मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

*तुम मौसम बुला लो*!"

*तुम मौसम बुला लो*!"
तुम मौसम बुला लो
में बादल ले आऊं
थोड़ी सी भीगी शाम में
फूलों से रंग चुराऊं
तुम देर तक गुँजाओ
सन्नाटे में नाम मेरा
मैं पहाड़ पर धुआं बन
साये सी लहराऊं
वक्त रुकता नहीं
किसी के लिये
यह सोच कर
मैं जीवन का
काफिला बढ़ाऊं
तुम लहरों की तरह
बनो बिगडो
मैं चिराग बन
आंधी को आजमाऊं
तुम मौसम बुला लो
मैं बादल ले आऊं
तुम परात में भरो पानी
मैं चाँद ले आऊं!'
तुम मौसम बुला लो
मैं बादल ले आऊं !
डॉ सरस्वती माथुर

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