
  खेलता रहा
 29
जीवन आज
ताश के पत्तों सा है
जीतो या हारो
 30
 पतझड़ में
 सूखे  उदास   झोंके
 बसंत बहा
 31
भीगा  मौसम
यादें अंकुरित हो
 उगने लगीं !
 32
चिहुंकती/ चमकती सी
 रसमय थी भोर
 भीगी धूप में
 33
कांच के जैसा
चौंधियाया आकाश
 चमकी धरा
 34
आवारा दिन
भटकती हुए ह़ी
 पकड़ा गया
 35
पकड़ कर
शब्दों की उंगली को
कविता चली
 36
कंधों  पे  थैला
सूर्य कविराज सा
  लेकर चला
 37
झरने चले
प्रकृति के अंगने
 नुपुर बोले
 38
सागर मन
 फैंकता लहरों सा
 फैन का जाल
 39
केसर क्यारी
लगती  प्रेयसी सी
  बहुत  प्यारी
 40
चाँद  उतरा
कटहली  चंपा सा
 खिड़की पर
  41
चंपा की गंध
 कांच की चूड़ियों  सा
 दूधिया मन
42
 बहती रही
 चुप्पी सी देर तक
 हवा रुकी सी
43
सोयी चांदनी
 पहरेदार चाँद
 जागता रहा
 44
प्यास लाया है
गर्मी का मौसम
तपा आकाश
45
प्यासी सी रेत
 भीगी लहरों  संग
 खार सोखती
 46
 बैचैन पेड
 पत्ते दे ठूंठ हुए
 पतझर में
47
 कठपुतली
लोकसर्जाना गढ़
भाव दिखाती 
48
गीत प्रीत के
हतप्रभ करती
 कठपुतली
49
 चिड़िया उडी
 नील गगन तक
 तैरी घटा सी
50
 बालकनी में
 लम्बी परछाई सी
 शाम  भी   आई
51
 पंछी डोलते
 पंख खोल कर के
  हवा टटोलते
52
नींद तवा
सेंकता रहता है
स्वप्नं रोटी
53
बूढी माँ जैसा
आज का समय भी
 झुर्रियों भरा
54
पंचर हुई
स्वपन की कार तो
रुका  सफ़र
५५
 धारा सा ह़ी
बहते जाना  होगा
जीवन नदी
56
धूप कड़ी थी
सबके मन भाया
पेड का साया 
 57
बहता जल
 कलकल धारा सा
झरना हुआ
58
परिवार है
 बरगद की छाँव
 संस्कार देता
59
फाहों सी बर्फ
 धरा पे गिरते ह़ी
 ढेर हो जमी
 60
 झांकते तारे
 नभ के कंगूरे से
 टॉर्च फेंकते
 61
 बंद मुट्ठी से
 अनमने रिश्ते हैं
 खुलते नहीं
62
 मेहँदी लगी
साँझ  हथेली पर
 रंग ले आई 
63
भीगी रजनी
अमावस की रात
आत्म मुग्ध सी 
६४
तारों की रात
 अमावसकी बेला
 भीगी रजनी
65 
मौसम रुका
किनारे बँधी  हुई
स्थिर कश्ती सा
66
 कोयला दिन
अंगीठी  में सुलगा
राख़ हो गया                     
67                       
पुरवा  चली
सोने की पाजेब में
 खनकती सी 
६८
अंकुर फूटा
 कांपा  हिला उठा सा
 सूर्य देखता
69
बालकॉनी में
लम्बी परछाई सी
 शाम आई
 70
 चाँद ले भागा
मधुर चांदनी को
 अमावस में
७१  
एक   प्रवाह
 नदी दौड़ी गति से
अस्तित्व बना
72
ठंडा मौसम
बादल की ओट में
छुपी थी धूप 
73
सुरमई सी
 नदी में नहा शाम
 ताजा सी लगी
74
नेम प्लेट से
अपने ह़ी घर में
लटके हम 
७५
 चाँद मुट्ठी से
 निकल कर भागा
नभ पर रुका
 डॉ  सरस्वती माथुर
 

"हाइकु अनुभूति के चरम क्षण की कविता है। सौंदर्यानुभूति अथवा भावानुभूति के
चरम क्षण की अवस्था में विचार, चिंतन और निष्कर्ष आदि प्रक्रियाओं का भेद मिट
जाता है। यह अनुभूत क्षण प्रत्येक कला के लिए अनिवार्य है। अनुभूति का यह चरम
क्षण प्रत्येक हाइकु कवि का लक्ष्य होता है। इस क्षण की जो अनुगूँज हमारी
चेतना में उभरती है, उसे जिसने शब्दों में उतार दिया, वह एक सफल हाइकु की रचना
में समर्थ हुआ। बाशो ने कहा है, "जिसने जीवन में तीन से पाँच हाइकु रच डाले,
वह हाइकु कवि है। जिसने दस हाइकु की रचना कर डाली, वह महाकवि है।"

