सोमवार, 1 दिसंबर 2014

चोका

1
."बूंदों से खेले...!"
उड के आए
कहाँ से यह मेघ
बूंदों से खेले...
हरियाला करके
देह धरा को
हवा के झोंकों संग
परिंदा बन
गगन में डोलते
मौसम बन
ठंडक को घोलते
बूंदों का रस
बरसाते -उडते
मन हरा हो
सावन सा डोलता
कोयल सा बोलता l
2
"पतझड़ी लहरें !"
प्रकृति का है
उत्सव पतझर
जहाँ पत्तों के
हिरण हवा संग
 भरें चौकड़ी
पतझड़ी लहरें
धूल के टोले

भरमाते डोलते
तोड़ सन्नाटे
भंवर से पात भी
नई दिशा में
हैं पाखी से उड़ते
लौट धरा पे
माटी में बना नीड
चरमराते
चकरघिन्नी होके
कुम्हला जाते
इस रिक्तता में भी
देते सन्देश
नई कोंपलें धार
डाल डाल पे
हरी चूनर ओढ़
फिर से लहकूंगा
3
"पतझड़ के पत्ते!"
पीले सूखे से
पतझड़ के पत्ते
दूर उड़ के
हवा को हैं गुनते
सन्नाटे बुन
सरसर करते
मौसम शुष्क
बसंत की विदाई
तरु है रोता
निपाती हो ठूंठ सा
संत दीखता
इंतज़ार करता
कोंपल उगें
पातों से फिर भर
अंग अंग को
हरा सा कर जाएँ
बहारें लौट आयें
4
"दीप- बाती सी बेटी !"
मृगछौने सी
चंचल- सलोनी सी
फुदकती है
मन चौरे में बेटी
डोले पाखी सी
फूलों पे मंडराती
तितली जैसी
मधुबन लगती
दीप बाती सी
मात पिता के मन
दीप्त करती
दादा- दादी पे स्नेह
 रस -बरसा
हरियाला करती
बेटी को मिले
देश में मान- तब
राष्ट्र नभ पे
 आस्था की धूप भर
 सूर्य सी चमकती l
5
"माखनचोर लल्ला !"


बांसुरी बजा


नंदकिशोर खड़े


राधिका संग


वन उपवन हैं


विमुग्ध बड़े


नटखट हैं यह


कन्हैया लाल


मोरपंख पहने


जसुमति   का


मन खिवैया  बाल


निरखे  मैया


दही हंडिया फोड़ी-


 है गोपाल ने


कहें गोपियाँ - कहाँ


माखनचोर


आँचल छिपा  लल्ला


 बोलती मैया


गया न पनघट


मेरा गोपाल


सोया है देखो मेरा


भोला कन्हैया लाल !
6
"सावन गीत!"
पुष्प झड़ता
फिर से खिल जाता
शुष्क जंगल
हरा भरा हो जाता
कोयल कूक
सावन को बुलाती
वर्षा बूंदे भी
ताल बजा के गातीं
मन के भाव
अल्पनायें रचते
घर आँगन
मोहक से लगते
झूले बैठ के
नवयौवना गातीं
भेजी क्यों नहीं
प्रिय की प्रेम पाती
ठंडी फुहारें
परदेश से लाती
सन्देश पी का
तब पाखी सा मन
चहचहाता
सावन के रसीले
मधुर गीत गाता !
7
"गुरुपूर्णिमा !"

 कपूरी हवा
 मौसम की बेल से
 लिपटी रही
 स्वागत करने को
 लौट के आई 
 कुतरती सरदी 
 सूर्य पूनी से  
 धूप रुई धुनती
 श्याम चिड़िया
तितलियों संग
फूलों पे डोली
कार्तिक से लेती सी
दीप  की गर्मी
तुलसी मंज़री से
थाल सजाया
संग में गुरु पर्व
आस्था लेकर
 पूर्णिमा पर आया
 गुरु सबद
 गुरुवाणी फूलों से
 चहुँ ओर महका l
8
 दीप्त रख के
अहिंसा मशाल को
झंडा तिरंगा
आज भी बांचे गाथा
देकर सन्देश
देश प्रेम शान्ति का
हमारी शान
 न्यारा झंडा हमारा
 केसर रंग
शान्ति दूत- सफ़ेद
हरे के संग लगे
है मधुमय प्यारा !
9
नन्ही  चिड़िया
 धूप -स्पर्श  ढूँढती
 फुदकती -सी
 अंग -प्रत्यंग सँजो
 पंख समेट
 गहरी सर्द रात
 काँपती रही;
 प्रफुल्लित- सी  हुई
 सूर्य ने फेंकी / छुआ
 जब स्नेह - आँच से
 पंख झटक
 किरणों से खेलती
 नयी दिशा में 
 उड़ गयी फुर्र से
 चहचहाते  हुए !


