मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

"फिनिक्स पक्षी से !"

"फिनिक्स पक्षी से !"जब बहुत ख़ामोशी होती है
तब भी कभी कभी
शब्द बोलते हैं, शायद
वह आपके मन की
गहराई को तौलते हैं
 कुछ मधुर कुछ
कडवे एहसास भी
पाखियों से

 स्मृति के
आकाश में डोलते हैं
बिखरे कुछ सपने
नींद से चौंक कर भागते
दंतकथाओं के
फिनिक्स पक्षी से
फिर अपनी राख से
जीवित हो
संभावनाओं के नये
द्वार खोलते हैं और
मुक्त हो उड़ जाते हैं!
डॉ सरस्वती माथुर

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