गुरुवार, 16 अक्तूबर 2014

दिवाली पर कवितायें :"दीप जला कर !"

"दीप जला कर !"

मन को आओ

आलोकित कर लें

दीप जला कर

तम को हर लें
 
बुहार मन के
गहरे  अंधेरे
मन मुंडेर को भी
रोशन कर लें l


 

 पाँत से पाँत

 जोड़ कर रखें

 दीप-बाती में

 स्नेह का तेल भर लें !


 चोका

"लक्ष्मी का दीप !"

मन मुंडेर

आलोकित कर लें

नेह दीप से  

जीवन में धर लें

 द्धार पे फिर

 स्नेह बंदनवार

 लगा के फिर

आँगन चमकाये 

लक्ष्मी का दीप

 रंगोली पे जलाये

 दिव्य  प्रकाश

 चहुं ओर फैलाये

 अखंड दीप

 शांति सद्भाव का

 घर घर जलाए l

  3

"दीप  की लौ !"
 भीगी वर्तिका
 दीप का तेल सोख
 तम को  पीती l
  जलते दीप
  अँधियारा  बांध के
  रोशनी देते l
  समाहित हो 
  दीपक में वर्तिका
  उजास देती l    
 दीप का नेह
 वर्तिका है जानती  
 लौ को बांधती l
मन का तम
बुझाना होगा अब
नेह दीप से l
डॉ सरस्वती माथुर

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