सोमवार, 24 नवंबर 2014

"माँ !"


 
"माँ !"... दिव्य शक्ति !"
माँ- मुस्काराती है
बच्चों के होठों पे
माँ- खिलखिलाती है
मंदिर की घंटियों सी
माँ- गूंजती है दुर्गा की
लयबद्ध चालीसा सी
माँ -बोलती है जैसे हो
इबारतें गुरुवाणी की
माँ- गूंज है
मस्जिद की अजानो सी
माँ- हरियाती है घास सी
माँ -प्रार्थना है गिरजाघरों की
माँ- माटी है धरा की
माँ- महक है फूलों की
माँ - खुशबू है हाथों में लगी
लहरिया मेहँदी की
माँ -फुहार है वर्षा की और
माँ- तो सच में झंकार है
डांडिया की एकबद्ध नाद पर
गरबा की लयबद्ध
जलतरंगों सी बजते तालों की
माँ- तो पूजा है नवदुर्गा की जो
नवरात्रि में दिव्य शक्ति के
मन्त्रों सी आबद्ध हो
नस नस में
उर्जा भर जाती है!
2
"माँ !"
याद आती है
हम सभी को माँ
एक सेतुबंध की तरह
परिवार की परिधि में
महसूस होती है माँ
घर में उठी बहसों की
आग आंधी पर
पानी फैंकती माँ
याद आती है माँ
फ़र्ज़ के कुएं से
पानी खींचती माँ
सुबह उठ कर
सभी के लिए
चूल्हा जलाती माँ
सभी को निपटा कर
रात के एकांत पहर में
चूल्हा बुझाती माँ
याद आती है माँ
निर्मल नदी सी
सबको आगे बढा
कुर्बानियों के
पेबंद लगाती माँ
याद आती है माँ
परिवार के
रिश्तों को जोड़ती
शाश्वत अनुबंधों सी माँ
याद आती है माँ !
3
"शक्तिस्वरूपा माँ !
"ममतामयी माँ
मेरे लिए अनुभव का
एक अध्याय हो तुम
जिन्दगी की इबादत हो
हर पथ पर खड़ा
एक मील पत्थर हो
जिसे देख नापती हूँ मैं
जीवन की दूरियाँ
माँ, तुम शक्ति स्वरुपा सी
हर पल मेरे मन सिंह पर
विराजमान रहती हो और
मेरे मन पाखी को पंख दे
मुझको नया आकाश देती हो
सच माँ तुम अपने आप में
मेरे जीवन की उड़ान हो
मेरी पहचान हो
शत शत नमन तुम्हे
शत शत नमन माँ!
4
  "माँ !"
मन की घाटियों में