10  ......................
 पतझर में
 उदास पुरवाई
 पेड़  निपाती
 उदास अकेला सा
 सूखे पत्ते भी
 सरसराते उड़े
 बिना परींदे
 ठूंठ सा पेड़ खड़ा
 धूप छानता
 किरणों से नहाता
  भीगी शाम में
 चांदनी ओढ़ कर
 चाँद देखता
 सन्नाटे से खेलता
 विश्वास लिए
 हरियाली के संग
 पत्ते फिर फूटेंगे l
11
हाइकु नभ
सत्य तारा हो तुम
पितामह थे
पाँच सात पाँच का
भाव भर के
जापानी काव्य लेके
भारत आये
आज जयंती पर
नमन तुम्हें
हाइकु काव्य संग
नया रस लाये थे !
12
"सावन गीत !"
सावन पाखी 
मौसम के नभ में
उड़ान भरे
बूंदों के पुष्प झरे
हवा झूलना
तरु अलगनी पे
टांक बदरी
इन्द्रधनुष बुने
सुर्ख से  रंग
पुष्पों से बटोर के
सावन गीत गुने l
13
"चूनर धानी!"
मीठी आहट
आई है सावन की
मन भीगा सा
बूंदों की डोर थाम
मेघ पाखी से
नभ में हैं उड़ते
बूँदें पतंग
लहरा थिरकती
कट कट के
धरा पर गिरती
हरे पतों पे
मोती सी जा सजती
चूनर धानी
पुरवाई के संग
सावन में उड़ती
14
"धरती मुस्कराए!"
 वर्षा  की  बूँदें
चंचल चपला सी
नभ में नाचे
मधुर यादें
दामिनी सी चमक
रार मचाये
कोयल डाली पर
मल्हार गाये
हरी चूड़ियाँ डाल
प्रकृति झूमे
सावन  मौसम में
मेघ पहने 
सावन  की पायल
मोर नचाये 
श्यामल मौसम मेंl
15
"होली आई तो !"

मन महका

रंगों की छटा छाई

होली आई तो

धरा भी फगुनाई

फागुन चुन्नी

पुरवा संग उडी

सभी को भाई

मृदंग चंग बजे

फाग गुंजाई

रंगों के भंवरों की

गुंजार भाई

ढोल मंजीरे बजे

फागुन ऋतु आई l

16

"मन महका!"

