1.
अखंड दीप
घर द्वारे जलता
तम को पीता ।
2
तमस हरे
दीपक की शिखाएँ
आशा जगाएँ
3
उजास भरे
कार्तिक का दीपक
आस्था जगाए ।
4
आलोकित हो जले
उजाला करे ।
5
भाई दूज पे
बहन ले बलैया
निरखे भैया l
6
ढेर खुशियाँ
भैया दूज है लाया
भाई जो आया l
7
भाई मिलता
बहन से दूज पे
मन खिलता l
8
बहिन के उर
छिपा भाई का प्यार
लोचन गीले l
9
भाई दूज पे
खींचे है बहन को
भाई का प्यार l
10
भाई के भाल
तिलक लगाकर
बहिना रोई l
11
दूज का टीका
बहनों की उम्मीद
प्रेम का मोल l
12
गिरते पत्ते
तरु अकेला ।
13
उदास मन
अकेलापन ओढ़े
डूबता गया ।
14
सूने दालान
घेरता अकेलापन
डूबता मन ।
15
शाम का तारा
अकेलापन हमें
लगता प्यारा ।
16
आज का दौर
मेरा अकेलापन
मिट्टी- सा मन ।
17
प्रेम के तार
चाँद से बरसाते
रस फुहार l
18
मन पिया का l
चाँदनी के तारों से
चाँद ने बाँधा l
19
चाँद छन के
छलनी के छेदों से
प्रेम जगाता l
20
ज्ञान- ज्योति से
संस्कार जगाता है
श्रद्धेय गुरु l
21
गुरु -नेह को
पीकर के ही मिली
दिव्य रोशनी l
22
सींच प्रीत से
बोते हैं गुरुवर
बीज़ ज्ञान का
23
पिया मीरा ने
चरणामृत मान
विष का प्याला !
24
बोले मीरा जी
जीवन न सुहाए
बिन कान्हा के l
25
ओ राणा जी
श्याम रंग राची मैं
निर्मल प्रीत l
26
प्रेम दीवानी
मोहना रंग राची
प्रीत है साँचीl
27
ढूँढ़े वन में
साँवरे गोपाल को
नैन सावन l
28
राधा है भीगी
प्रेम के रसरंग
कृष्ण के संग l
29
निहारे राधा
गोपियों संग कान्हा
रार मचाए l
30
बदले इतिहास
देश ले साँस ।
31
राष्ट्रीय गान
मातृभूमि की शान
हमारा मान ।
32
तीन रंग हैं
प्रतीक आजादी के
शांति है माँगे ।
33
बहना बाँधे
भाई की कलाई पे
रिश्तों की डोर
34
रेशमी धागा
आत्मीयता सहेज
रिश्तों में बांधा
35
भाई का मन
झलकता आँखों से
रिश्ता पावन
36
प्रचंड धूप
घनी छाँव -सा लगे
भाई का रूप
37
रेशमी डोरे
बहना लेके आयी
बाबुल चौरे
38
धागे का साथ
कभी न छूटे भैया
बहना का हाथ
39
नेह अपार
घर आँगन आया
राखी त्योहार
40
राखी की डोर
बहिन ने बाँधी तो
भाई विभोर l
41
दुआ देता है
भाई का स्नेही मन
रक्षाबंधन l
42
भैया के मन
स्नेह स्मृतियाँ लाईं
राखी जो आई !
43
पीताभ मन
रसभर के भीगा
चम्पई हुआ ।
44
बौछार करें
तपती धरा पर
नभ के मेघ ।
45
नभ में सूर्य
मेघ के संग खेले
आँख मिचौनी ।
46
साँवली लगी
घटाएँ ओढ़कर
रात चाँदनी ।
47
हरित धरा
मेघ की चुनरिया
ओढ़ के झूमी ।
48
नयी भोर में
मन के सपने भी
फूल हो गए ।
49
जल का प्याला
अमृत जीवन का
रस निराला !
50
जल चलनी
सागर लहरों से
रेत छानती ।
51
प्यासी है रेत
भीगी लहरों संग
जल सोखती।
52
मन में छल
मटमैली सोच का
गंदला जल ।
53
पिता का सत्य
है जीवन का कथ्य
नमन पिता ।
54
सदा प्रेम है
पिता ने बरसाया
वो तरु छाया ।
55
गहरी छाया
पिता है सरमाया
वृक्ष से तने ।
56
नभ में पिता
दिव्य तारों से दिख
चमकते -से ।
57
हाथ थाम के
पिता कराये पार
कठिन राहें ।
58
पिता दिए- से
आत्मविश्वास भरी
बाती जलाते ।
59
धूप छाँह से
पिता ने सहेजे थे
जीवन रंग ।
60
बेटे -बेटी का
पिता से होता नाता
तरु शाख -सा ।
61
पिता का रूप
हमारे जीवन में
ईश स्वरूप ।
62
पिता का मन
बच्चों के जीवन में
गुलाब गंध ।
63
पिता समता
तोल सकती नहीं
कोई तराजू ।
64
दुआ के फूल
रूह चिड़िया को भी
हैं लौटा लाते ।
65
मन है बांटें
भावों के गुलदस्ते
हवा महके ।
66
खोल के देखो
दुआ के दरवाजे -
चैन मिलेगा ।
67
विश्वास बुनो
दुआओं का सूरज
उदित करो
68
जाल फेंकता
स्वार्थ का बहेलिया
आओ छुड़ाएँ ।
69
कड़ी धूप में
माँ की ममता लगे
खुला-सा छाता l
70
घर – देहरी
बच्चों के लिए होती
माँ तो प्रहरी l
71
सपने -सी माँ
याद करते हैं तो
आ जाती है माँ l
72
प्रेम -डोरी माँ
बच्चों की है दृष्टि माँ
ईश सृष्टि माँ l
73
बच्चों की माली
करती है दिल से
माँ रखवाली l
74
जागो श्रमिक
तुम ही हो निर्माण
शक्ति के बाण ।
75
खाली पतीली
बुझा ठंडा चूल्हा है
पेट में आग ।
76
ईंटें ढोकर
इमारतें बनाईं
तो रोटी खाईl
77
धूप तपन
श्रमिक का तो बस
यही जीवन ।
78
फूल सा हूँ मैं
शूलों पर ही सोता
स्वप्न संजोता ।
79
कच्ची थी धूप
आँगन बुहार के
तरु पे चढ़ी l
80
खोल करके
सूरज की चादर
धूप ने ओढ़ीl
81
नव प्रभात
धूप भँवरों पर
हुआ मोहित l
82
धूप के रंग
फुलकारी काढ़ते
धरा -चुन्नी पे l
83
प्रेत सी डोले
धरा – आँगन पर
बौराई धूप l
84
सूखी पतियाँ
याद दिला गई हैं
अंतिम विदा l
85
आखिरी पत्ता
हवा में लहराया
मौन विदाई l
86
आहट देता
आया है पतझड़
खाली घरोंदा l
87
कच्ची कैरी से
पत्ते हैं टपकते
पतझर में ।
88
तांडव करें
पत्तों के भँवर भी
पतझड़ में l
89
तैरते पत्ते
पतझरी नदी में
जलपाखी –से ।
90
उँगली थामे
हवाओं में टहलें
सूखे ये पात ।
91
पतझड़ में
पेड़ पौधों ने रखा
दो पल मौन ।
92
सूखे पत्ते भी
तपती हवा संग
छाँह ढूँढ़ते l
93
सपने टूटे
समय बलवान
पड़ाव छूटे ।
94
आदि न अंत
समय- गतिमान
चले अनंत ।
95
नदी- सी नारी
प्रवाह के साथ है
आगे बढ़ती l
96
खिलने देना
नारी सुमन को भी
महकेगी वो l
97
नर व नारी
एक डाल से जुड़े
महके फूल l
98
धरा- गगन
जहाँ भी देखो नारी
लगती भारी l
99
नारी है दीप
हवा झकोरों में भी
देती उजाला l
100
रुके न नारी
जल- थल- नभ में
सहज चले l
101
उड़ने भी दो
नारी को गगन में
पंख पसारे l
102
सेनानी वीर
बदले इतिहास
देश ले साँस l
103
वीर जवान
कोटि- कोटि प्रणाम
ये देश महान् l
104
बहे उजास
नववर्ष भास्कर
लगेगा खास l
105
धूप दोने में
मिठास भर- लाया
है नववर्ष l
106
सर्द हवाएँ
हिम -पहाड़ों पर
अलाव ढूँढ़े l
107
मरु ने ओढ़ी
धौलाधार चाँदनी
रात निखरी l
108
सर्द हवाएँ
हिम -पहाड़ों पर
अलाव ढूँढ़े l
107
मरु ने ओढ़ी
धौलाधार चाँदनी
रात निखरी l
108
बर्फ के फाहे
पहाड़ों की घाटी में
पाखी -से उड़े l
109.
