1
घटा के पंछी
नभ में उड़ते हैं
फैला के पंख
२
जल लहरें
मिट्टी के घरोंदों को
बहा ले गयी
डॉ सरस्वती माथुर
घटा के पंछी
नभ में उड़ते हैं
फैला के पंख
२
जल लहरें
मिट्टी के घरोंदों को
बहा ले गयी
३
मेघ भरें हैं
नभ के दालानों में
धूप छांह से
४
बारिश आई
जंगली गुलाब सी
खुशबू छाई
५
छाई घटा तो
मोर बांध घुंघरू
बागों में आया
६
मन विभोर
मोरनी संग झूमा
बावरा मोर
७
आई वर्षा
बूंदे बन्दनवार
छटा अनूठी
८
वर्षा ऋतू में
पुरवाई सी बही
मन में यादें
९
मेघ पहन
बिज़ली की पायल
नाचे नभ में
१०
पहली घटा
सावन की आई तो
मन भीगा
११
चह्चहाती
सावन की चिड़िया
तरु पे डोली
१२
मैं सावन की
घटा बन पहुंची
बाबुल के चौरे !
डॉ सरस्वती माथुर
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