मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

नवगीत :" भँवरे डोले !"

" भँवरे डोले !"
मिले फूल
मधुरिम मौसम में
तो नैनो में झिलमिल
सपन पले
...
शाखों पर बांध
गीतों की पायल
थिरकी हवाएँ
यादों के दीप जले


उडी तितलियाँ
दूर दूर तक
खिली कलियाँ तो
भँवरे मिले


हरी शाखों पर पाखी
भिनसारे जागे
नीड़ बनाते
तरूओं के तले
डॉ सरस्वती माथुर

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