गुरुवार, 20 नवंबर 2014

"आशाओं के परिंदे !"

अंधेरे तो उदास होते हैं
 फिर भी मैं
 टटोलती हूँ उनमे
 सहमी हुई रश्मियाँ
 और खींच ही
 लाती हूँ उन्हे
 आसमान की धरा पर
और चिड़िया सी
 बुनती हूँ तिनके
 बनाने को सपनों का
 सतरंगी घरौंदा और
 टाँक देती हूँ
 विश्वास के पेड़ पर जहाँ
 मन सूरज की चमचमाती
 किरणे  पड़ते ही
  नवजात शिशु से
 आशाओं के परिंदे
चहचहाने  लगते हैं
 मन तरु के आस पास !
डॉ सरस्वती माथुर

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