मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

दो कवितायें....1॰ " क्या यह मेरा देश है !" 2" दर्द के आँसू !"

क्या यह मेरा देश है?


अब तो चारों ओर
 खंजर दिखाई देते हैं
 न जाने कैसे कैसे
मंज़र दिखाई देते हैं
  ईसा ,अल्लाह ,वाहे गुरु
और इश्वर एक हैं
 फिर क्यूँ उठ गयी है
 गैरत जहाँ से
खौफ की धुंध में
 न जाने क्यों
आदमी के दिल भी अब
 बंज़र दिखाई देते हैं
 बिखरती जा रही है
हमारी संवेदनाएं
जिन्दगी के पन्नों से
 सुनाई देती हैं
 ह्रदय बेदी चीत्कारें
 हर तरफ लूटते हुए
 रहबर दिखाई देते हैं
 चीखते- चिल्लाते
 दहशत भरे आलम में
 ईमान के भी
 उठते हुए -लंगर
 दिखाई देते हैं
 न जाने कैसे कैसे
 मंज़र दिखाई देते है
बस खून से भरे
 खंजर ही खंज़र
दिखाई देते हैं !
2
दर्द के आँसूंघर  चाहे दूसरे

 शहर में जले या
 हमारे शहर में
 लोग चाहे दूसरे
 शहरों के मरें
 या हमारे शहर के
 बहता सुर्ख लहू
 किसी भी

देश का हो
 दर्द देता है
 दर्द के

 दांत नहीं होते

 पर काट देते हैं
 दिल की झिल्लिया

 और आँसू आँखों में
 भर जाते हैं
 तारीखें बदल जाती हैं
 बरसों गुजर जाते हैं
लेकिन दर्द के आँसूं
 टूटते रहते हैं
 वैसे ही जैसे
 बारिश थम जाने के 

बाद भी देर तलक
 बूंदे- टपटप
गिरती रहती हैं
डॉ सरस्वती माथुर

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