माँ एक मौसम सी
सुहानी भोर सी ताजी

 आकाशी छोर सी ऊँची
 गुलाब सी महकती
  सुंदर साँझ सी
  माँ  जीवन बगिया में
 एक खिले फूल सी
 इन्द्रधनुषी रंगों सी
 भंवरों की गूंजन सी 
    पीत पराग सी
 संगीत के मधुर राग सी 
  चहकती पाखी सी
 महकती रातरानी सी   
 माँ  नींद की दुनिया में
 एक स्वपन सी
थपकी दे सुलाती सी 
मधुर लोरी गाती सी
 पालने झुलाती  सी
 आँचल में छुपा
 नज़र से बचाती सी  
स्पर्श कर सहलाती सी 
परिवार में माँ
एक संस्कृति सी
संस्कार सिखाती सी
प्रेममयी प्यारी सी
 निर्मल नेह  बरसाती सी
यादों की नदियों में
 पावन गंगोत्री सी
आकाश में चन्द्रमा सी
 धरा पर ताज़ी  हवा सी 
हम सभी की माँ
एक मंदिर सी
 अगरबती धूप सी
 मंदिर की सुरीली 
 बजती घंटियों में
 अराध्य सी
 ईश्वर के सुंदर रूप सी
 हमारी सबकी माँ 
 एक सूर्य सी 
 एक धरती सी मैं
  आज भी माँ के
 चारों ओर घूमती
 आशीर्वाद की 
सुधियाँ बटोरती 
 धन्य हो जाती हूँ
 क्युंकि माँ है
मीठी सी मिश्री सी
 एक सृष्टि सी
हमारी दृष्टि सी
मन की गलियों में 
माँ  सुरीली याद सी
डॉ सरस्वती माथुर
5
"शक्ति स्वरूपा माँ !"
मौसम बदला
बारिश थम गयी
नदी सी बहती हुई
शक्तिस्वरूपा नवरात्रि
साजों के संग लहराई
गरबा के शब्दों ने
गीतों को
मुखरित कर लिया
नन्ही जान भी
माँ के गर्भ में
सरसराई
अनजानी आशंकाओं से
थरथराई
रोज सुनती थी कि
वह अनचाही है
इंतज़ार था उसको कि
इस उत्सव में
शायद चरण पुज जाएँ
लेकिन नवरात्रि के
अंतिम चरण में
हवा की लय बदल गयी
उसकी पैदाईश टल गई
रिश्तों के ताल तलैया
रीते हो गए
पीर पर्वत सी नहीं पिघली
हिमालय से गंगा नहीं निकली
हंगामा गरबे के
ढोल में दब गया
न कोशिश जारी रही
न सूरत ही बदली
बस बेटी के हिस्से का
सूरज ही नहीं उगा
माँ ने आह भरी
उसका मौन
संवादहीन हो कह रहा था
अब नहीं दोहराऊंगी
यह गलती
तुझे वापस लाऊँगी
अपने इस जीवन संघर्ष की
शक्ति बनाऊँगी
दुर्गा माँ का
विसर्जन होने तक
एक नई उर्जा और
प्रेरणा पाकर माँ
स्वयम से बोली
हर साँस जब लूंगी
तुझे ही जिऊँगी
यह वादा रहा बेटी
अर्थहीन नहीं होगी
तेरी कुर्बानी
अगली बार मौसम बदलेगा
गरबे की स्वर लहरी
छंदबद्ध होगी
तब तेरे साथ मैं भी
संगीतमय तरंगों में
थिरकूंगी और
हर थिरकन में
मेरे शब्द होंगे कि
बेटी शक्तिस्वरूपा दुर्गा होती है
इसलिए उसका जन्म लेना
हमारे लिए वरदान है क्यूंकि
बेटी हमारे देश की
शान है -आन है
मान है
हमारा अभिमान है ..!
डॉ सरस्वती माथुर
6
हाइकु:
माँ दुर्गा नवरूप
 1
गरबा गीत
हवा संग गूंजते
नवरात्री पे
2
गूंजी दिशाएँ
नवरात्रि पर्व पे
डंडिया बाजे
3
नेत्र विशाल
शस्त्र हस्त धारिणी
भक्ततारिणी
4
विघ्न हारिणी
कष्ट निवारिणी माँ
महाकालिके
5
करें वंदन
माँ दुर्गा नवरूप
शुभ स्वरुप
6
बिखरी गूँज
गरबा डांडिया की
हो शक्तिमय
7
गर्वशालिनी
मधुर मनोहर
दुर्गा का रूप
डांडिया लड़ी
झंकार झनकाती
झूमे नारियां
जै जगदम्बे
डांडिया में गूंजता
गीत गरबा
१०
ढोल पे झूमे
एकबद्ध हो शक्ति
गरबा संग
डॉ सरस्वती माथुर "माँ तुम ही हमारी नवदुर्गा हो !"

माँ, तुम तो
 मौसम में बसंत हो
ममता की खुशबू से भरी
समीर सी शीतल
तुम खुद घर का
गतिमय आँगन हो

तुम्हारी गोद का झूला
 भला कौन भूला ?
बच्चों के जीवन में
 सुरक्षा का बंधन हो तुम
तुम  ममता की खान  हो 

नदी हो तुम दुआओं की
 स्नेह का बहाव लिए
 माँ तुम तो सच
 गंगा खुद  पावन जल हो
तुम संबल की चट्टान हो

पथरीली  राह में तुम
 कलकल बहता झरना  हो
जीवन में संबल  भर कर
बच्चों को राह दिखाने वाली
विश्वास की पहचान हो


तुम्हारा आँचल अब भी
 तपती दोपहरी में
 लगता है छाँव सा
 ले जाता है सपनों में
 चहचहाती चिड़िया सी
 तुम आसमान की उड़ान हो 

तुम तो माँ
भोर की लाली में जाग
हमारी दुनिया में
आशाओं के  गीत बुनती हो
राह में यदि काँटे हो
अपने हाथों से चुनती हो
 भावनाओं की रस भरी 
तुम मीठी  सुरीली तान हो


 माँ तुम तो
 अपनी मंमतामयी लोरी से
 हमारे जीवन में अनुभवों की
 इंद्रधनुषी किताबें भी  गुनती हो
मधुर रसों से भरे  घट सी  तुम
तुम तो अमृतपान हो

माँ, तुम ही हमारी नव  दुर्गा हो 
तुम ही हमारी पूजा हो
 परिवार की परिधि में घूमता
तुम चलता फिरता मंदिर हो 
हमारे लिए तो भगवान हो !
डॉ सरस्वती माथुर




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