 
 नदी की धारा
 सागर  में मिली तो
 मिलन हुआ
 2
मन की चिड़िया
 स्वपन उड़ान में
  नींद से गिरी
  3
आँख की नमी
एक उच्छ्वास में
 मोती सी बनी
 4
 जीवन घडी
 टिकटिक करती
 रुक ह़ी गयी 
 5
 अंगूर गुच्छे
 जीवन की तरह
 खट्टे मीठे से
 6
मधुर नींद
तितली की तरह
 उड़े सपने
 7
सूखी पत्तियां
 सपनो की तरह
 झरती रही
 8
जलते दीप
 हर क्षण जलते
  बांध रौशनी
 9
बूढी माँ जैसा
 आज का चेहरा  भी
 झुरियों भरा
 10
समुद्री पाखी
 बहुत लम्बी दूरी
  फैले हैं पंख
 11
 टूटा  सा तारा
 गिरा आसमान से
 जला जंगल 
 12
 कस्तूरी  मृग
 मौसम में बौराए
  दर ब दर
 13
भोर की नींद
 हाथ हिलाते फूल
तारों की छाँव
 14
गाँव भी  अब
 शहर हो गया है
  खोई चौपाल
 15
 नींद सागर
 सपनो भरी नाव
  चलती गयी
 16
हवा का गीत
दिन गिनता रहा
 रात सोई सी
 17
 एक सुई सी
 उनकी तीखी हंसी
 आंख है नम
 18
 पुस्तक मेला
 किताबों की मंडी सा
 किताबें तोलो
 19
ऐशट्रे मन
 सिगरेट से हम
 राख़ मौसम
 20
बीज रोपा है
 नये शब्दों का अब
 गीत उगेगा
 21
कौआ उड़ा
 मुंडेर पर बोल
 गृहिणी डरी
22

उड़ा कपोत
पंख फडफडाता    
 डाकिया हंसा
 23
जीवन  प्यार
 जैसे बज़ रहे हों
 वीणा के तार
 24
चाँद छत  में
 लजाई  दुल्हन सा
  देर तक बैठा
 25
फिर लौटेंगे
 परदेसी पक्षी भी
 देश अपने 
 26
कमल उगा
 दलदल पीकर
लक्ष्मी पे चढ़ा
 27
 वक्त की राह
 सीधी ह़ी  जा रही थी
 मोड़ आ गया
 28
 फसलें खेत
सैनिकों की तरह
 खड़ी सचेत 
 29
आगे समय
पीछे पीछे जिन्दगी
 हांफती हुई
 30
चींटी से सीखा
 चढ़कर गिरना
 फिर चढ़ना 
31
 बंदी चिड़िया
 पंख फैलाये देखे
 नीला  आकाश

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 





\


 *                                           
     नयनो  से ह़ी
 तराशी पखारी है 
 मन की पौड़ी
 
 सफ़ेद फूल
 मेपल पेड पर
 पाहुन बने

 डूबता सूर्य
 कल भोर के संग
 आने वाला है

 आखिर पत्ता
 हवा में लहराया
 मौन विदाई

सतत प्यास
बहती नदी चली
 धीमी उदास

झुण्ड में पक्षी
 सुरंग सा आकाश
 धीमी उड़ान

 हजारों सूर्य
 टिमटिमाते दीये
 एक आकाश


तांका
*झूल रही हूँ
यादों के पालने में
पाहुन हवा  
सखी सी देख रही
आँखों की भीगी कोर

 

 यादों  का सूर्य
 मन नभ  उतरा
 डूबेगा कब
सोचती सी बैठी हूँ
जीवन  सागर में

 

 पतझड़ में
 घिरा है  मौसम भी
 यादों के पत्ते
 हवाओं में डोलते
 पक्षी लग रहें हैं

 

यादों की वर्षा
उदास सा मौसम
 गीली सी हवा
बीते दिनों के संग
भीग रहा है मन

 

यादों की हवा
 सरसराती रही
 बेमतलब
 पतझड़ी पत्तों सी
  इधर से उधर
...................
1
पीपल छाया
 जैसे हो कोई माया
  माँ सी  स्त्रियाँ ने
 दीपक जला कर
बांधा मन्नत सूत !

 

 विदाई देता
 सूखे पत्तों को पेड
 हवा से बोला
मेरे अंशों को लेके
दूर ना जाना !
.......................

 आकाश छूके 
 लौटना है चिड़िया
 फिर पेड पे
 चांदनी उतार के
 कटहली चंपा स
उदास शाम
मौसम की हथेली
हिना सी रची

कोख में हूँ मै
साजिश मत करो
स्वयंसिद्ध हूँ

सीपी में गिरी
 स्वाति बूँद सी थी  मैं 
  अमोती रही

तुम भी आओ
मैं  भी पहुँच पाऊँ
 तो रिश्ता बने

 रात ने फैंकी
 अंधेरों की केंचुल
 निकली भोर

 

 रश्मियाँ    ओढ़े
झिलमिल सूरज
  नया प्रभात

 

तिनके जोड़
घरोंदा बनाया है
चिड़िया खुश

 

धूप और छाँव 
जीवन के दो पांव
 आते जाते से

 


उतरे पक्षी
हरी भरी शाख पे
नीड़  निर्माण

 