रंग बयार

धरा पर बरसी

मन खुमारी

अंगड़ाई ले सरसी 

छोड़ नींद को

उडी तितली बन

डाल डाल पे

विविधवर्णी फूल

खिले उन्मत

बिखरे फाग रंग

जगी सुगंध

पी के रंग गुलाल

रंगीन तन

रिश्तों की मिठास में

घुले थे रंग

प्यार की ठिठोली से

महके होली रंग
17
 "लोहड़ी आई !"
मकर सक्रांति भी
संग में लायी
गजक रेवड़ी से
सजे बाज़ार
नील गगन पर
छाई   पतगें
टोली मित्रों की आई
रात मिलेंगे
साथी व् रिश्तेदार
बच्चों ने मांगी
जिद कर लोहड़ी
ज्योत जल के
हुई प्रज्ज्वलित
चहका जन
हर्षित हुआ मन
लोहड़ी अग्नि
भावनाऍ जोड़ के
नेह से भर गयी !
18
"रसपगी दीवाली!"
रंग बिरंगी
दीपों की फुलवारी
छटा निराली
है रंग सतरंगी
रसपगी सी
मधुरिम दीवाली
मावस पर
अनारी लड़ियों में
लगती न्यारी
फूल झड़ी झरती
चांदी फूल सी
झिलमिल करती
तारों की जाली
नभ पर टंगी हैं
चाँद कंदीलें
अब आएगी लक्ष्मी
ले खुशहाली
चलो  दीप जलाओ  
दीप पर्व मनाओ l
"रसपगी दीवाली!"
रंग बिरंगी
दीपों की फुलवारी
छटा निराली
है रंग सतरंगी
रसपगी सी
मधुरिम दीवाली
खुशियाँ बरसाती
मावस पर
अनारी लड़ियों में
लगती न्यारी
फूल झड़ी झरती
चांदी फूल सी
झिलमिल करती
तारों की जाली
नभ पर टंगी हैं
चाँद कंदीलें
अब आएगी लक्ष्मी
ले खुशहाली
पूजा थाल भरके
अब दीप जलाओ
हिलमिल दीवाली
पर्व मनाओ
19
क्रिसमस आया 
बच्चों के लिए
 कुछ सपने लाया
मुखरित आशाएँ
 उनमें जागी
घोर निराशायेँ 
मन से भागीं 
मासूम आँखों ने 
खोली जब
 नैन की  खिड़कियाँ तो
 ख्वाबों के रंगीन
 खेल खिलौने देखे 
उम्मीद के 
उड़नखटोले देखे 
होंसले उड़ने के
सुनहरे देखे
 शरद ऋतु पर
 तितली से उडते 
सांता क्लाज  के 
  परिंदे देखे
 इंद्रधनुषी रंगों से
शुभप्रभात की रात को 
 झिंगल बैल की
घंटी बजाता जब
सांता लेकर  आया
मेरी  क्रिसमस  का 
सुंदर उपहार  
इस घड़ी में
बच्चे विभोर हो बोले
हमें बहुत है
 इस पर्व से प्यार
 हमें है स्वीकार
 प्रीत प्रेम की
20
 " रेशम की डोर !"
यह मनुहार
राखी पर्व पे
भाई करें मनुहार
 आ री बहना
खींचें हैं बहिन को
भाई का प्यार
मखमली से धागे
बहिन बांधे
भाई की कलाई पे
तो बंधें मन
आशीर्वाद दे भाई
भीगी आँखों स
खुश रह बहना
बहिन कहे
आ तिलक लगा दूं
लेके बलैया भैया !
21
" रसधार से भर !"
वर्षा ऋतु में
पात खिडकियों से
झांकती बूंदे
शाखोंओं पे झूमती
पुरवा संग
संगीत है बनाती
पाखी स्वरों को
साथ मिला करके
रसीला गातीं
मेघ ढोल बजाते
दामिनी छेड
ओर्केस्ट्रा के तारों को
धरा पे आती
बुलबुल कोयलें
हर ताल पे
खूब साथ निभातीं
भंवरे गाते
फूल तितली संग
नृत्य दिखाते
रसधार से भर
प्रकृति महकाते  ........
डॉ सरस्वती माथुर
2
हाइकु ....".
सक्रांत और लोहड़ी पर्व....मिठास  भर लायी .... !"
1
सक्रांत आई


 मीठी सी पुरवा में


 पतंगें छाई l


2


पतंग पाखी


आकाश में उड़ते


रिश्ते जुडतेl


3


 तिल- गुड की


मिठास  भर लायी


सक्रांत आयीl


4


सक्रांत पर्व
प्रेम का रस घोले
पतंगे डोले l


5


सूर्य संस्कृति
सदभाव साथ में
लेकर आई l
डॉ सरस्वती माथुर
हाइकु गीत
नया साल भी
चिड़िया सा उतरा
नव धरा पे
दिसम्बर जल कर
दीप लौ सा
कंपकंपाता बुझा
नवदीप सा
नववर्ष आ खिला
हर्ष प्यार ले
अभिनव श्रृंगार
मधुर गीत
गुनगुनाता गाता
नववर्ष है आता!
डॉ सरस्वती माथुर







 






 











 

 


 








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