"नीम खामोशी में !"
मैं फिर चढ़ूँगी
उगते सूरज सी
सपनों के पहाड़ों पर
मौसम की
अनमन हवाओं में
और धूप बन
झरती रहूँगी
हर मौसम में
बस चौमासे में
निरंतर न
आ पाऊँगी क्यूंकी
तब बादलों का
साथ निभाऊँगी
हाँ संध्या में
चाँदनी बन चाँद संग
हवाओं की सरगम में
नए गीत
गुनगुनाऊँगी और
फूलों से रंग चुरा के
तितली बन
बसंत के मौसम में
रसपगी रागिनी छेड
नूपुर सी बज़
पतों -शाखों में समाकर
हरियाली बन जाऊँगी
पर तब तक मुझे
अन्तर्मन की
नींद नदी में
ख्वाब बन कर बहने दो
अपने ही मन की
नीम खामोशी में
कैद रहने दो !
डॉ सरस्वती माथुर
मैं फिर चढ़ूँगी
उगते सूरज सी
सपनों के पहाड़ों पर
मौसम की
अनमन हवाओं में
और धूप बन
झरती रहूँगी
हर मौसम में
बस चौमासे में
निरंतर न
आ पाऊँगी क्यूंकी
तब बादलों का
साथ निभाऊँगी
हाँ संध्या में
चाँदनी बन चाँद संग
हवाओं की सरगम में
नए गीत
गुनगुनाऊँगी और
फूलों से रंग चुरा के
तितली बन
बसंत के मौसम में
रसपगी रागिनी छेड
नूपुर सी बज़
पतों -शाखों में समाकर
हरियाली बन जाऊँगी
पर तब तक मुझे
अन्तर्मन की
नींद नदी में
ख्वाब बन कर बहने दो
अपने ही मन की
नीम खामोशी में
कैद रहने दो !
डॉ सरस्वती माथुर
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