आज भी कुछ खास नहीं था
रोज की तरह था दिन
दुपहर में ख़ामोशी थी
हवा में खुश्की
पतों पर धूप बिखरी थी
एक हवाई जहाज़ अभी अभी
ऊपर से निकला
और बादलों में गुम हो गया
एक गिलहरी उसकी आवाज़ से रुकी
इधर देखा- उधर देखा
फिर डरी सी
कोटर में जा छिपी
शाम भी आज
बारिश में भीगने के बाद
नम थी
मेरे आसपास
हवाएं अकेली थी
मैं कहाँ थी अकेली
मेरे पास तो वक्त था
खिले फूल सा
जो धीरे धीरे मुरझा रहा था
दूर कहीं कोई गा रहा था
एक दिन वो आएगा
जब परिंदा घरोंदा छोड़ कर
उड़ जायेगा
सच ह़ी तो है
वक्त भी तो
एक परिन्दा है
हम देखते रह जायेंगे
वो उड़ जायेगा !
डॉ सरस्वती माथुर
.............................. .
रोज की तरह था दिन
दुपहर में ख़ामोशी थी
हवा में खुश्की
पतों पर धूप बिखरी थी
एक हवाई जहाज़ अभी अभी
ऊपर से निकला
और बादलों में गुम हो गया
एक गिलहरी उसकी आवाज़ से रुकी
इधर देखा- उधर देखा
फिर डरी सी
कोटर में जा छिपी
शाम भी आज
बारिश में भीगने के बाद
नम थी
मेरे आसपास
हवाएं अकेली थी
मैं कहाँ थी अकेली
मेरे पास तो वक्त था
खिले फूल सा
जो धीरे धीरे मुरझा रहा था
दूर कहीं कोई गा रहा था
एक दिन वो आएगा
जब परिंदा घरोंदा छोड़ कर
उड़ जायेगा
सच ह़ी तो है
वक्त भी तो
एक परिन्दा है
हम देखते रह जायेंगे
वो उड़ जायेगा !
डॉ सरस्वती माथुर
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