शनिवार, 22 नवंबर 2014

"स्वागत सर्दी का !"


"स्वागत सर्दी का !"
गुनगुनी धूप में

धुआँ धुआँ सी

घूम रही है

मुखरित सी पुरवाई

...
नववर्ष के द्वारे देखो

मनभावन सी

सर्दी आई

अलाव की लहरों पर

पिघलती कोहरे की परछाई

तितली तितली मौसम पर

गीत सुनाती

शरद ऋतु की शहनाई

नववर्ष के द्वारे देखो

मनभावन सी सर्दी आई

प्रकृति की नीरवता में

आसमान है जमा जमा सा

पुष्पित वृक्षों पर सोया है

सुबह का कोहरा घना घना सा

उनींदे सूर्य से गिरती ओस की

बूंदों से लिपटा

सुरमई सा थमा थमा सा

जाग उठा मुक्त भाव से

मौसम ने कसमसा कर

अमराई में ली अंगडाई

नववर्ष के द्वारे देखो

मनभावन सी सर्दी आई

डॉ सरस्वती माथुर

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