हवा के सुर
मौन पहाड़ों पर
गीत बुनते l
पहाड़ों की घाटी में
पाखी -से उड़े l
109.
हवा के सुर
मौन पहाड़ों पर
गीत बुनते l
110
भीगी वर्तिका
दीप का तेल सोख
तम को पीती l
111
माटी के दीप
बाँधकर तम को
रोशनी देते l
112
समाहित हो
वर्तिका दीपक में
उजास देती
113
नेह दीप से
हटाना होगा अब
मन का तम l
114
अँधेरी रात
झिलमिल लगती
दीप ज्योत से l
115
देहरी द्धार
चमकीले तारों सी
दीप- रंगोली
116
लक्ष्मी आए तो
आँगन का दीपक
पूर्णिमा हो जाए l
117
रसपगा -सा
दीपावली पर्व है
तम भगाए !
118
कार्तिक दीप
उजास लुटा कर
आस्था जगाए l
119
युग की वाणी
गांधी के हथियार
सत्य अहिंसा l
120
हो सूत्रधार
आलौकिक उदार
शांति के दूत l
121
युग पुरुष
अहिंसा दीप जला
देश जगाया l
122
युग की वाणी
गांधी के हथियार
सत्य अहिंसा l
120
हो सूत्रधार
आलौकिक उदार
शांति के दूत l
121
युग पुरुष
अहिंसा दीप जला
देश जगाया l
122
चहके बेटी
घर माँ का वासंती
बेटी कोयल ।
123
अमराई सी
शीतल सुरभित
होती बेटियाँ ।
124
झरने जैसी
कलकल करतीं
गीत बेटियाँ ।
125
उन्मुक्त डोलें
प्रकृति की गोद में
पाखी बेटियाँ ।
घर माँ का वासंती
बेटी कोयल ।
123
अमराई सी
शीतल सुरभित
होती बेटियाँ ।
124
झरने जैसी
कलकल करतीं
गीत बेटियाँ ।
125
उन्मुक्त डोलें
प्रकृति की गोद में
पाखी बेटियाँ ।
126
कुंकम रोली
विश्व में चमकती
हिन्दी की बोली ।
127
परचम है
हिन्दी का लहराता
मान बढ़ाता ।
128
सात सुरों -सी
गौरवमयी भाषा
जन की आशा ।
129
अमृत- रस
कानों में है घोलती
मधुर भाषा ।
130
हिन्दी भाषा है
अमृत की गागर
ज्ञान- सागर ।
131
नभ में बिंदी
चमके चाँद- सी
हिन्दी की बोली ।
132
पूज्य गणेश
करते हैं कल्याण
देव महान l
133
गुरु आईना
शिष्य झाँके उसमे
अक्स देखते।
134
गुरु का स्नेह
होता है अनमोल
ज्ञान बाँटता l
135
बीज ज्ञान का
बोते हैं गुरुवर
सींच प्रीत से l
136
गुरु की डोर
विद्यार्थी पतंग- सा
उड़ना सीखे l
137
ज्ञान- रस को
पीकरके मिलता
दिव्य प्रकाश l
138
गुरु की वाणी
अनुभवों की होती
खुली किताब l
कुंकम रोली
विश्व में चमकती
हिन्दी की बोली ।
127
परचम है
हिन्दी का लहराता
मान बढ़ाता ।
128
सात सुरों -सी
गौरवमयी भाषा
जन की आशा ।
129
अमृत- रस
कानों में है घोलती
मधुर भाषा ।
130
हिन्दी भाषा है
अमृत की गागर
ज्ञान- सागर ।
131
नभ में बिंदी
चमके चाँद- सी
हिन्दी की बोली ।
132
पूज्य गणेश
करते हैं कल्याण
देव महान l
133
गुरु आईना
शिष्य झाँके उसमे
अक्स देखते।
134
गुरु का स्नेह
होता है अनमोल
ज्ञान बाँटता l
135
बीज ज्ञान का
बोते हैं गुरुवर
सींच प्रीत से l
136
गुरु की डोर
विद्यार्थी पतंग- सा
उड़ना सीखे l
137
ज्ञान- रस को
पीकरके मिलता
दिव्य प्रकाश l
138
गुरु की वाणी
अनुभवों की होती
खुली किताब l
139
जमुना तीर मुरली- कान्हा छेड़ें
राधा अधीर ।
140
कदम्ब- डाल
राधा संग झूलते
मदन गोपाल !
जमुना तीर मुरली- कान्हा छेड़ें
राधा अधीर ।
140
कदम्ब- डाल
राधा संग झूलते
मदन गोपाल !
