मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

मिले जुले हाइकु


हाइकु


गीले मन को

डाल अलगनी पे

धूप दिखाई


सूखे गुलाब

मन किताब में भी

देते खुशबू


बरखा आई

शोख झरने जैसी

धरा नदी में

4

मन चौबारे

पावस ऋतु द्वारे

सलोने मेघ


ओस की बूंदे

ओक भर धूप पी

जड़ी मोती सी


मन रेत पे

लिखा नाम ले डूबी

याद - लहरें

डॉ सरस्वती माथुर
1   
वर्षा की बूंदे
छतरी पे उछलीं
गोल गेंद सी
हवा रथ पे
धूप चढ़े सयानी
दिन क़ी रानी
ओस पीकर
हवा भी हुई गीली
धरा भी सीली
गुलाब सुर्ख
ओस क़ी बूँदें
बांधता रहा
तीज उत्सव
झूले में रमणियां
गीतों से खेले
नारंगी सूर्य
दरख्त पे  अटका
मानों पतंग
चकोरी प्यारी
चाँद को निहारती
हुई बावरी
 
८ 
 चाँद मोर सा
 आकाश पर नाचा
  चांदनी पंख
मन फूलों पे
तितलियों सी झूमीं
अल्हड यादें
१०
मकड़ी बुने
अतीत भरे जले
यादें थीं फंसी
डॉ सरस्वती माथुर 1
हवा पंख पे
मौनसूनी बादल
उड़ते हुए

लेटी हुई थी
छायादार तरु पे
ठंडी सी धूप

आग सा सूर्य
सागर से मिला तो
बुझ जायेगा

यादें रसीली
अतीत सागर में
सूर्य सी डूबीं

मीठे पानी का
कलकल झरना
बहता मन

नीली नदी में
चाँद खिल आया है
गीला गीला सा

भरी भीड़ में
खोया खोया सा मन
रास्ते अजाने

सूखने लगी
शाम की हथेली पे
सुबह की मेहँदी

कोयल बोली
बसंत की पहचान
सुरीली तान
१०
फूलों के रंग
तितलियों के संग
बसंत बहार
११
जमा कोहरा
सुबह सूर्य उगा
१२ मौसम आया
अजनबी दोस्त सा
अपना लगा
१३
हवा पंखों पे
चिड़िया सा मौसम
उड़ा- उड़ा सा
१४
हवा सागर
बारिश की सीपी से
बूंदों के मोती
१५
बरिश सीपी
हवा में बिखेरती
बूंदों के मोती
१६
धूप पतंग
 सांझ के कंधे पर
 अटक गयी
१७
रात की स्याही
 भोर के कागज़ पे
 धूप कलम
१८
 मन पतंग
 प्रेम की डोर बांध
 कटता गया


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