मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

दो फागुनी आकांक्षाए

दो फागुनी आकांक्षाए

(१)मौसम से वसंत
 चलो बटोर लाएँ
चलो मिल बटोर लाएँ
मौसम से वसंत
फिर मिल कर समय गुज़ारें
पीले फूलों सूर्योदय की परछाई...
हवा की पदचापों में
चिडियों की चहचहाहटों के साथ
फागुनी संगीत में फिर
तितलियों से रंग और शब्द लेकर
हम गति बुनें
चलो मिल कर बटोर लाएँ
मौसम से वसंत
और देखें दुबकी धूप
कैसे खिलते गुलाबों के ऊपर
पसर कर रोशनियों की
तस्वीरें उकेरती है
उन्हीं उकेरी तस्वीरों से
ओस कण चुने
चलो मिल कर

(२) प्रेम का मौसम

फूलों!
इस प्यार के मौसम में
तुम्हारी खुशबू ने
सभी का दिल मोह लिया है
भँवरे की गुंजन से
थरथराती पत्तियों में
पुलकन है
हवा के साथ सरसराती
कोपलें भी खुल गई हैं
कितना मधुपर्की रसपगा
अहसास है कि बाँसुरी के
सुरों की तरह
तरंगित हो रहा है जीवन
और एक नदी की तरह
गतिमान है
नीले समुद्र को कहता-सा कि
मुझे तुम्हारे अन्दर समाना है
मेरा स्वागत करो तुम
क्योंकि वसंत के साथ ही
प्रेम का मौसम आता है।

डॉ सरस्वती माथुर

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