141
महके मन
प्यार की राखी पर
स्नेह बरसे l
143
भाई- बहिन
मधुरिम -सा रिश्ता
राखी ने जोड़ा l
144
मोती रेशम
बहिन की राखी में
बँधा सा मन l
145
खिला- खिला -सा
बहिन का चेहरा
आई जो राखी l
146
राखी है तार
रसपगा त्योहार
भाव पावन l
147
बहिन- उर
भाई का प्यार छिपा
लोचन गीले l
148
रिश्ता पावन
राखी मनभावन
स्नेह बंधन ।
149
राष्ट्रीय पर्व
मशाल -सा है दीप्त
तिरंगा प्यारा।
150
देश की भक्ति
मन को देती शक्ति
त्याग माँगती ।
महके मन
प्यार की राखी पर
स्नेह बरसे l
143
भाई- बहिन
मधुरिम -सा रिश्ता
राखी ने जोड़ा l
144
मोती रेशम
बहिन की राखी में
बँधा सा मन l
145
खिला- खिला -सा
बहिन का चेहरा
आई जो राखी l
146
राखी है तार
रसपगा त्योहार
भाव पावन l
147
बहिन- उर
भाई का प्यार छिपा
लोचन गीले l
148
रिश्ता पावन
राखी मनभावन
स्नेह बंधन ।
149
राष्ट्रीय पर्व
मशाल -सा है दीप्त
तिरंगा प्यारा।
150
देश की भक्ति
मन को देती शक्ति
त्याग माँगती ।
151
पीली चूड़ियाँ हाथ में पहन के
सजी थी चंपा ।
152
चंपा की कलीप्राची की लालिमा में
तरु से झरी।
153
हवा थी आई
सुरभि ले चम्पा की
पाखी -सी उडी ।
154
तारों जड़ी थी
पीतवर्णी साडी भी
चंपा ने ओढ़ी ।
15५
पीली चूड़ियाँ हाथ में पहन के
सजी थी चंपा ।
152
चंपा की कलीप्राची की लालिमा में
तरु से झरी।
153
हवा थी आई
सुरभि ले चम्पा की
पाखी -सी उडी ।
154
तारों जड़ी थी
पीतवर्णी साडी भी
चंपा ने ओढ़ी ।
15५
प्रेम -दीपक
जला जब मन में
खिला यौवन l
जला जब मन में
खिला यौवन l
156
बूँदें खनकी
इन्द्रधनुष छाए
नभ – आँगन
157
बूँदें बनके
वर्षा के तीखे बाण
धरा भेदते
158
बादल हँसे
रोई बूँदे नभ में
धरा भी भीगी
159
रसभीने से
कजरारे घन थे
धरा पे आए
160
हवा महकी
बादलों के पार से
बूँदें छानती
बूँदें खनकी
इन्द्रधनुष छाए
नभ – आँगन
157
बूँदें बनके
वर्षा के तीखे बाण
धरा भेदते
158
बादल हँसे
रोई बूँदे नभ में
धरा भी भीगी
159
रसभीने से
कजरारे घन थे
धरा पे आए
160
हवा महकी
बादलों के पार से
बूँदें छानती
161
बाढ़ का शोर
सन्नाटों का कफन
नम नयन
162
अपने हुए
बाढ़ में समाधिस्थ
सन्नाटे चीखे ।
163
बाढ़ का शोर
मातम परोस के
दहाड़ें मारे !164
बाढ़ का पानी
बूढ़े- बच्चे- जवानी
बहा ले गया l
165
एक कहानी
बाढ़ बहा ले गई
क्यूँ जिंदगानी ?
166
बाढ़ का जल
यमराज सा आया
रूहें ले गया !
167
चीखें लोगों की
पहाड़ों पे बिखरी
मातम छाया ।
168
जल तांडव
पहाड़ों पे करता
धरा उतरा ।
169
सूखे कंठ की
बहती धाराओं में
बुझे न प्यास l
170
चुप्पी थी छाई
कोमल संबंधों में
दरार आई l
171
अबोले रिश्ते
चुप्पी की दीवारों पे
आके बिखरे ।
बाढ़ का शोर
सन्नाटों का कफन
नम नयन
162
अपने हुए
बाढ़ में समाधिस्थ
सन्नाटे चीखे ।
163
बाढ़ का शोर
मातम परोस के
दहाड़ें मारे !164
बाढ़ का पानी
बूढ़े- बच्चे- जवानी
बहा ले गया l
165
एक कहानी
बाढ़ बहा ले गई
क्यूँ जिंदगानी ?
166
बाढ़ का जल
यमराज सा आया
रूहें ले गया !
167
चीखें लोगों की
पहाड़ों पे बिखरी
मातम छाया ।
168
जल तांडव
पहाड़ों पे करता
धरा उतरा ।
169
सूखे कंठ की
बहती धाराओं में
बुझे न प्यास l
170
चुप्पी थी छाई
कोमल संबंधों में
दरार आई l
171
अबोले रिश्ते
चुप्पी की दीवारों पे
आके बिखरे ।
172
गुलमोहर
सोने की अशर्फियाँ
धरा पे वारे l
173
लाल फूलों का
गुलमोहरी शाल
धरा पे सोहे l
174
ज्वाला दहके
गुलमोहरी मन
झिलमिलाए l
175
पुष्प शृंगार
गुलमोहरी हार
धरा अंगार l
176
धूप में आग
सुर्ख गुलमोहर
दहके ख्वाब l
सोने की अशर्फियाँ
धरा पे वारे l
173
लाल फूलों का
गुलमोहरी शाल
धरा पे सोहे l
174
ज्वाला दहके
गुलमोहरी मन
झिलमिलाए l
175
पुष्प शृंगार
गुलमोहरी हार
धरा अंगार l
176
धूप में आग
सुर्ख गुलमोहर
दहके ख्वाब l
177
ग्रीष्म निखारे
पुष्पित झूमर का
कुंदन रूप ।
178
अपलक हो
धरा को निहारता
अमलतास ।
179
अमलतास
उबटन मल के
खूब दमके ।
180
चूम धरा को
मखमली पलाश
सिन्दूरी हुए l
181
धरा के गाल
पलाश की लाली से
सुर्ख हो खिले l
182
खिला पलाश
पुरवा ने छुआ तो
हुआ वो लाल l
183
पलाश मन
हवा के आँचल सा
उडता गया l
184
चाँदनी आई
पलाश को ओढ़ाई
लाल ओढ़नी l
185
पलाश -पुष्प
पुरवा से लिपट
रक्तिम हुआ !
ग्रीष्म निखारे
पुष्पित झूमर का
कुंदन रूप ।
178
अपलक हो
धरा को निहारता
अमलतास ।
179
अमलतास
उबटन मल के
खूब दमके ।
180
चूम धरा को
मखमली पलाश
सिन्दूरी हुए l
181
धरा के गाल
पलाश की लाली से
सुर्ख हो खिले l
182
खिला पलाश
पुरवा ने छुआ तो
हुआ वो लाल l
183
पलाश मन
हवा के आँचल सा
उडता गया l
184
चाँदनी आई
पलाश को ओढ़ाई
लाल ओढ़नी l
185
पलाश -पुष्प
पुरवा से लिपट
रक्तिम हुआ !
186
माँ की ममता
एक दिए के जैसी
रौशनी देती l
187
हवा झोंके -सा
ममता का आँचल
खुशबू देता l
188
रस- पगी -सी
ममता से भरी माँ
ज्यूँ ठंडी छाँव l
189
मन सिन्धु में
ममता की हिलोरें
लहरों -सी माँ l
190
माँ का है मन
तपती सी धूप में
ठंडा बिछौना l
191
दुआएँ माँ की
ठंडी पुरवाई- सी
सुगंधमयी l
192
लहरों -सी माँ
ममता का सागर
बच्चे किनारे l
193
तरु छांह -सी
माँ की ममता होती
प्यार लुटाती l
194
है माँ में भरा
ममता का आवास
माँ है विश्वास l
195
माता का मन
बच्चों के जीवन में
फूल सुगंध l
196
माँ ही आकाश
माँ ही होती धरती
बच्चों की साँस l
माँ की ममता
एक दिए के जैसी
रौशनी देती l
187
हवा झोंके -सा
ममता का आँचल
खुशबू देता l
188
रस- पगी -सी
ममता से भरी माँ
ज्यूँ ठंडी छाँव l
189
मन सिन्धु में
ममता की हिलोरें
लहरों -सी माँ l
190
माँ का है मन
तपती सी धूप में
ठंडा बिछौना l
191
दुआएँ माँ की
ठंडी पुरवाई- सी
सुगंधमयी l
192
लहरों -सी माँ
ममता का सागर
बच्चे किनारे l
193
तरु छांह -सी
माँ की ममता होती
प्यार लुटाती l
194
है माँ में भरा
ममता का आवास
माँ है विश्वास l
195
माता का मन
बच्चों के जीवन में
फूल सुगंध l
196
माँ ही आकाश
माँ ही होती धरती
बच्चों की साँस l
197
पेड़ों के साये
लरजती धूप में
तमतमाए ।
198
मन -आकाश
पतंग -सी लुटती
नींद हमारी ।
199
यादें रोक लें
मन में चलो अब
कर्फ्यू लगाएँ l
200
सजी -सँवरी
देखके चाँदनी को
बिखरा चाँद ।
201
भीगे मौसम
मन की डायरी पे
स्याही फैलाए ।
202
बिछड़े पात
तरु अकेला झेले
यह आघात
203
चाँद -तारों की
चौपाल बैठी साथ
हुई जो रात l
204
रूह अकेली
शरीर-नीड़ छोड़
यात्रा को चली ।
205
मीठी आहट
आई नवरात्रि की
शक्ति आस्था की
206
माँ तो होती है
मन के मंदिर में
शंख ध्वनि सी
पेड़ों के साये
लरजती धूप में
तमतमाए ।
198
मन -आकाश
पतंग -सी लुटती
नींद हमारी ।
199
यादें रोक लें
मन में चलो अब
कर्फ्यू लगाएँ l
200
सजी -सँवरी
देखके चाँदनी को
बिखरा चाँद ।
201
भीगे मौसम
मन की डायरी पे
स्याही फैलाए ।
202
बिछड़े पात
तरु अकेला झेले
यह आघात
203
चाँद -तारों की
चौपाल बैठी साथ
हुई जो रात l
204
रूह अकेली
शरीर-नीड़ छोड़
यात्रा को चली ।
205
मीठी आहट
आई नवरात्रि की
शक्ति आस्था की
206
माँ तो होती है
मन के मंदिर में
शंख ध्वनि सी
207
बजी झांझर
उड़ते गुलाल पर
फागुन रीझा ।
208
धरा पे झूमें
फगुनाया मौसम
बौराए रंग।
209
मन के रंग
दहके पलाश से
फागुनी हुए ।
210
बहता मन
लहरों सा उछल
छुए किनारा l
बजी झांझर
उड़ते गुलाल पर
फागुन रीझा ।
208
धरा पे झूमें
फगुनाया मौसम
बौराए रंग।
209
मन के रंग
दहके पलाश से
फागुनी हुए ।
210
बहता मन
लहरों सा उछल
छुए किनारा l
211
बौराई हवा
एक पाहुन बन
घर पे आई ।
212
चोर द्वार से
मन बाहर आया
घूमता रहा ।
बौराई हवा
एक पाहुन बन
घर पे आई ।
212
चोर द्वार से
मन बाहर आया
घूमता रहा ।
213
यादें बंद थी
पिंजड़े की मैना -सी
व्याकुल – मन ।
यादें बंद थी
पिंजड़े की मैना -सी
व्याकुल – मन ।
214
नील गगन
महफ़िल तारों की
चाँद -अकेला ।
215
गाँठें खुलीं तो
रिश्ते भी धीरे- धीरे
खुलते गये ।
नील गगन
महफ़िल तारों की
चाँद -अकेला ।
215
गाँठें खुलीं तो
रिश्ते भी धीरे- धीरे
खुलते गये ।
216
देहरी लाँघ
बाहर आई नारी
उड़ान भरी l
217
दीप है नारी
हवा झकोरों में भी
ज्योत -सी जले l
देहरी लाँघ
बाहर आई नारी
उड़ान भरी l
217
दीप है नारी
हवा झकोरों में भी
ज्योत -सी जले l
218
ऊँची उड़ानभरती अब नारी
सभी पे भारी l
ऊँची उड़ानभरती अब नारी
सभी पे भारी l
219
ना रुकूँ अब
ना ही झुकूँ कहीं भी
मन गगनl
ना रुकूँ अब
ना ही झुकूँ कहीं भी
मन गगनl
220
प्रेम- निर्झर
मन की शिला तोड़
बहता रहा l
212
भोर- सुहानी
चिड़ियों की चहक
हवा -रागिनी l
प्रेम- निर्झर
मन की शिला तोड़
बहता रहा l
212
भोर- सुहानी
चिड़ियों की चहक
हवा -रागिनी l
222
चाँदनी रात
प्रीत के चाँद संग
मीत का साथ l
चाँदनी रात
प्रीत के चाँद संग
मीत का साथ l
223
लाल गुलाब
प्रेम रस -पीकर
रसीला हुआ ।
224
जीवन डोले
प्रेम भँवरा जब
खुशबू घोले
225
सिन्धु -आँचल
डूबती साँझ संग
भीगा सूरज ।
226
जीवन- झारी
रीतती जाती कब
कोई न जाने l
227
पिंजरा बोले
रूह छोड़ के उड़ी
जीवन -धूप l
लाल गुलाब
प्रेम रस -पीकर
रसीला हुआ ।
224
जीवन डोले
प्रेम भँवरा जब
खुशबू घोले
225
सिन्धु -आँचल
डूबती साँझ संग
भीगा सूरज ।
226
जीवन- झारी
रीतती जाती कब
कोई न जाने l
227
पिंजरा बोले
रूह छोड़ के उड़ी
जीवन -धूप l
228
चहके पाखी
महके सुमनो पे
बसंत आया ।
229
फूलों पे घूमे
रंगीली तितलियाँ
मधु बटोरे ।
230
फूलों के रंग
बसंत के संग में
धरा निहारे ।
महके सुमनो पे
बसंत आया ।
229
फूलों पे घूमे
रंगीली तितलियाँ
मधु बटोरे ।
230
फूलों के रंग
बसंत के संग में
धरा निहारे ।
231
धरा पे आया
ऋतुराज बसंत l
महका मन ।
धरा पे आया
ऋतुराज बसंत l
महका मन ।
232
प्रेम -दीपक
जला जब मन में
खिला यौवन ।
233
प्रेम -जुगनू
भावों की बाती जला
रौशन हुआ ।
234
प्रेम से भरी
भूली बिसरी यादें
महका मन l
जला जब मन में
खिला यौवन ।
233
प्रेम -जुगनू
भावों की बाती जला
रौशन हुआ ।
234
प्रेम से भरी
भूली बिसरी यादें
महका मन l
235
प्रेम का रंग
दहके पलाश सा
मन रंगता l
प्रेम का रंग
दहके पलाश सा
मन रंगता l
236
भीगा ये मन
मौसम ने बजाई
प्रेम मृदंग ।
भीगा ये मन
मौसम ने बजाई
प्रेम मृदंग ।
237
मन बुना है
मन बुना है
गीत -छंदों के साथ
पिरोके तुम्हें ।
238
शब्द गुनती
पहाड़ी बुलबुल
गीतकार- सी ।
239
तारों की रात
चाँद के साथ- साथ
अम्बर छाई ।
240
सुबह सोए
रात भर जागते
चाँद -सितारे ।
241
खोले न खुले
रिश्तों की बँधी गाँठ
धागे उलझे ।
242
सपना मेरा
नींद के पंखों पर
उडता गया ।
243
चिट्ठी जोड़ती
बाँध करके मन
रिश्तों के तारl
पिरोके तुम्हें ।
238
शब्द गुनती
पहाड़ी बुलबुल
गीतकार- सी ।
239
तारों की रात
चाँद के साथ- साथ
अम्बर छाई ।
240
सुबह सोए
रात भर जागते
चाँद -सितारे ।
241
खोले न खुले
रिश्तों की बँधी गाँठ
धागे उलझे ।
242
सपना मेरा
नींद के पंखों पर
उडता गया ।
243
चिट्ठी जोड़ती
बाँध करके मन
रिश्तों के तारl
244
रसपगा -सा
नववर्ष जो आया
सभी को भायाl
245
नव वर्ष भी
झरने -सा उतरा
शोर मचाता ।
रसपगा -सा
नववर्ष जो आया
सभी को भायाl
245
नव वर्ष भी
झरने -सा उतरा
शोर मचाता ।
246
नए साल में
रोशनी बिखेरती
सजी धरती ।
247
झुरमुट से
झाँकता नववर्ष
जैसे चन्द्रमा ।
नए साल में
रोशनी बिखेरती
सजी धरती ।
247
झुरमुट से
झाँकता नववर्ष
जैसे चन्द्रमा ।
248
नया सवेरा
नववर्ष का सूर्य
रंग बिखेरे ।
नया सवेरा
नववर्ष का सूर्य
रंग बिखेरे ।
249
चीं -चीं करता
नववर्ष का पाखी
गीत सुनाए ।
चीं -चीं करता
नववर्ष का पाखी
गीत सुनाए ।
250
नववर्ष भी
कलकल नदी- सा
बहता आया ।
नववर्ष भी
कलकल नदी- सा
बहता आया ।
251
नववर्ष का
उदित हुआ सूर्य
धरा पे आयाl
नववर्ष का
उदित हुआ सूर्य
धरा पे आयाl
252
बेटी न भार l
बेटी न भार l
बेटी की अस्मिता हो
क्यों शर्मसार ?
253
क्यों शर्मसार ?
253
सूर्य- जुलाहा
धुँध की सर्द रुई
भोर में बुने । 254
शीतल हवा
सर्द सुरमई- सी
जाड़ा जो आया ।
255 गुलाबी जाड़ा
सूरज अलाव में
पिघल उठा ।
धुँध की सर्द रुई
भोर में बुने । 254
शीतल हवा
सर्द सुरमई- सी
जाड़ा जो आया ।
255 गुलाबी जाड़ा
सूरज अलाव में
पिघल उठा ।
256
काँपे कोहराजाड़ों की दुपहरी
सूर्य न आया ।
257
ओस -कलम
ठिठुरी धरा पर
मोती उकेरे ।
258
ठिठुरा दिन
धरा को ओढ़ाए है
धुन्ध का शाल
259
हवा उड़ाए
कोहरे की चादर
सर्दी की भोर ।
काँपे कोहराजाड़ों की दुपहरी
सूर्य न आया ।
257
ओस -कलम
ठिठुरी धरा पर
मोती उकेरे ।
258
ठिठुरा दिन
धरा को ओढ़ाए है
धुन्ध का शाल
259
हवा उड़ाए
कोहरे की चादर
सर्दी की भोर ।
260
हेमंती दिनशिशिर हिमकण
विहग मूक l
हेमंती दिनशिशिर हिमकण
विहग मूक l
261
सोई घाटी मेंसर्द हवाएँ बोलें
डरे पाखी -सी l
सोई घाटी मेंसर्द हवाएँ बोलें
डरे पाखी -सी l
262
सर्दी की धूप मुंडेर पर बैठी
सूरज पीती ।
सर्दी की धूप मुंडेर पर बैठी
सूरज पीती ।
263
बर्फ -लिहाफ़
ओढ़ खड़े पर्वत
संत- से लगे l
बर्फ -लिहाफ़
ओढ़ खड़े पर्वत
संत- से लगे l
264
पंछी हैं म
एक डाल पे बैठे
मिले हैं सुर ।
2
ख्वाब उगा है
आँखों के नभ पर
नींद चकोर ।
3
दूर हवाएँ,
तिरते पाखी-स्वर
मन थिरका ।
4
मन का पाखी
पी अतल उदासी
जाने क्या बोले ?
5
सूर्य डूबा तो
बिदा गीत सुनाया
संध्या -पाखी ने ।
6
उदास पाखी
मुँडेर पर आज
मिला न दाना ।
7
पंख खोल के
डोलते हुए पाखी
हवा टटोलें ।
8
हवा की सीटी
सुनके जागे -भागे
पाखी बिचारे ।
9
उड़ा कपोत
पंख फडफड़ाता
डाकिया हँसा ।
10
नभ को ताके
पिंजरे की चिड़िया
उड़ न पाए ।
11
सागर- पाखी
है लम्बी उड़ान
पंख हैं फैले ।
1
चाँद आया तो
चाँदनी ने पेड़ों पे
जालियां बुनीं ।
2
चाँद सकोरा
चाँदनी पीकर के
रात बिताए ।
3
चाँद की डली
किरणें बनकर
रात पिघली ।
4
खामोश रात
चाँदनी किरणों से
रोशन हुई ।
5
चाँद पतंग
चाँद नी डोर बांध
हवा में उड़ाl1.
पर्व अनूठा
सद्भाव के सुमन
गुरु ज्ञान दें ।
2
बाँटते गुरु
ज्ञान के हीरे- मोती
अनूठी ज्योति ।
3
ज्योति अखंड
गुरुद्वारे जगा है
आस्था -उजाला ।
4
गुरु प्रसादी
लंगर में बँटती
घटती दूरी
5
गुरु की दुआ
कार्तिक पूर्णिमा को
चाँदनी लाई ।
6.
गुरु- नमन
मधुर रस घोले
पर्व पावन ।
7.
रसपगा सा
गुरुनानक पर्व
आस्था के रंग
8.
ज्ञान की ज्योति
सबद सुगंध से
प्रेम फैलाती ।
आओ लक्ष्मी जी
कार्तिक की रात में
बन पूर्णिमा
2
चौरे पे दीप
रोशनी बिखराए
लक्ष्मी आए ।
3
दीप बाती भी
जुगनू -सी चमके
लौ बिखेर के ।
4
ज्योत जलाओ
घर -घर दीपों के
मोती सजाओ ।
5
धरा पे तम
पर किया रौशन
लक्ष्मी ने मन ।
6
दीप शिखाएँ
चमकीले तारों- सी
जगमगाएँ
7
घर में सजी
दीपों की रंगोली
मन रौशन
1हे प्रकृति माँ !
तुम्हे सीचेंगें हम
स्वच्छ जल से
२
पेड़ों से आई
आक्सिजन ही देगी
नवजीवन ।
3
ऑक्सिजन से
साँस धरा ले सके
तरु न काटों
4
वन जलेंगे
याद रखना तब
तन जलेंगे ।
5
साफ़ रखके
सागर -गर्भ तल
जीव बचाओ ।
एक डाल पे बैठे
मिले हैं सुर ।
2
ख्वाब उगा है
आँखों के नभ पर
नींद चकोर ।
3
दूर हवाएँ,
तिरते पाखी-स्वर
मन थिरका ।
4
मन का पाखी
पी अतल उदासी
जाने क्या बोले ?
5
सूर्य डूबा तो
बिदा गीत सुनाया
संध्या -पाखी ने ।
6
उदास पाखी
मुँडेर पर आज
मिला न दाना ।
7
पंख खोल के
डोलते हुए पाखी
हवा टटोलें ।
8
हवा की सीटी
सुनके जागे -भागे
पाखी बिचारे ।
9
उड़ा कपोत
पंख फडफड़ाता
डाकिया हँसा ।
10
नभ को ताके
पिंजरे की चिड़िया
उड़ न पाए ।
11
सागर- पाखी
है लम्बी उड़ान
पंख हैं फैले ।
1
चाँद आया तो
चाँदनी ने पेड़ों पे
जालियां बुनीं ।
2
चाँद सकोरा
चाँदनी पीकर के
रात बिताए ।
3
चाँद की डली
किरणें बनकर
रात पिघली ।
4
खामोश रात
चाँदनी किरणों से
रोशन हुई ।
5
चाँद पतंग
चाँद नी डोर बांध
हवा में उड़ाl1.
पर्व अनूठा
सद्भाव के सुमन
गुरु ज्ञान दें ।
2
बाँटते गुरु
ज्ञान के हीरे- मोती
अनूठी ज्योति ।
3
ज्योति अखंड
गुरुद्वारे जगा है
आस्था -उजाला ।
4
गुरु प्रसादी
लंगर में बँटती
घटती दूरी
5
गुरु की दुआ
कार्तिक पूर्णिमा को
चाँदनी लाई ।
6.
गुरु- नमन
मधुर रस घोले
पर्व पावन ।
7.
रसपगा सा
गुरुनानक पर्व
आस्था के रंग
8.
ज्ञान की ज्योति
सबद सुगंध से
प्रेम फैलाती ।
आओ लक्ष्मी जी
कार्तिक की रात में
बन पूर्णिमा
2
चौरे पे दीप
रोशनी बिखराए
लक्ष्मी आए ।
3
दीप बाती भी
जुगनू -सी चमके
लौ बिखेर के ।
4
ज्योत जलाओ
घर -घर दीपों के
मोती सजाओ ।
5
धरा पे तम
पर किया रौशन
लक्ष्मी ने मन ।
6
दीप शिखाएँ
चमकीले तारों- सी
जगमगाएँ
7
घर में सजी
दीपों की रंगोली
मन रौशन
1हे प्रकृति माँ !
तुम्हे सीचेंगें हम
स्वच्छ जल से
२
पेड़ों से आई
आक्सिजन ही देगी
नवजीवन ।
3
ऑक्सिजन से
साँस धरा ले सके
तरु न काटों
4
वन जलेंगे
याद रखना तब
तन जलेंगे ।
5
साफ़ रखके
सागर -गर्भ तल
जीव बचाओ ।
1
अनंत प्यार
चाँद से छनता है
चौथ की रात ।
2
पति- पत्नी का
सम्बन्ध अनुपम
चाँद है साक्षी ।
3
पिया को देख
सजनी की आँखों में
चाँद उतरा ।
4
नभ के भाल
चाँद बिंदिया सजा
चौथ है आई ।
5
प्रेम के तार
चाँद से बरसाते
रस -फुहार ।
6
चाँद देखेंगे
रेशमी छलनी से
चांदनी छान
7
चाँद के तार
खींच लाएँगे आज
पिया का प्यार
8
करवा चौथ
बंधन अनमोल
पिया हैं पास ।
9
चाँद रस में
नहा कर आता है
करवा पर्व l
1
सूर्य सोने की
स्वर्ण किरण ले
सागर घूमे
2
धूप- रेवड़
गड़रिया सूरज
हाँक ले गया
3
पीताम्बरी- सी
साडी पहन कर
संध्या निकली ।
4
रात ओढ के
सर्दी का गर्म शाल
नभ में सोई ।
5
जागी भोर तो
भरी नयन-कोर
रवि -लालिमा ।
6
धूप मछली
मछुवारे सा फेंका
सूर्य ने जाल
7
प्यासी थी रेत
भीगी लहरों संग
खार सोखती ।
8
ख़ुशी के फूल
मन – बिरवे पर
खिले खिले -से
9
नभ -सागर
तारों का मीन-पुंज
तिरता जाए ।
10
पानी- चलनी
सागर लहरों से
रेत छानती ।
1
यादें काँकर
गिरें मन -सागर
अक्स डोलते ।
2
मन -सागर
छ्प-छप तिरती
यादों की नाव ।
3
यादें जो उड़ीं
अतीत नभ तक
घटा -सी तिरीं ।
4
यादें अंकित
मन- कैनवास पे
तस्वीरों- जैसी ।
5
शहनाई -सी
मन की दुनिया में
गूँजती यादें ।
6
भटकी यादें
आवारा बादल -सी
बिन बरसे ।
7
यादों का चाँद
खोये -खोये मन -सा
गगन चढ़ा ।
8
आँसू के जैसी
यादें -पलकों -सजीं
थिर हो गईं ।
10
पाखी- सा मन
यादों के पिंजरे में
फड़फड़ाए ।
11
मन- डोर पे
पतंग -सी यादें
गगन उड़ीं ।
12
भीगा मौसम
बीज -सी दबी यादें
अँखुवा गईं ।
1
डूबता सूर्य
चूम के सागर को
लाल करता
2
सागर पर
हरी- कच्ची लहरें
नावों सी चली
3
कुम्हार सूर्य
धूप की चाक पर
किरण गढे
4
कपूरी धूप
नीम टहनियों से
पाखी सी झाँके
5
सूर्य ने देखा
अपना प्रतिबिम्ब
भोर शीशे में
1
रूह तितली
शरीर का रस पी
हवा -सी उड़ी ।
2
आकाश-अंक
नटखट सूरज
धूप पटके ।
3
हवा थी आई
सुरभि ले फूलों की
पाखी -सी उड़ी ।
4
सुमन-सिन्धु
तैरती तितलियाँ
हवा लहरें ।
5
खाली पड़े हैं
भरूँ किस रंग में
पन्ने मन के ।
6
यादों का चाँद
मन टहनी पर
टिका बैठा था ।
7
कागा बोला तो
इंतज़ार की यात्रा
शुरू हो गई ।
8
हिरनी -यादें
अतीत जंगल से
भाग निकलीं
9
तारों जड़ी थी
नीलवर्णी साड़ी भी
नभ ने ओढ़ी ।
10
मन नभ में
काली घटा सी तैरें
भीगी सी यादें ।
11
श्यामल घटा
सतरंगा धनुष
मल्हारी ताने ।
1
आखिरी पत्ता
हवा में लहराया
मौन विदाई ।
2
पतझड़ में
झरी पत्तियाँ उड़ीं ,
चरमराई ।
3
तैरते पत्ते
पतझर - नदी में
जलपाखी -से ।
4
उँगली थामे
हवाओं में टहलें
सूखे ये पात ।
5
हवाओं- संग
पतझड़ के पत्ते
दिखें पाखी -से
6
सूखे पत्ते भी
तपती हवा संग
छाँह ढूँढ़ते ।
7
सूखी पत्तियाँ
सपनो की तरह
झरती रही ।
1
वर्षा की बूँदें
पत्तों पर टपकी
संगीत बना ।
2
वर्षा आई तो
टपकते छप्पर
ढोल बजाएँ ।
3
बरसी वर्षा
फूलों के तन चाक
बूँदें बेबाक ।
4
बूँदें बरसी
टप- चट-चुट -सी
भादों जो आया ।
5
धवल घटा
धारासार बरसी
माँ के दूध- सी
6
बारिश आई
जंगली गुलाब- सी
खुशबू छाई ।
7
कौंधी तडित
बादलों के पार से
चाँदी छानती
8
बारिश पीती
धरती हरी हुई
चहके पाखी
9
वर्षा बहार
बूँदे बंदनवार
घटा अनूठी
10
माटी महकी
आई वर्षा रानी की
पी जलधार ।
11
बादल हँसे
रोई बूँदे नभ में
धरा भी भीगी ।
12
प्यासी नदिया
बरसो बदरिया
धरा बुलाए ।
1
रूह तितली
शरीर का रस पी
हवा सी उड़ी ।
2
आकाश-अंक
नटखट सूरज
धूप पटके ।
3
हवा थी आई
सुरभि ले फूलों की
पाखी -सी उड़ी ।
4
सुमन-सिन्धु
तैरती तितलियाँ
हवा लहरें ।
5
खाली पड़े हैं
भरूँ किस रंग में
पन्ने मन के ।
6
यादों का चाँद
मन टहनी पर
टिका बैठा था ।
7
कागा बोला तो
इंतज़ार की यात्रा
शुरू हो गई ।
८
हिरनी- यादें
अतीत- जंगल से
भाग निकलीं ।
९
तारों -जड़ी थी
नीलवर्णी साड़ी भी
नभ ने ओढ़ी ।
१०
मन -नभ में
काली घटा -सी तैरें
भीगी -सी यादें ।
1
केसर रंग
शान्ति दूत सफ़ेद
हरे के संग
2
ध्वज हमारा
विश्व भर में न्यारा
नयन- तारा
3
कोंपल उगी
आजादी की देश में
त्याग – बीज से .
4
त्याग का पथ
शहीदों ने चुना था
उन्हें नमन ।
4
शीश न झुका
शहीदों का कभी भी
हुए कुर्बान ।
5
शीश झुकाऊँ
राष्ट्रीय पर्व पर
चढाऊँ पुष्प ।
बालरूप में
नटखट गोविंदा
मैया का चंदा
2
कान्हा बजाए
बाँसुरी की तान तो
राधा को भाए ।
3
सात सुरों में
स्नेह -झरी बाँसुरी
अधर -धरी ।
4
रास रचाए
कृष्ण कन्हैया लाल
राधा जी साथ ।
5
मधुबन में
गोपियों संग कान्हा
निहारे राधा ।
6
मुरली सुन
बावरी- सी राधिका
ब्रज में डोले ।
7
ब्रज की माटी
यशोदा का नंदन
जैसे चन्दन
1
बहने हैं होती
अनुभूति से भरी
मिश्री -मिठास ।
2
शुभ- मुस्कान
रिश्ते की घनी छाँव
रक्षाबंधन ।
3
मखमल -सी
बँधी कलाई पर
चमकी राखी ।
4
रिश्ते की डोर
भाई की कलाई पे
आस्था से बाँधी
5
मधुर यादें
भाई- बहिन भीगे
राखी रस में ।
6
सावन आया
मधुर रस घुला
‘राखी पर्व’ में ।
7
बहिन हँसें
मनभावन प्यार
राखी पे बाँध
8
भाई का मन
झलकता आँखों से
रिश्ता पावन ।
9
भाई -बहिन
रक्षा पर्व की वर्षा
भीगते दोनों ।
10
दूर देश से
डोरी लायी बहना
रिश्तों को बाँधा।
1
ऋतु सावन
तीज मनभावन
झूलों पे गौरी ।
2
तीजो ले आई
बागों- झूले-हिंडोले
रुत मेलों की ।
3
तीज तितली
फूलों के झूलों पर
पींगे बढ़ाती ।
4
ऊँची पींगे ले
संग सहेलियों के
झूले लरजे ।
5
बागों में झूले
हरियाली तीज के
गीत सुरीले ।
6
झूला झूलती
बालाएँ गीत गाएँ
सावन भाए ।
7
तीजों के पाखी
सावन के नभ में
झूलों के पंख ।
1रेत की नदी
डूबते सूरज में
चमकती -सी ।
2
काली थी रात
रोता रहा उदास
प्यासा चकोर ।
1-पलाश
1
पलाश फूल
हवा चुनती डोली
लाल हो गई ।
2
धरा निहाल
बटोर कर लाल
पलाश – फूल ।
3
पलाश -मन
हवा के आँचल- सा
उडता गया ।
4
पलाश -फूल
लाल मोती से गिरे
धरा पे जड़े ।
5
मेहँदी लगा
खिले- पलाश फूल
रंग ले आए ।
-0-
2-अमलतास
6
खुली मुँडेर
हँसता बतियाता
अमलतास ।
-0-
3-गुलमोहर
7
धूप- लहरें
माणिक बरसाता
गुलमोहर ।
8
गुलमोहर
गरमी की भट्टी में
अंगारा हुआ ।
9
ज्वाला दहकी
हवा से सहमा- सा
गुलमोहर ।
-0-
4-सूरजमुखी
10
सूरजमुखी
पौधे के कंगूरों से
तके सूर्य को ।
11
अपलक हो
मोहित सूरजमुखी
सूर्य को देखे ।
-0-
5-चंपा – चमेली
12
चाँद उतरा
कटहली चंपा -सा
खिड़की पर
13
चंपा की गंध
काँच की चूड़ियों सा
दूधिया मन
14
रात की स्याही
दूधिया जुगनू से
चमेली फूल
1
प्रेम पिता का
रात में चमकते
तारे के जैसा ।
2
झिलमिलाता
झील गहराई सा
पिता का रूप ।
3
गहरी धूप
छायादार पिता हैं
देते राहत ।
4
वृक्ष से तने
पिता हैं सरमाया
गहरी छाया ।
5
आँगन खड़े
बरगद छाया से
विशाल पिता ।
6
उँगली थामे
जैसे बहते धारे
पिता हमारे ।
7
पिता -मसीहा,
घर के औसारे में
जलता दिया ।
8
ईश से लगें
द्वार के सतिये -से
सजे हैं पिता ।
9
नाविक जैसे
बचपन की नाव,
खेतें हैं पिता ।
1
गोधूलि बेला
झीलों के दर्पण में
जल पाखी -सी ।
2
गीले मन को
डाल अलगनी पे
धूप दिखाई ।
3
सूखे गुलाब
मन- किताब में भी
देते खुशबू ।
4
मन -चौबारे
पावस ऋतु -द्वारे
मेघ सलोने ।
5
ओस की बूँदें
ओक भर धूप पी
उडी पाखी- सी ।
6
याद – लहरें
ले डूबी लिखा नाम
मन-रेत पे ।
श्वेत चूड़ियाँ
भरके कलाइयाँ
सजी शेफाली
2
सूरजमुखी
पौधे के झरोखे से
सूर्य निहारे
3
हवा में घुल
गुलाब के फूल भी
‘खुशबू बने
4
मोगरे दाने
चुनता हवा पाखी
चोंच मारके
5
उनींदा दिन
सफ़ेद गुलाब से
रंग ले भागा
6
हवा तितली
मोगरे का रस पी
गंध ले उडी
7
खोल सी गयी
सूरजमुखी धूप
सूर्य की आँखें
8
कच्चे घड़े से
पारिजात टूटे थे
पाखी से उड़े
9
चाँदनी आई
शेफाली को ओढ़ाई
श्वेत चूनर 10
सफ़ेद चोला
ओढ़ हरसिंगार
खिला महका
1
मौसम टेसू
मन हुआ फागुन
होली के संग
2
महकी हवा
रसपगी होली सी
बिखरे रंग
3
होली के रंग
उमंग नवरंग
भंग के संग
4
भीगते मन
फगुनाया मौसम
होली के रंग
5
भीगी सी होली
फागुनी बयार में
रसपगी सी
6
पीत पराग
आँगन में गुलाल
होली तो होली
7
रंग गुलाल
अक्षत चन्दन में
भीगे से तन
8
भीगा सा तन
अबीर गुलाल से
हरषे मन
9
फागुनी रंग
चंग मृदंग भंग
आगई होली
10
भंग के संग
फागुन का मौसम
होली के चंग
चिरैया उड़ी
तेज आँधी से लड़ी
बिखरे पंख।
2
नींद नदी -सी
लहरों-सा सपना
बहता रहा l
3
दूर है नाव
लहराता-सा पाल
हवा उदास ।
4
भीगे हैं तट
पदचाप बनाती
बिखरी रेत l
5
नदी -सा मन
बहता लहरों-सा
सागर हुआ ।
6
डूबती साँझ
जीवन -सी उतरी
विदा के रंग
7
धूप- पंखुरी
खिली फागुन बन
बजे मृदंग
सूर्य मदारी
धूप की पुतलियाँ
रोज नचाये
२
सूर्य डाकिया
धूप के ख़त लाया
भोर- थैले में
३
पूनी- सी धूप
सुबह के चरखे पे
किरणे काते
४
रात की स्याही
भोर के कागज पे
धूप कलम
५
भोर पहने
सूर्य की कलाई पे
धूप की चूड़ी
६
पाजेब डाल
हवा की घास पर
सुबह घूमी
७
सूरज छोड़े
धूप की केचुलियाँ
दिन सांप- सा
८
सूर्य चेहरा
धूप के कर्णफूल
चमकते से
९
धूप के मोती
तरु गले लटके
माला के जैसे
१०
सागर तीरे
उदित सूर्य पाखी
चाँद- सा लगे
११
उदित रवि 1
तिलक लगा
बहिन मुस्कराए
पल प्रीति के ।
2
दूज की रात
भाई -बहिन साथ
चाँद हर्षाए ।
3
मंगल- स्पर्श
भैया दूज पे मन
आनंदमय ।
4
रिश्ते मन के
दूज पे निखरते
रसपगे से ।
5
चाँद से आए
स्नेहिल चाँदनी
दूज जो आए ।
6
दूज का पर्व
सभी के मन भाया
उल्लास लाया ।
7
भैया आया है
घर आँगन मने
दूज उत्सव
8
मन-दीप को
भाई ने था जलाया
नेह बरसा ।
किरणों के पंखों से
नभ पे उड़ा
१२
धूप- पत्थर
सूरज ने फेंके
दरके पत्ते
१३
सूर्य की पाँखें
सूरजमुखी धूप
खोल के उडी
१४
धूप बही है
सूर्य के निर्झर से
धरा नदी में
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