तितली डरी
 पतझड़ी हवा से
 फूल में छिपी 

 

चुराए पल
समय दरख्त से
हवा हो गए

 

यादें कंकड़
मन सागर गिरा
 हिलता अक्स

 

नीड़ बनाती
 चिड़िया फिर जाती
 तिनके लाती

 

मन फागुनी
 रेशमी सपनो में
 बंद हो गया

 

सूर्य से धूप
 उड़ान भरती
 

चिड़िया उडी
 नील गगन तक
 तैरी घटा सी
डॉ सरस्वती माथुर

 

*चिड़ा चिरैया
नीड़ के निर्माण में   
थे  बड़े  लीन 
बच्चों की चीं चीं सुन
 भाव विभोर हुए*


* दूर * गगन
होंसले हैं बुलंद
 रंग बिरंगे
प्रवासी  पाखी उड़े
नया आकाश छूने
 
सूखे पत्ते सा
 झरता दिन रोज
 हवा में उड़
 मौसम बुलाता सा
 चिड़िया हो जाता है 
  डॉ सरस्वती माथुर                
V




........................................24.4.12
1
उड़ते रहे
 स्वप्न पंछी रात में
 ठहरी नींद
2
 चुग्गा समेट
  उड़ा पाखी - पहुंचा
 बच्चों के पास
3
उगी सुबह
 आँखों में लाली भरे
 धरा उतरी
4
 चलते रहें
 अनगढ़ पथ पे
 पगडण्डी से
5
शाम हुई तो
 चहचहाते पंछी
 नीड़ में लौटे
6
 सोने सा सूर्य
 दूर के किनारे पर
 धूप ले डूबा
.........................3.5.12
 श्रमिक दिवस
1
जागो श्रमिक
तुम ही हो निर्माण
शक्ति के बाण
2
श्रमिक नारी
 गुदड़ी में है लाल
 हाथ -हंसिया
3
 श्रमिक दिवस
 उत्सव सा है आता
 हमें रुलाता
4
कहानी वही
 श्रमिक का पेट है
 जलती आग

 

5
श्रमिक श्रम
 फुटपाथ के साये में
बेफिक्र सोया
6
खाली पतीली
 बुझा  ठंडा चूल्हा है
  पेट में आग
 7

 

श्रमिक दिन
कितना है  सार्थक
 पूछो मन से
8
 ईंटें  ढोकर
 इमारतें बनायीं
  तो रोटी खायीं
9
धूप जलन
 श्रमिक का तो बस
 यही जीवन

 

10
श्रम की खान
 मजदूर  महान
 देश की शान
11
पेट का नशा
 भुने काजू -व्हिस्की
 बैरे से पूछो
12
 कोहिनूर है
 पढ़ना शरूर है
 वो  मजबूर
13

 

गली में फिरे
 कदम लगे थके
 स्कूल तके
14

 

गुब्बारे बेच
 पेट को  भरता है
 स्कूल स्वप्न
 15
  फूल सा  हूँ  मैं
 शूलों पर हूँ   सोता
  स्वप्न संजोता
16
रोज जीता हूँ
नया जन्म लेकर
खुद रीता हूँ
17
दुर्बल तन
ऑंखें हैं पथराई
बुझा सा मन
18
एक मुट्ठी में
स्वपन साथ लेके
बोझ ढोता हूँ

 
  डॉ सरस्वती माथुर २५.५.१२
1
दूधिया धार
प्रपात बन फूटीं
मृग सी दौड़ीं
2
जल धाराएँ
पहाड़ों के अंक से
झरनें सी बहीं
3
सूर्य सोने की
स्वर्ण किरण ले
सागर घूमें
4
मरुस्थल में
रेत का समंदर
प्यासे पथिक
5
मन आंचल
हवा से उड़ते हैं
दिवा सपने
डॉ सरस्वती माथुर

दुआ के फूल
ममता की झोली से
रोज माँ देती
7
रेत की नदी
डूबता सूरज में
चमकती सी
8
आँख - मिचौनी
खेलती धूप -छांह
बादल संग
9
घटा - घनेरी
बुझाऊँ तृष्णा मैं तो
तप्त धरा की
10
धरती छोटी
सपना पर बड़ा
करुँगी पूरा
11
मीठा है नीर
कलकल धारा सा
नदी में मिला
12
हिमकणिका
मोम सी पिघलती
गर्म हवा में
13
तपी धरती
पिघला सूरज भी
पत्ते हुए पीले
14
उनींदे नैन
बुन रहे सपने
भरे वितान
15
पेड पानी पे
टपकी ओस बूँद
सूर्य पी गया
15
 पीली हूँ पाती
 पाखी सी उड़ती हूँ 
 पतझड़ में
16
 घनघोर थी
 घटा मेघराज की
 थिरका मोर
17
हरा हो उठा
आँचल था धरा का
वर्षा जो आई
18
सावन झूमा
 रिमझिम  बौछार
वर्षा जो  लायी
19
दरख्त का छाता
सभी को खूब  भाता
तपी पहर में
20
बंज़र- धरा
सुधा- बूँदें पीकर
हरी हुईं

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