मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

तीन गीत... 1 उतारूंगी एक मौसम 2 लय 3 बसन्त के गीत गाओ 1

तीन गीत

1

उतारूंगी एक मौसम

 

उतारूंगी एक मौसम
याद के समुन्द्र में
गोता लगाने को फिर

 उतारूंगी एक मौसम
मन की आँखों में
फिर नवगीत लिखूंगी


तब गाना तुम उन
गीतों को सुर में
शब्द तुम्हें 

 मुखरित कर लेंगे
फिर उन स्पन्दनों में
तलाश कर मुझे
एक रास्ता तुम पा लोगे
तब मैं नयी राह चलूंगी


 

एक नये गीत के साथ
नयी नयी प्रीत के साथ
एक राह मिलते ही
मौसम बदल जायेंगे
तब  मिलकर
साजों के संग फिर

 एक नया गीत चुनूंगी !

2 

....................

लय
 मैं समुन्द्र की तरह
उठती हूं

विस्तरित होती हूं
लहरों की तरह-फेन उडेल
उफनती-थमती हूं


ज्वारभाटों से

नहीं घबराती
सपनों की, आशाओं की
चट्टानों से

टकराती भी हूं
तो उसमें भी लय

  ढूंढ लेती हूं

 

 उस लय में

 कभी कभी
ध्वनि नहीं होती
शब्द नहीं होते
शीर्षक नहीं होता लेकिन
अलग-अलग रंग लिये
मधुर गीतों से एक

नया गीत बुन लेती हूँ


उन गीतों को

 एकबद्ध कर 
सपनों को एक

 नया अर्थ देकर 

सतरंगी आकाश उड़ने को  

नए पंख उगा कर

फिर से  चुन लेती हूँ

3

......................

बसन्त के गीत गाओ
  लिये सुगन्ध

 तितलियां डोली
फूलों - भंवरों से बोली

आओ बसंत के

 गीत गाओ



मैं लायी हूं

 मौसम को
तुम धरा पर

 मुस्कराओ


मधुर जीवन की

 क्यारी से
घृणा के

 कांटे चुनके 

मन से  हटाओ 


रंग-रंगीले

 इन्द्रधनुष से
सपनों के नभ पर

 मधुमास लाओ 

 

   मैं लायी हूं

 मौसम को

 तुम धरा पर

 इस बसंत में -रसपगे 

 गीत गुनगुनाओ  !
डॉ सरस्वती माथुर  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें