मंगलवार, 26 अगस्त 2014

"सृज़न के उन्माद में! "

"सृज़न के उन्माद में! "
"सकपकाई सी
एक चिड़िया आई
ताकती रह देर तक
पतझड़ के झड़े
भूरे पतों को
हवा बुहार रही थी
तब सन्नाटा
अटक गये थे चिड़िया के
सुर भी कंठ में पर
मौसम के गलियारों में
महक थी सूखे पत्तों क़ी
उम्मीद थी जल्दी ही
फिर फूल आयेंगे
तितलियों उनमे
ताजगी तलाशती मंडराएगी
कोयलें कूकती
हरियाली पी लेंगी
सृज़न के उन्माद में
फिर फूटेंगे अंकुर
फुलवारी में उगेगा
इन्द्रधनुष
रंग - बिरंगी तितलियों का
चिड़िया ने भी
अपने से संवाद किया कि
अब आ गया है वक्त
घरोंदा बनाने का
इस विश्वास के साथ
उल्लासित हो
वो उड़ गयी
बसंत के बारे में
सोचेते हुये !

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