श्वेत
आँगन....................सुबह -शाम
मन मेरा
जैसे भीगा सावन
हवाएं ऐसे डोले
पाखी सी बोले
चुपके से उतरे
शेफाली मधुबन
सूर्य उदय
अपनों सा
सूर्य अस्त
नव सुबह
नव हृदय
नव प्यास
मन में आस
नव दर्पण
नव अक्स
जैसे दुल्हन क़ी प्रीत
प्रेम अपर्णा
जैसे भोर
अट्टहास से गीली
नयन क़ी कोर
हवा में शंख सा
पाखी का शोर
जैसे रतजगे का गीत
सफ़ेद रंगों में
हरसिंगार फूलता
झरता झर झर
नव रुई सा झूलता
नवगीत सा सृजित
नव शिशु सा खिलता
धरा से नभ तक
ले नई उड़ान !
मन मेरा
जैसे भीगा सावन
हवाएं ऐसे डोले
पाखी सी बोले
चुपके से उतरे
शेफाली मधुबन
सूर्य उदय
अपनों सा
सूर्य अस्त
सपनो सा
सखा सा आता
मन श्वेत आँगन
सुबह- शाम
मन जैसे सावन !
........................
उठा चाँद साँझ ढले
रंग भले
उठा चाँद
चांदनी संग
जगमग अहसास
दूर तारे
करें अधीर
चतुर्दिक फैली
भीगी समीर
पितलाया आकाश
.........................
सखा सा आता
मन श्वेत आँगन
सुबह- शाम
मन जैसे सावन !
........................
उठा चाँद साँझ ढले
रंग भले
उठा चाँद
चांदनी संग
जगमग अहसास
दूर तारे
करें अधीर
चतुर्दिक फैली
भीगी समीर
पितलाया आकाश
.........................
झरता झर
झर
नव सुबह
नव हृदय
नव प्यास
मन में आस
नव दर्पण
नव अक्स
जैसे दुल्हन क़ी प्रीत
प्रेम अपर्णा
जैसे भोर
अट्टहास से गीली
नयन क़ी कोर
हवा में शंख सा
पाखी का शोर
जैसे रतजगे का गीत
सफ़ेद रंगों में
हरसिंगार फूलता
झरता झर झर
नव रुई सा झूलता
नवगीत सा सृजित
नव शिशु सा खिलता
धरा से नभ तक
ले नई उड़ान !
.................................
डॉ सरस्वती माथुर
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